जेरेमी को इस बात का एहसास नहीं था कि जब वह अपने तीन साल के पाठ्यक्रम के लिए विश्वविद्यालय पहुँचा और सबसे सस्ते छात्रावास के कमरे के लिए कहा तो वह क्या कर रहा था l “वह बहुत खराब था,” उसने याद किया l कमरा और उसका बाथरूम भयानक थे l” लेकिन उसके पास बहुत कम पैसे और बहुत कम विकल्प थे l “मैं बस यही सोच सकता था,” उसने कहा, कि “मेरे पास तीन साल बाद वापस जाने के लिए एक अच्छा घर है, इसलिए मैं इसी में पर कायम रहूँगा और यहाँ अपने समय का अधिकतम लाभ उठाऊँगा l”

जेरेमी की कहानी “पृथ्वी पर के तम्बू” में रहने की रोजमर्रा की चुनौतियों को प्रतिबिंबित करती है—एक मानव शरीर जो मर जाएगा(2 कुरिन्थियों 5:1), संसार में काम कर रहा है जो ख़त्म हो रहा है(1 यूहन्ना 2:17) l इस प्रकार हम “बोझ से दबे कराहते रहते हैं”(2 कुरिन्थियों 5:4) जब हम जीवन में आने वाली अनेक कठिनाइयों से निपटने के लिए संघर्ष करते हैं l

जो चीज़ हमें आगे बढ़ाती है वह निश्चित आशा है कि एक दिन हमारे पास एक अमर, पुनरुत्थित शरीर होगा—एक “स्वर्गिक निवास”(पद.4)—और हम वर्तमान कराह और हताशा से मुक्त संसार में रह रहे होंगे(रोमियों 8:19-20) l यह आशा हमें परमेश्वर द्वारा प्रेमपूर्वक प्रदान किये गए इस वर्तमान जीवन का अधिकतम लाभ उठाने में सक्षम बनाती है l वह हमें उन संसाधनों और प्रतिभाओं का उपयोग करने में भी सहायता करेगा जो उसने हमें दिए हैं, ताकि हम उसकी और दूसरों की सेवा कर सकें l और इसलिए “हमारे मन की उमंग यह है कि चाहे साथ रहें चाहे अलग रहें, पर हम उसे भाते रहें”(पद.9) l