29 जून, 1955 को संयुक्त राज्य अमेरिका ने अन्तरिक्ष में उपग्रह स्थापित करने के अपने उद्देश्य की घोषणा की l इसके तुरंत बाद, सोवियत संघ ने भी ऐसा ही करने की अपनी योजना घोषित की l अन्तरिक्ष की दौड़ आरम्भ हो गयी थी l सोवियत संग पहला उपग्रह (स्पुतनिक/Sputnik) प्रक्षेपित करने वाला था जब युरी गगारिन(Yuri Gagarin) एक बार हमारे गृह की परिक्रमा की थी यह दौड़ तब तक जारी रही, जब तक कि 20 जुलाई, 1969 को चंद्रमा की सतह पर नील आर्मस्ट्रांग की “मानव जाति के लिए विशाल छलांग/giant leap for mankind” ने अनौपचारिक रूप से प्रतियोगिता को समाप्त नहीं कर दिया l जल्द ही सहयोग का मौसम आरम्भ हुआ, जिससे अंतर्राष्ट्रीय अन्तरिक्ष स्टेशन का निर्माण हुआ l 

कभी-कभी प्रतिस्पर्धा स्वस्थ्य हो सकती है, जो हमें उन चीज़ों को हासिल करने के लिए प्रेरित करती है जो अन्यथा हम प्रयास नहीं कर पाते l हालाँकि, अन्य समय में, प्रत्स्पर्धा विनाशकारी होती है l कुरिन्थुस के चर्च में यह एक समस्या थी क्योंकि विभिन्न समूह विभिन्न चर्च अगुओं को अपनी आशा की किरण के रूप में देखते थे l पौलुस ने इसे संबोधित करने का प्रयास किया जब उसने लिखा, “न तो लगानेवाला कुछ है और न सींचनेवाला, परन्तु परमेश्वर ही सब कुछ है जो बढ़ानेवाला है” (1 कुरिन्थियों 3:7), जिससे यह निष्कर्ष निकलता है, “क्योंकि हम परमेश्वर के सहकर्मी हैं”(पद.9) l

सहकर्मी—प्रतिस्पर्धी/Co-workers—not competitors नहीं l और न केवल एक दूसरे के साथ बल्कि स्वयं परमेश्वर के साथ भी! उनके अधिकार प्रदान करना और उनके मार्गदर्शन के द्वारा, हम अपने सम्मान के बजाय उनके सम्मान के लिए, यीशु के सन्देश को आगे बढ़ाने के लिए साथी कार्यकर्ताओं के रूप में एक साथ सेवा कर सकते हैं l