एक बच्चे के रूप में, एक समय था जब मुझे स्कूल जाने में डर लगता था। कुछ लड़कियां मेरे साथ क्रूर शरारतें कर मुझे धमका रही थीं। तो अवकाश के दौरान, मैं लाइब्ररी में शरण लेती थी, जहाँ मैं मसीही कहानियों की एक श्रृंखला पढ़ी। मुझे याद है जब मैंने पहली बार “यीशु” नाम पढ़ा था। किसी न किसी तरह, मुझे यह पता था की यह उस व्यक्ति का नाम है जो मुझसे प्रेम करता है। उसके बाद के महीनों में, जब भी मैं आने वाली पीड़ा से डरकर स्कूल में प्रवेश करता, मैं प्रार्थना करता था, “यीशु, मेरी रक्षा करें।” मैं मजबूत और शांत महसूस करता था, यह जानते हुए कि वह मुझे देख रहा है। समय के साथ, लड़कियां मुझे धमकाने से थक गईं और बंद कर दी।

कई साल बीत गए, और उसके नाम पर भरोसा करना मुझे कठिन समय में निरंतर बनाए रखता है। उसके नाम पर भरोसा रखना यह विश्वास करना है की वह अपने चरित्र के बारे में जो कहते है वह सत्य है, मुझे उसमें आराम करने की अनुमति देता है।

दाऊद भी, परमेश्वर के नाम पर भरोसा करने की सुरक्षा को जानता था। जब वह भजन 9 लिखा, वह परमेश्वर को सर्व शक्तिमान प्रभु के रूप में जो न्यायी और विश्वासयोग्य है पहले से ही अनुभव कर चूका था। (7-8, 10,16)। इस तरह दाऊद ने अपने शत्रुओं के विरुद्ध युद्ध में जाकर परमेश्वर के नाम पर अपना भरोसा दिखाया, अपने हथियारों या सैन्य कौशल पर भरोसा नहीं, लेकिन परमेश्वर पर जो की फलस्वरूप उसके पास एक “पिसे हुओं के लिये ऊँचा गढ़”(9) के द्वारा आए।

एक छोटी सी बच्ची के रूप में, मैंने उनके नाम को पुकारा और अनुभव किया कि वह किस प्रकार इस पर खरा उतरा। हम हमेशा उनके नाम—यीशु—उस व्यक्ति का नाम जो हमसे प्यार करता है पर भरोसा रख सकें।