जब एक प्रमुख अंग्रेजी पत्रिका ने दुनिया के एक सौ इक्यावन प्रमुख संगीतकारों को बीस की सूची बनाने के लिए कहा, जिन्हें वे अब तक की सबसे बड़ी स्वर-समता(symphony) मानते थे, तो बीथोवन की रचनाएँ शीर्ष पर आ गईं l वह काम जिसके शीर्षक का मतलब है “वीरतापूर्ण/बहादुराना(heroic),” दुनिया भर में राजनितिक अशांति के दौरान लिखा गया था l लेकिन यह बीथोवन के अपने संघर्ष से भी निकला क्योंकि उन्होंने धीरे-धीरे सुनने की शक्ति खो दी थी l यह संगीत भावना की पराकाष्ठ की अस्थिरता का आह्वान करता है जो व्यक्त करता है कि चुनौतियों का सामना करते हुए मानव होने और जीवित रहने का क्या मतलब होता है l आनंद, दुःख, और अंतिम विजय की अविवेचित उतार-चढ़ाव में बीथोवन की तीसरी सिम्फनी/स्वर-समता मानव आत्मा के प्रति अमर उपहार माना जाता है l
कुरिन्थुस की कलीसिया को लिखी पौलुस की पहली पत्री समान कारणों से हमारे ध्यान के योग्य है l संगीत की गणना/score के बजाय प्रेरित शब्दों के द्वारा वह आशीष में बढ़ता है (1:4-9), आत्मा को कुचलने वाले संघर्ष के दुःख में कम होता है (11:17-22), और वरदान प्राप्त लोगों के सामंजस्य में फिर उठता है जो एक साथ एक दूसरे और प्रभु की महिमा के लिए काम करते है (12:6-7) l
फर्क यहाँ यह है कि हम अपने मनुष्य की आत्मा की जीत को परमेश्वर की आत्मा के प्रति श्रद्धांजलि के रूप में देखते हैं l जैसे पौलुस हमसे मिलकर खुद को पिता के द्वारा एक साथ बुलाया हुआ, पुत्र के द्वारा अगुआई प्राप्त, और उसके आत्मा के द्वारा प्रेरित──शोर के लिए नहीं, परन्तु हमारी सबसे बड़ी सिम्फनी/समस्वरता में योगदान देने के लिए एक साथ मसीह के अवर्णित प्रेम, का अनुभव करने के लिए आग्रह करता है ।
आपको अपने जीवन में असहमति का मतभेद कहाँ सुनायी देता है? आप प्रेम की सिम्फनी/स्वर-समता का सामंजस्य कहाँ देखते है?
हे पिता, कृपया मुझे जो मैं दूसरों के साथ हो सकता हूँ देखने में सक्षम करें, आपके पुत्र पर अपनी नजरें रखते हुए, आपके आत्मा पर भरोसा के साथ, एक बढ़ती हुयी जागरूकता के साथ जो आप मेरे समान शोर करने वाले के साथ कर सकते हैं l