जब क्रिस्टिन अपने चीनी पति के लिए एक विशेष पुस्तक खरीदना चाहती थी, तो उसे चीनी भाषा में केवल एक बाइबल ही मिली l हलाकि उनमें से कोई भी मसीह में विश्वास करने वाला नहीं था, फिर भी उसे उम्मीद थी कि वह उपहार की सराहना करेगा l बाइबल को पहली नज़र में देखकर वह क्रोधित हो गया, लेकिन अंततः उसने इसे समझ लिया l जैसे-जैसे उसने पढ़ा, वह इसके पन्नों की सच्चाई से विवश हो गया l इस अप्रत्याशित घटनाक्रम से परेशान होकर, क्रिस्टिन ने उसका खंडन करने के लिए धर्मग्रंथ पढ़ना आरम्भ कर दिया l उसे आश्चर्य हुआ, उसने जो पढ़ा उससे आश्वस्त होकर उसे भी यीशु पर विश्वास हो गया l
प्रेरित पौलुस पवित्रशास्त्र की बदलती प्रकृति को जानता था l रोम की जेल से लिखते हुए, उसने तीमुथियुस से, जिसका उन्होंने मार्गदर्शन किया था, आग्रह किया कि “तू उन बातों पर जो तू ने सीखीं हैं . . . दृढ़ रह” क्योंकि “बचपन से पवित्रशास्त्र तेरा जाना हुआ है” (2 तीमुथियुस 3:14-15) l मूल भाषा, यूनानी में “दृढ़ रह” का अर्थ बाइबल में बताई गयी बातों में “बने रहना” है l यह जानते हुए कि तीमुथियुस को विरोध और उत्पीड़न का सामना करना पड़ेगा, पौलुस चाहता था कि वह चुनौतियों के लिए तैयार रहे; उसका मानना था कि उसके शिष्य को बाइबल में ताकत और ज्ञान मिलेगा क्योंकि उसने इसकी सच्चाई पर विचार करने में समय बिताया था l
परमेश्वर अपनी आत्मा के द्वारा पवित्रात्मा को हमारे लिए जीवित करता है l जैसे ही हम उसमें निवास करते हैं, वह हमें उसके जैसा बनाने के लिए बदल देता है l जैसा कि उन्होंने सियो-हू और क्रिस्टिन के साथ किया था l
बाइबल पढ़ने और मनन करने में समय बिताने से आपमें क्या बदलाव आया है? पवित्रशास्त्र आपके लिए कब जिवंत हो उठा है?
सभी जीवित चीजों के रचयिता, बाइबल को ऐसी जीवनदायी पुस्तक बनाने के लिए धन्यवाद l मैं पवित्रशास्त्र पढ़ते समय खुद को आपके प्रति समर्पित करूँ l