जब मेरी पोती एलियाना सिर्फ सात वर्ष की थी, उसने अपने स्कूल में ग्वाटेमाला के एक अनाथालय के बारे में एक विडियो देखा l उसने अपनी माँ से कहा, “हमें उनकी सहायता करने के लिए वहाँ जाना होगा l” उसकी माँ ने उत्तर दिया कि वो इसके बारे में तब विचार करेंगी जब वह बड़ी हो जाएगी l 

एलियाना कभी नहीं भूली, और निश्चित रूप से, जब वह दस वर्ष की थी, तो उसका परिवार अनाथालय में सहायता करने गया l दो वर्ष बाद, वे पुनः गए, इस बार वे एलियाना के स्कूल के दूसरे परिवारों से एक जोड़े को भी साथ ले गए l जब एलियाना पंद्रह वर्ष की थी, तो वह और उसके पिता सेवा करने के लिए पुनः ग्वाटेमाला गए l 

हम कभी-कभी सोचते हैं कि छोटे बच्चों की इच्छाएँ और सपने वयस्कों की आशाओं का बोझ नहीं उठाते l लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि बाइबल ऐसा कोई भेद नहीं करती l परमेश्वर बच्चों को बुलाता है, जैसे शमूएल के मामले में (1 शमूएल 3:4) l यीशु छोटों के विश्वास का सम्मान करता है (लूका 18:16) l और पौलुस ने कहा कि युवा विश्वासियों को लोगों को केवल इसलिए उन्हें नज़रंदाज़ नहीं करना चाहिए क्योंकि वे “युवा हैं” (1 तीमुथियुस 4:12) l 

इसलिए, हमें अपने बच्चों का मार्गदर्शन करने के लिए बुलाया गया है (व्यवस्थाविवरण 6:6-7; नीतिवचन 22:6), यह पहचानते हुए कि उनका विश्वास हम सभी के लिए एक आदर्श है (मत्ती 18:3) और यह समझना कि उन्हें रोकना कुछ ऐसा है जिसके खिलाफ मसीह ने चेतावनी दी थी (लूका 18:15) l 

जब हम बच्चों में आशा की चिंगारी देखते हैं, तो वयस्कों के रूप में हमारा काम उसे प्रज्वलित करने में मदद करना है l और जैसे ही ईश्वर हमारी अगुवाई करता है, उन्हें यीशु में विश्वास और उनकी सेवा के लिए समर्पित जीवन के लिए प्रोत्साहित करें l