जिस ग्रामीण क़स्बा में मैं बड़ा हुआ वहां शुक्रवार हाट का दिन था l इन सारे वर्षों में, मैं एक ख़ास विक्रेता को याद करता हूँ l उसके हाथ और पैरों की ऊँगलियाँ हैन्सन बिमारी/Hansen’s disease(कुष्ठ) से गल गईं थीं, वह अपनी चटाई पर दुबककर बैठती थी और अपना माल एक खोखला किये हुए तुम्बा(gourd) से नाप कर बेचती थी l कुछ लोग उससे बचते थे l मेरी माँ नियमित रूप से उससे खरीदने का मन बना रखी थी l मैं उसे केवल हाट के दिनों में देखता था l उसके बाद वह कस्बे से बाहर चली जाती थी l
प्राचीन इस्राएलियों के दिनों में, कुष्ठ रोग की तरह बिमारी का मतलब “छावनी के बाहर” रहना था l यह परित्यक्त अस्तित्व होता था l इस्राएली व्यवस्था ऐसे लोगों के विषय कहती थी, “उसका निवास स्थान छावनी के बाहर हो” (लैव्यव्यवस्था 13:46) l छावनी के बाहर ही वह स्थान भी होता था जहाँ बलिदान किये गए बछड़ों के मृत शरीर जलाए जाते थे (4:12) l छावनी वह स्थान नहीं था जहाँ वे रहना चाहते थे l
इब्रानियों 13 में यीशु के विषय कथन में यह कठोर सत्य जीवन डाल देती है : “इसलिए आओ, उस की निंदा अपने ऊपर लिए हुए छावनी के बाहर उसके पास निकल चलें” (पद.13) l यीशु यरूशलेम के फाटक के बाहर क्रूसित किया गया, एक ख़ास बिंदु जब हम इब्री बलिदान-सम्बन्धी व्यवस्था का अध्ययन करते हैं l
हम लोकप्रिय, इज्ज़तदार होना चाहते हैं, आरामदायक जीवन जीना चाहते हैं l लेकिन परमेश्वर हमें “छावनी के बाहर” जाने को बुलाता है──जहाँ निंदा है l वही वह स्थान है जहाँ हमें हैन्सन बीमारी(कुष्ठ) वाला विक्रेता मिलेगा l वहीं पर हम उन लोगों को पाएंगे जिन्हें संसार ने अस्वीकार कर दिया है l वहीं हम यीशु को पाएंगे l
आप पराए और अनुपयुक्त लोगों के साथ आरम्भ में कैसी प्रतिक्रिया करते हैं? आप किन व्यवहारिक तरीकों से “छावनी के बाहर” यीशु के पास जा सकते हैं?
हे यीशु, धन्यवाद, क्योंकि आप पक्षपाती नहीं हैं l मेरे लिए छावनी के बाहर जाने के लिए धन्यवाद l