19वीं शताब्दी में, भारत में सबसे महत्वाकांक्षी निजी गृह निर्माण परियोजना शुरू हुई। कार्य जारी रहा जब तक की—12 साल बाद महाराजा सयाजीराव गायकवाड़ III के “शाही परिवार निवास” का समापन हुआ। उसका परिणाम गुजरात के वडोदरा में लक्ष्मी विलास महल था। वह भारत में सबसे बड़ा निजी निवास महल है और माना जाता है की लंदन में बकिंघम महल से लगभग 4 गुना बड़ा है। उसमें 170 कमरे हैं  जिसमें अच्छी तरह से बनाये हुए कट्टीभचित्र, झूमर, कलाकृतियां और लिफ्ट के साथ जो की 500 एकड़ में बनाया गया है। 

यह परियोजना, महत्वाकांक्षी के रूप में था, लेकिन मत्ती 16 में यीशु ने अपने चेलों को जिस “इमारत” के इरादे के बारे में बताया उसकी तुलना में कुछ नहीं था। पतरस का यह पुष्टीकरन करने के बाद की यीशु ही “परमेश्वर का पुत्र मसीह है”(16), यीशु ने कहा, “और मैं भी तुझ से कहता हूँ की तू पतरस है, और मैं इस पत्थर पर अपनी कलीसिया बनाऊंगा, और अधोलोक के फटक उस पर प्रबल न होंगे.”(18)। ) जबकि धर्मशास्त्री “चट्टान” की पहचान पर बहस करते हैं, लेकिन यीशु के इरादों के बारे में कोई बहस नहीं है। वह पृथ्वी की छोर तक फ़ैलाने के लिए अपनी कलीसिया बनाता (मत्ती 28:19-20), दुनिया भर के हर राष्ट्र और जातीय समूह के लोगों के साथ। (प्रकाशितवाक्य 5:9)। 

इस भवन परियोजना की लागत? क्रूस पर यीशु मसीह के अपने लहू का बलिदान (प्रेरितों 20:28)। उनके “भवन” के सदस्यों के रूप में (इफिसिओं 2:11), इतनी बड़े दाम से खरीदे हुए, हम उनके प्रेममय बलिदान का जश्न मनाएं और इस महान कार्य में उनके साथ शामिल हों।