परमेश्वर का दूतावास
लुडमिल्ला, एक विधवा स्त्री, जिसकी उम्र अस्सी वर्ष है, ने चेक गणराज्य में अपने घर को "स्वर्ग के राज्य का दूतावास" घोषित किया है, यह कहते हुए, "मेरा घर मसीह के राज्य का विस्तार है।" वह प्रेम भरे सत्कार के साथ उन अजनबियों और दोस्तों का स्वागत करती है जो आहत और जरूरतमंद हैं, कभी-कभी भोजन और सोने के लिए जगह प्रदान भी करती है─हमेशा एक दयालु और प्रार्थनापूर्ण भावना के साथ। अपने घर पर आने वाले लोगों की देखभाल में मदद करने के लिए पवित्र आत्मा की प्रेरणा पर भरोसा करते हुए, वह परमेश्वर द्वारा उनकी प्रार्थनाओं का उत्तर देने के तरीकों से आनंदित होती है।
लुडमिल्ला यीशु की सेवा अपने घर और दिल को खोलने के द्वारा करती है, उस प्रमुख धार्मिक नेता के विपरीत जिसके घर पर यीशु ने एक सब्त के दिन खाना खाया था। यीशु ने व्यवस्था के इस शिक्षक से कहा कि उसे "गरीब, अपंग, लंगड़े, अंधों" का अपने घर में स्वागत करना चाहिए─उनका नहीं जो उसे चुका सकते हैं (लूका 14:13)। जबकि यीशु की टिप्पणी का अर्थ है कि उस फरीसी ने यीशु का स्वागत अपने घमंड के कारण किया (पद.12), लुडमिल्ला, इतने सालों बाद, लोगों को अपने घर में आमंत्रित करती है ताकि वह "परमेश्वर के प्रेम और उसकी बुद्धि का एक साधन" बन सके।
जैसा कि लुडमिल्ला कहती हैं, नम्रता से दूसरों की सेवा करना एक तरीका है जिससे हम “स्वर्ग के राज्य के प्रतिनिधि” बन सकते हैं। हम अजनबियों के लिए बिस्तर उपलब्ध करा पाए या नहीं, हमें अलग-अलग और रचनात्मक तरीकों से दूसरों की जरूरतों को अपनी से ऊपर रखना है । आज हम संसार के अपने हिस्से में परमेश्वर के राज्य का विस्तार कैसे कर सकते है?
परमेश्वर दागों को साफ करते हैं
क्या हो अगर हमारे कपड़े अधिक कार्यात्मक बन जाए , केचप या सरसों का सॉस या एक पेय गिराने के बाद वे अपने आप खुद को साफ करने की क्षमता रख पाए ? बीबीसी के अनुसार, चीन में इंजीनियरों ने एक विशेष "कोटिंग विकसित की है जिसके द्वारा सूती कपड़े पराबैंगनी रोशनी के संपर्क में आते ही खुद को दागों और दुर्गन्ध से साफ़ कर सकते हैं।" क्या आप स्वयं-सफाई कपड़े रखने के प्रभावों की कल्पना कर सकते हैं?
एक खुद को साफ़ करने वाली परत दाग़ वाले कपड़ों के लिए काम कर सकती है, लेकिन केवल परमेश्वर ही आत्मा पर लगे दाग़ों को साफ कर सकते हैं। प्राचीन यहूदा में, परमेश्वर अपने लोगों से क्रोधित था क्योंकि उन्होंने "अपनी पीठ फेर ली थी,” खुद को भ्रष्टाचार और बुराई के लिए दे दिया था, और झूठे देवताओं की आराधना कर रहे थे (यशायाह 1:2-4)। लेकिन स्थिति को और बदतर बनाने के लिए, उन्होंने बलिदान चढ़ाने, धूप जलाने, बहुत प्रार्थना करने और पवित्र सभाओं में एक साथ इकट्ठा होने के द्वारा स्वयं ही खुद को शुद्ध करने की कोशिश की। फिर भी उनके पाखंडी और पापी हृदय बने रहे (पद. 12-13)। उनके लिए उपाय यह था कि वे अपने होश में आ जाएं और पश्चातापी हृदय से उनकी आत्मा पर लगे दागों को एक पवित्र और प्रेममय परमेश्वर के सामने लाये। उसका अनुग्रह उन्हें शुद्ध करेगा और उन्हें आत्मिक रूप से "बर्फ के समान सफेद" बना देगा (पद १८)।
जब हम पाप करते हैं, तो कोई स्व-सफाई समाधान नहीं होता। एक विनम्र और पश्चातापी हृदय के साथ, हमें अपने पापों को स्वीकार करना है और उन्हें परमेश्वर की पवित्रता के साफ़ करने वाले प्रकाश के नीचे लाना है। हमें उनसे फिरकर और उसके पास लौटना है। और वह एकमात्र, जो आत्मा के दाग़ों को साफ करता है, हमें पूर्ण क्षमा और नयी संगति प्रदान करेगा।
