जब वॉलेस और मेरी ब्राउन एक मरते हुए चर्च में पास्टर बनने के लिए इंग्लैंड के एक गरीब हिस्से में गए, तो उन्हें नहीं पता था कि एक गिरोग ने उनके चर्च और घर के परिसर को अपना मुख्यालय बना लिया है l दंपत्ति की खिड़कियों पर ईंटें फेंकी गयीं, उनके बाड़ों में आग लगा दी गयी और उनके बच्चों को धमकाया गया l दुर्व्यवहार महीनों तक जारी रहा; पुलिस इसे रोक न सकी l  

नहेम्याह की किताब बताती है कि कैसे इस्राएलियों ने यरूशलेम की टूटी हुयी दीवारों का पुनःनिर्माण किया l जब स्थानीय लोग “गड़बड़ी [डालने]” के लिए निकले, हिंसा की धमकी दी (नहेम्याह 4:8), तो इस्राएलियों ने “परमेश्वर से प्रार्थना की, और . . . पहरुए ठहरा दिए” (पद.9) l यह महसूस करते हुए कि परमेश्वर ने इस परिच्छेद द्वारा उनको निर्देशित किया है, ब्राउन, उनके बच्चे और कुछ अन्य लोग अपने चर्च की दीवारों के चारों ओर घूमकर, प्रार्थना की कि वह उनकी रक्षा के लिए स्वर्गदूतों को रक्षक के रूप में स्थापित करेगा l गिरोह ने मज़ाक उड़ाया, लेकिन अगले दिन, उनमें से केवल आधे ही आये l उसके अगले दिन, वहाँ केवल पांच थे, और उसके अगले दिन, कोई नहीं आया l ब्राउन लोगों को बाद में पता चला कि गिरोह ने लोगों को आतंकित करना छोड़ दिया है l 

प्रार्थना का यह चमत्कारी उत्तर हमारी अपनी सुरक्षा का कोई सूत्र नहीं है, बल्कि यह एक अनुस्मारक है कि ईश्वर के कार्य का विरोध होगा और प्रार्थना के हथियार से उससे लड़ा जाना चाहिए l नहेम्याह ने इस्राएलियों से कहा, “प्रभु जो महान् और भय्योग्य है, उसी को स्मरण” करना (पद.14) l वह हिंसक दिलों को भी आजाद कर सकता है l