अपने दृष्टांत एक बुद्धिमान स्त्री में, जॉर्ज मैकडोनाल्ड दो लड़कियों की कहानी बताते हैं, जिनका स्वार्थ स्वयं सहित सभी के लिए दुख लाता है, जब तक कि एक बुद्धिमान महिला उन्हें कई परीक्षाओं से नहीं गुज़रवाती, ताकि वह उनकी फिर से “मनोहर” बनने में मदद कर सके।
लड़कियों द्वारा प्रत्येक परीक्षा में असफल होने और शर्मिंदगी और अलगाव का सामना करने के बाद, उनमें से एक, रोसमंड को अंततः एहसास होता है कि वह खुद को नहीं बदल सकती। “क्या आप मेरी मदद नहीं कर सकती?” वह बुद्धिमान महिला से पूछती है। “मैं कर सकती हूँ,” महिला ने उत्तर दिया, “अब जब की तुमने मुझसे पूछ है।” और बुद्धिमान महिला द्वारा प्रतीकित ईश्वरीय मदद से, रोसमंड बदलना शुरू हो जाती है। फिर वह उस महिला से पूछती है कि क्या वह उसे माफ़ कर देगी उन सब परेशानियों के लिए जो उसने उस महिला को दी है। “अगर मैंने तुम्हें माफ नहीं किया होता,” महिला कहती है, “तो मैं तुम्हें ताड़ना देने की जहमत कभी नहीं उठाती।”
ऐसे समय होते हैं जब परमेश्वर हमें अनुशासित करते हैं। यह समझना महत्वपूर्ण है कि क्यों। उनकी ताड़ना प्रतिशोध के कारण नहीं होती पर पिता जैसी चिंता रखते हुए हमारी भलाई के खातिर होती है।(इब्रानियों 12:6)। वह यह भी चाहता है कि हम “उसकी पवित्रता का हिस्सा बन सकें”, “धार्मिकता और शांति” की फसल का आनंद उठा सकें (पद 10-11)। स्वार्थ दुख लाता है, लेकिन पवित्रता हमें उसके जैसा संपूर्ण, आनंदमय और “मनोहर” बनाती है।
रोसमंड बुद्धिमान महिला से पूछती है कि वह उसके जैसी स्वार्थी लड़की से कैसे प्रेम कर सकती है। उसे चूमने के लिए झुकते हुए महिला जवाब देती है, “मैंने देखा था कि तुम क्या बनने वाली हो।” परमेश्वर का सुधार भी प्रेम और हमें वैसा बनाने की इच्छा के साथ आता है जैसा वास्तव में हमें बनना आवश्यक है।
आपने अतीत में परमेश्वर के अनुशासन को कैसे समझा है? आपको और अधिक मनोहर बनाने के लिए उसने हाल ही में आपको कैसे अनुशासित किया होगा?
हे पिता परमेश्वर, आपके सुधार के लिए धन्यवाद, चाहे यह कष्टदायक भी हो। मेरी भलाई के लिए आप इसे लाते हैं।