नवंबर 1742 में, चार्ल्स वेस्ली द्वारा प्रचारित सुसमाचार संदेश के विरोध में इंग्लैंड के स्टैफोर्डशायर में दंगा भड़क उठा। ऐसा लगता था कि चार्ल्स और उनके भाई जॉन चर्च की कुछ पुरानी परंपराओं को बदल रहे थे, और यह शहर के कई लोगों को अस्वीकार था।
जब जॉन वेस्ली ने दंगे के बारे में सुना, तो वह अपने भाई की मदद करने के लिए स्टैफोर्डशायर पहुंचे। जल्द ही एक अनियंत्रित भीड़ ने उस जगह को घेर लिया जहाँ जॉन ठहरे हुए थे। साहसपूर्वक, वह उनके अगुवों के साथ आमने-सामने मिले, उनके साथ इतनी शांति से बात करी कि एक-एक करके उनका गुस्सा शांत हो गया।
जॉन वेस्ली की सौम्य और शांत आत्मा ने एक संभावित क्रूर भीड़ को शांत कर दिया। लेकिन यह कोई सज्जनता नहीं थी जो उनके हृदय में स्वाभाविक रूप से उत्पन्न हुई थी। बल्कि, यह उद्धारकर्ता का हृदय था जिसका वेस्ली इतनी नज़दीकी से अनुसरण करते थे। यीशु ने कहा, “मेरा जूआ अपने ऊपर उठा लो और मुझ से सीखो, क्योंकि मैं नम्र और मन में दीन हूं, और तुम अपने मन में विश्राम पाओगे” (मत्ती 11:29)। नम्रता का यह जूआ हमारे लिए प्रेरित पौलुस की चुनौती के पीछे सच्ची शक्ति बन गया: “अर्थात सारी दीनता और नम्रता सहित, और धीरज धरकर प्रेम से एक दूसरे की सह लो” (इफिसियों 4:2)।
हमारी मानवीयता में, ऐसी धीरजता हमारे लिए असंभव है। परन्तु हम में आत्मा के फल के द्वारा, मसीह के हृदय की नम्रता हमें अलग कर सकती है और हमें शत्रुतापूर्ण संसार का सामना करने के लिए तैयार कर सकती है। जब हम ऐसा करते हैं, तो हम पौलुस के शब्दों को पूरा करते हैं, “तुम्हारी कोमलता सब मनुष्यों पर प्रगट हो” (फिलिप्पियों 4:5)।
आज की संस्कृति नम्रता को कमज़ोरी क्यों मानती है? कैसे वास्तव में नम्रता सामर्थी है?
पिता, कभी-कभी मैं उन लोगों को पलटकर चोट पहुँचाना चाहता हूँ जिन्होंने मुझे चोट पहुँचाई है। मुझे उन क्षणों में याद दिलाएं कि यीशु ने अपने विरोधियों के प्रति नम्रता और करुणामयी हृदय प्रदर्शित किया था