1701 में, इंग्लैंड के चर्च ने दुनिया भर में मिशनरियों को भेजने के लिए “सोसाइटी फॉर द प्रोपेगेशन ऑफ द गॉस्पेल” की स्थापना की। उन्होंने जो आदर्श वाक्य चुना वह था “ट्रांज़िएन्स एडिउवा नोज़(transiens adiuva nos)—लैटिन में जिसका अर्थ है “आ,और हमारी सहायता कर।” यह पहली शताब्दी से सुसमाचार के राजदूतों का आह्वान रहा है, क्योंकि यीशु के अनुयायी उनके प्रेम और क्षमा का संदेश उस दुनिया तक ले जाते हैं, जिसे इसकी सख्त जरूरत है।

वाक्यांश “आ,और हमारी सहायता कर।” प्रेरितों के काम 16 में वर्णित “मकिदुनियाई पुकार” से आया है। पौलुस और उनकी मंडली एशिया माइनर (वर्तमान काल का आधुनिक तुर्की, पद- 8) के पश्चिमी तट पर त्रोआस पहुंची थी। वहाँ, “पौलुस ने रात को एक दर्शन देखा कि एक मकिदुनी पुरुष खड़ा खड़ा हुआ उससे विनती करके कह रहा है, “पार उतरकर मकिदुनिया में आ,और हमारी सहायता कर” (पद- 9)। दर्शन प्राप्त करने के बाद, पौलुस और उसके साथियों ने “तुरंत मकिदुनिया जाना चाहा ” (पद- 10)। उन्होंने बुलाहट के बेहद ज़रूरी महत्त्व को समझा।

हर किसी को समुद्र पार करने के लिए नहीं बुलाया जाता है, लेकिन हम अपनी प्रार्थनाओं और धन से उन लोगों का समर्थन कर सकते हैं जो ऐसा करते हैं। और हम सभी किसी को, चाहे कमरे के पार, सड़क पर, या समुदाय में, यीशु के सुसमाचार के बारे में बता सकते हैं। आइए प्रार्थना करें कि हमारा भला परमेश्वर हमें पार जाने में और लोगों को सबसे बड़ी मदद करने में सक्षम बनाएगा, वह है – यीशु के नाम में क्षमा प्राप्ति का अवसर।