फ्रेड्रिक ब्राउन की लघु रोमांचक कहानी “नॉक”(दस्तक/Knock) में उन्होंने लिखा, पृथ्वी (गृह/planet) पर का आखिरी आदमी एक कमरे में अकेला बैठा थाl दरवाजे पर दस्तक हुयीl” हाँ! वे कौन हो सकते हैं,और वे क्या चाहते हैं? उसके लिए कौन रहस्यमय प्राणी आया है? आदमी अकेला नहीं है l
हम भी नहीं हैं l
लौदीकिया की कलीसिया ने अपने द्वार पर दस्तक सुनीI (प्रकाशितवाक्य 3:20) उनके लिए कौन सा अलौकिक प्राणी आया था? उसका नाम यीशु था, “प्रथम और अंतिम . . . जो जीवता हैI” (1:17-18) उसकी आखें आग की तरह प्रज्वलित थीं, और उसका मुख “ऐसा प्रज्वलित था, जैसा सूर्य कड़ी धूप के समय चमकता है” (पद.16) जब उसके सबसे अच्छे मित्र यूहन्ना ने उसकी महिमा की एक झलक देखी, तो वह “उसके पांवों पर मुर्दा सा गिर पड़ा” (पद.17) मसीह में विश्वास का आरम्भ परमश्वर के भय से होती हैl
हम अकेले नहीं हैं,और यह सुकून देने वाला भी हैl यीशु “परमेश्वर की महिमा का प्रकाश, और उसके तत्व की छाप है,और सब वस्तुओं को अपनी सामर्थ्य के वचन से संभालता है”(इब्रानियों 1:3) फिर भी मसीह हमें मारने के लिए नहीं बल्कि हमसे प्रेम करने के लिए अपनी शक्ति का उपयोग करता हैl उसका निमंत्रण सुने, “यदि कोई मेरा शब्द सुनकर द्वार खोलेगा, तो मैं उसके पास भीतर आकर उसके साथ भोजन करूँगा, और वह मेरे साथ” (प्रकाशितवाक्य 3:20) हमारा विश्वास डर से शुरू होता है—दरवाजे पर कौन है?—और यह एक स्वागत और मजबूत आलिंगन में समाप्त होता है l यीशु हमेशा हमारे साथ रहने की प्रतिज्ञा करता है, भले ही हम पृथ्वी पर अंतिम व्यक्ति हों l ईश्वर का धन्यवाद हो, हम अकेले नहीं हैं l
हम मसीह के प्रेम को उसकी सामर्थ्य से अलग क्यों नहीं कर सकते हैं? दोनों ही क्यों अत्यावश्यक रूप से महत्वपूर्ण हैं?
हे यीशु, मैं आपको अपने हृदय और जीवन में आमंत्रित करता हूँ l