जानने की सीमाओं से परे
यह एक कठिन दिन था जब मेरे पति को पता चला कि कई अन्य लोगों की तरह, उन्हें भी जल्द ही कोविद-19 महामारी के परिणामस्वरूप रोजगार से निकाल दिया जाएगा। हमें विश्वास था कि परमेश्वर हमारी मूल जरूरतों को पूरा करेंगे, लेकिन यह कैसे होगा इसकी अनिश्चितता अभी भी भयानक थी।
जैसे ही मैं अपनी उलझी हुई भावनाओं के साथ आगे बढ़ी, मैंने खुद को सोलहवीं शताब्दी के सुधारक जॉन ऑफ द क्रॉस की एक पसंदीदा कविता पर दोबारा गौर करते हुए पाया। शीर्षक "मैं अंदर गया, मुझे नहीं पता कहाँ," कविता समर्पण की यात्रा में पाए जाने वाले आश्चर्य को दर्शाती है, जब, "जानने की सीमाओं को पार करते हुए," हम "परमेश्वर को उसके सभी रूपों में समझना" सीखते हैं। और इसलिए ऐसे समय के दौरान मैंने और मेरे पति ने यही करने की कोशिश की : जो हमारे नियंत्रण में है उससे अपना ध्यान हटाकर और अनपेक्षित, रहस्यमय और उन सुन्दर तरीको को समझे जिनके द्वारा हम परमेश्वर को अपने चारों ओर पा सकते है।
प्रेरित पौलुस ने विश्वासियों को देखी से अनदेखी, बाहरी से भीतर की वास्तविकताओं की ओर, और अस्थायी संघर्षों से "सनातन महिमा जो उन सब से अधिक है" की यात्रा के लिए आमंत्रित किया (2 कुरिन्थियों 4:17)।
पौलुस ने ऐसा आग्रह इसलिए नहीं किया क्योकि उसे उनके संघर्षों पर सहानुभूति नहीं थी। वह जानता था कि जो कुछ वे समझ सकते हैं, उसे छोड़ देने के द्वारा ही वे आराम, आनंद और आशा का अनुभव कर सकते हैं जिसकी उन्हें अत्यधिक आवश्यकता थी (पद. 10, 15-16)। तथा वे सभी चीजों को नया बनाने वाले मसीह के जीवन के आश्चर्य को जाने।
उसकी शांति
कई महीनों तक, मैंने कार्यस्थल की गहन राजनीति और साज़िशों का सामना किया। चिंता करना मेरा एक स्वभाव बन गया था, इसलिए खुद को शांति में पाकर मैं हैरान था। चिंतित महसूस करने के बजाय, मैं शांत मन और हृदय से जवाब दे पा रहा था। मैं जानता था कि यह शांति केवल परमेश्वर से ही मिल सकती है।
इसके विपरीत, मेरे जीवन में एक और दौर था जब सब कुछ ठीक चल रहा था─और फिर भी मैंने अपने दिल में एक गहरी अशांति महसूस की। मुझे पता था कि ऐसा इसलिए था क्योंकि मैं परमेश्वर और उसकी अगुवाई पर भरोसा करने के बजाय अपनी क्षमताओं पर भरोसा कर रहा था। पीछे मुड़कर देखने पर, मैंने महसूस किया है कि सच्ची शांति—परमेश्वर की शांति—हमारी परिस्थितियों से नहीं, बल्कि उस पर हमारे भरोसे से परिभाषित होती है।
परमेश्वर की शांति हमें तब मिलती है जब हमारा मन स्थिर होता है (यशायाह 26:3)। इब्रानियों में, स्थिर शब्द का अर्थ है "आश्रित होना।" जब हम उस पर निर्भर होंगे, हम उसकी शांत उपस्थिति का अनुभव करेंगे। हम परमेश्वर पर भरोसा कर सकते हैं, यह याद करते हुए कि वह अभिमानी और दुष्टों को नम्र करेगा और उन लोगों के मार्ग को सुगम करेगा जो उससे प्रेम करते हैं (वव. 5-7)।
जब मैंने कठिनाई के समय में आराम के बजाय शांति का अनुभव किया, तो मैंने पाया कि परमेश्वर की शांति संघर्ष की अनुपस्थिति नहीं है, बल्कि संकट में भी सुरक्षा की गहन भावना है। यह एक ऐसी शांति है जो मनुष्यों की समझ से परे है और सबसे कठिन परिस्थितियों के बीच में हमारे दिलों और दिमागों की रक्षा करती है (फिलिप्पियों 4:6-7)।