वर्षों तक, एक माँ ने प्रार्थना की और अपनी व्यस्क बेटी को स्वास्थ्य सेवा प्रणाली का मार्ग निर्देशन करना और परामर्श और सर्वोत्तम दवाएं खोजने में सहायता की l उसकी अत्यधिक ऊंचाइयां(highs) और गहरा उतार(lows) दिन-ब-दिन उसकी माँ के हृदय पर भारी पड़ता जा रहा था l अक्सर उदासी से थक जाने पर उसे एहसास हुआ कि उसे अपना भी ख्याल रखना होगा l एक मित्र ने सुझाव दिया कि वह अपनी चिंताओं और जिन चीज़ों को वह नियंत्रित नहीं कर सकती, उन्हें कागज़ के छोटे टुकड़ों पर लिखकर उन्हें अपने सिरहाने “परमेश्वर की थाली” पर रखें l इस सरल अभ्यास से सारा तनाव समाप्त नहीं हुआ, लेकिन उस थाली को देखकर उसे याद आया कि ये चिंताएं परमेश्वर की थाली में हैं, उसकी नहीं l 

एक तरह से, दाऊद के कई भजन उसकी परेशानियों को सूचीबद्ध करने और उन्हें परमेश्वर की थाली में रखने का उसका तरीका था (भजन 55:1,16-17) l यदि बेटे अबशालोम द्वारा तख्तापलट के प्रयास का वर्णन किया जा रहा है, तो दाऊद के “घनिष्ठ मित्र” अहितोपेल ने वास्तव में उसे धोखा दिया था और उसे मारने की साजिश में शामिल था (2 शमूएल 15-16) l इसलिए “सांझ को, भोर को, और दोपहर को [दाऊद] दोहाई [देता रहा] और कराहता [रहा],” और [परमेश्वर ने उसकी] प्रार्थना सुन [ली]” (भजन 55:1-2, 16-17) l उसने “अपना बोझ यहोवा पर डाल [देने]” का निर्णय लिया और उसकी देखभाल का अनुभव किया (पद.22) l 

हम प्रामाणिक रूप से स्वीकार कर सकते हैं कि चिंताएं और भय हम सभी को प्रभावित करते हैं l हमारे मन में भी दाऊद जैसे विचार आ सकते हैं : “भला होता कि मेरे कबूतर के से पंख होते तो मैं उड़ जाता और विश्राम पाता” (पद.6) l परमेश्वर निकट है और केवल वही है जो परिस्थितियों को बदलने की सामर्थ्य रखता है l सब उसकी थाली में रख दें l