ऑस्ट्रेलिया में एक कृषि पशु बचाव संगठन के स्वयंसेवकों  को  एक भटकती हुई भेड़ मिली जो  34 किलो से अधिक गंदी, उलझी हुई ऊन के बोझ से दबी  थी। बचाव दल को संदेह था कि भेड़  भूल से,  कम से कम पांच साल से खोई हुई थी, और झाडी में फंसी थी। स्वयंसेवकों ने उसके भारी ऊन को कष्टप्रद प्रक्रिया द्वारा काटा  और उसे शांत किया। एक बार अपने बोझ से मुक्त होकर, बराक ने अच्छी तरह खाया । उसके पैर मजबूत हो गए।  शरणस्थान में अपने बचाव दल और अन्य जानवरों के साथ समय बिताने के साथ–साथ वह और अधिक आश्वस्त और संतुष्ट हो गयी।

भजनहार दाऊद ने भारी बोझ से दबे होने, भूले हुए और खोए हुए महसूस करने और बचाव अभियान के लिए बेताब होने के दर्द को समझा। भजन संहिता 38 में, दाऊद ने परमेश्वर की दोहाई दी। उसने अलगाव, विश्वासघात, और लाचारी का अनुभव किया था (पद 11–14)। फिर भी, उसने पूरे विश्वास के साथ प्रार्थना की, “हे प्रभु, मैं तेरी बाट जोहता हूं, हे मेरे परमेश्वर यहोवा, तू उत्तर देगा (पद 15)। दाऊद ने अपनी दुर्दशा से इनकार नहीं किया, या अपने आंतरिक कष्ट और शारीरिक बीमारियों को कम नहीं किया  (पद 16–.20)। इसके बजाय, उसने भरोसा किया कि परमेश्वर निकट होगा और उसे सही समय पर और सही तरीके से उत्तर देगा (पद 21– 22) ।

जब हम शारीरिक, मानसिक, या भावनात्मक बोझों से बोझिल महसूस करते हैं, जिस दिन से उसने हमें बनाया है उस दिन से परमेश्वर उस बचाव अभियान के प्रति वचनबद्ध है जिसकी उसने योजना बनाई थी। हम उसकी उपस्थिति पर भरोसा कर सकते हैं जब हम उसे पुकारते हैं, “हे मेरे प्रभु, और मेरे उद्धारकर्ता, मेरी सहायता के लिये फुर्ती कर (पद 22)।