समुद्र विज्ञानी सिल्विया अर्ल ने मूँगा-चट्टान(coral reef)) को नष्ट होते प्रत्यक्ष रूप से देखा है। उन्होंने मिशन ब्लू(Mission Blue) की स्थापना की, जो विश्वव्यापी “होप स्पॉट्स(hope spots)” के विकास के लिए समर्पित एक संगठन है। दुनिया भर में ये विशेष स्थान “समुद्र के संकटमय स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण” हैं, जो पृथ्वी पर हमारे जीवन को प्रभावित करते हैं। इन क्षेत्रों की साभिप्राय देखभाल के द्वारा, वैज्ञानिकों ने पानी के भीतर समुदायों के संबंधों को बहाल होते और विलोप होने वाली प्रजातियों के जीवन को संरक्षित होते देखा है।

भजन संहिता 33 में, भजनकार स्वीकार करता है कि यहोवा के वचन से सब कुछ बना और यह सुनिश्चित किया कि उसने जो कुछ बनाया वह स्थिर रहेगा (पद.6-9)। चूँकि परमेश्वर पीढ़ी से पीढ़ी तक और राष्ट्रों पर शासन करता है (पद.11-19), वह अकेले ही रिश्तों को बहाल करता है, जीवन बचाता है,और आशा को पुनर्जीवित करता है। हालाँकि, परमेश्वर हमें दुनिया और उसके द्वारा बनाए गए लोगों की देखभाल में उसके साथ शामिल होने के लिए आमंत्रित करता है।

हर बार जब हम बादलों, धूसर आकाश में बिखरे इंद्रधनुष की दमक या चट्टानी तट से टकराती समुद्र की चमकदार लहरों के लिए परमेश्वर की स्तुति करते हैं, तो हम उसके “अचूक प्रेम” और उपस्थिति की घोषणा कर सकते हैं क्योंकि उस पर “हमारी आशा है” (पद 22) l

जब हम दुनिया की वर्तमान स्थिति पर विचार करते हुए निराशा या भय की ओर प्रलोभित होते हैं, तो हम यह मानना शुरू कर सकते हैं कि हम कोई फर्क नहीं डाल सकते। हालाँकि, जब हम परमेश्वर की देखभाल करने वाली टीम के सदस्यों के रूप में अपनी भूमिका निभाते हैं, तो हम उसे सृष्टिकर्ता के रूप में सम्मान दे सकते हैं और दूसरों को आशा खोजने में मदद कर सकते हैं क्योंकि वे यीशु पर अपना भरोसा रखते हैं।