उनके नए देश में सब कुछ अत्यधिक अलग महसूस हुआ — नई भाषा, स्कूल, रीति-रिवाज, यातायात और मौसम। वे सोचते थे कि वे  कैसे कभी भी  इस नए वातावरण में समायोजित हों पाएंगे। एक नए देश में उनके नए जीवन में उनकी मदद करने के लिए पास के एक चर्च के लोग उनके पास इकट्ठे हुए। पल्लवी उस जोड़े को एक स्थानीय खाद्य बाजार में खरीदारी करने के लिए ले गयी ताकि उन्हें दिखा सके कि वहाँ क्या-क्या उपलब्ध है और कैसे चीजें खरीदनी हैं। जब वे बाजार में घूम रहे थे, तब अपनी मातृभूमि के अपने पसंदीदा फल-अनार को देखकर उनकी आँखे बड़ी हो गयी और होठों पर बड़ी सी मुस्कान फैल गयी। उन्होंने अपने प्रत्येक बच्चे के लिए एक-एक अनार खरीदा और कृतज्ञता में एक पल्लवी के हाथों में भी दिया। एक छोटा सा फल और नए मित्र उनके लिए अजनबी, नए देश में बड़ा आश्वासन लेकर आया।

परमेश्वर ने, मूसा के माध्यम से, अपने लोगों के लिए नियमों की एक सूची दी, जिसमें उनके बीच रह रहे परदेशियों को “अपने मूल निवासी” के रूप में मानने की आज्ञा शामिल थीI (लैव्यव्यवस्था 19:34) “उससे अपने समान ही प्रेम रखना” परमेश्वर ने आगे उन्हें आज्ञा दी। यीशु ने इसे परमेश्वर से प्रेम करने के बाद दूसरी सबसे बड़ी आज्ञा कहाI (मत्ती 22:39) क्योंकि परमेश्वर(यहोवा) भी “परदेशियों की रक्षा करता हैI” (भजन संहिता 146:9)

परमेश्वर की आज्ञा मानने के अलावा जब हम नए मित्रों को हमारे देश में जीवन के अनुकूल होने में मदद करते हैं, तो हमें स्मरण होता है कि हम भी एक वास्तविक अर्थ में “पृथ्वी पर परदेशी” हैं (इब्रानियों 11:13) और हम आने वाली नयी स्वर्गीय भूमि की प्रत्याशा में बढ़ते है।