वक्ता ने समर्पण की प्रार्थना में हमारी अगुवाई की, और हम हजारों विश्वविद्यालय के छात्रों ने अपना सिर झुका लिया। जब उन्होंने उन लोगों को खड़े होने के लिए कहा जिन्होंने विदेशी मिशनों में सेवा करने की बुलाहट को महसूस किया था, तब मैंने महसूस किया कि मेरी मित्र लिनेट ने यह जानते हुए अपनी कुर्सी छोड़ दी कि वह फिलीपींस में रहकर सेवा करने की प्रतिज्ञा कर रही है। फिर भी मुझे खड़े होने की कोई इच्छा महसूस नहीं हुई। अपने देश की आवश्यकताओं को देखते हुए, मैं अपनी जन्मभूमि में ही रहकर परमेश्वर के प्रेम को बाँटना चाहता था। परन्तु एक दशक बाद, मैने दूसरे देश में परमेश्वर की सेवा करते हुए उन लोगों के बीच अपना घर बनाया जो उसने मेरे पड़ोसियों के रूप में मुझे दिए थे। मैं अपना जीवन कैसे व्यतीत करूँगा, इस बारे में मेरे विचार तब बदल गए जब मुझे इस बात का एहसास हुआ कि परमेश्वर ने मुझे उस अभियान से अलग कार्य के लिए आमंत्रित किया है जिसका मैंने अनुमान लगाया था।

जिन लोगों से यीशु मिलता था उनको अक्सर वह आश्चर्यचकित किया करता था, जिसमें वे मछुआरे भी शामिल थे जिन्हें उसने अपने पीछे हो लेने के लिए बुलाया था। जब मसीह ने उन्हें लोगों को पकड़ने का एक नया मिशन (विशेष कार्य) दिया, तो पतरस और अन्द्रियास “तुरंत” अपना जाल छोड़कर उसके पीछे हो लिए (मत्ती 4:20), और याकूब एवं योना ने भी “तुरंत” अपनी नाव छोड़ दी (पद 22)। वे उस पर भरोसा करते हुए यह न जानते हुए भी कि वे कहाँ जा रहे थे, यीशु के साथ इस नए अभियान पर निकल पड़े।

निःसंदेह, परमेश्वर बहुत से लोगों को अपनी सेवा वहीं पर करने के लिए बुलाता है जहाँ पर वे हैं! चाहे रुकना हो या जाना हो, हम सब उसकी ओर हमें अद्भुत अनुभवों और उसके लिए जीवन व्यतीत करने के अवसरों के साथ आश्चर्यचकित करने की आशा से देख सकते हैं, जिस तरह से हमने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा।