मैं अपने घुटनों पर गिरी और अपने आँसुओं को फर्श पर गिरने दिए । “परमेश्वर, आप क्यों मेरा देखभाल नही कर रहे है?” मैं रोयी l यह 2020 की कोविड-19 महामारी के समय था । मैं लगभग एक महीने से नौकरी से निकाली गई थी, और मेरी बेरोजगारी के आवेदन में कुछ गड़बड़ी हो गयी थी l मुझे अभी तक कोई पैसा भी नहीं मिला था, और अमेरिकी सरकार ने जिस प्रोत्साहन राशि का वादा किया था अभी तक नहीं पहुंची थी । मैंने अपने दिल की गहराई में परमेश्वर पर भरोसा किया कि परमेश्वर सब कुछ ठीक करेगा । मैंने विश्वास किया कि वह सच में मुझसे प्यार करता था और मेरा ख्याल रखेगा, लेकिन उस समय, मैंने अपने आप को त्यागा हुआ महसूस किया ।

विलापगीत की पुस्तक हमे स्मरण दिलाती है कि विलाप करना ठीक है । यह पुस्तक  सम्भवतः बबिलोनियों द्वारा यरूशलेम नष्ट करने के दौरान या इसके तुरंत बाद 587 ई.पू. में लिखी गयी थी । यह दुःख (3:1,19), अत्याचार (1:18) और भुखमरी (2:20; 4:10) का वर्णन करती है जिनका लोगों ने सामना किया । फिर भी पुस्तक के मध्य में लेखक को याद आता है कि वह क्यों आशा कर सकता है : “हम मिट नहीं गए; यह यहोवा की महाकरुणा का फल है, तेरी सच्चाई महान् है l प्रति भोर वह नई होती रहती है; तेरी सच्चाई महान् है” (3:22-23) l विनाश के बावजूद, लेखक स्मरण करता है कि परमेश्वर विश्वासयोग्य रहता है l  

कभी-कभी यह विश्वास करना असम्भव महसूस होता है कि “जो यहोवा की बाट जोहते और उसके पास जाते हैं, उनके लिए यहोवा भला है” (पद.25), खासतौर तब, जब हम अपने कष्टों का अंत नहीं देखते है l लेकिन हम उसे पुकार सकते है, भरोसा कर सकते है कि वह हमारी सुनता है, और वह उस समय भी हमारे लिए विश्वासयोग्य रहेगा ।