द्वितीय विश्व युद्ध के समय, अमेरिकी नौसेना के मेडिकल कॉर्प्समैन लिन वेस्टन शत्रु के कब्जे वाले टापुओं पर धावा बोलने के दौरान नौसैनिकों के साथ तट पर गए l अनिवार्य रूप से, अत्यधिक हताहत हुए थे l उन्होंने घायल लड़ाकों को बाहर निकालने के लिए उनकी मरहम-पट्टी करने का पूरा प्रयास किया l एक समय, उनकी इकाई को एक शत्रु सैनिक मिला जिसके पेट में गंभीर घाव था l उस चोट में उस व्यक्ति को पानी नहीं दिया जा सकता था l उसे जीवित रखने के लिए, वेस्टन ने अंततः  इन्ट्रावेनस प्लाज्मा दिया l 

“उस प्लाज्मा को हमारे मित्रों के लिए बचाकर रखो, नौसैनिक!” नौसैनिकों में से एक चिल्लाया l वेस्टन ने उसको अनदेखा किया l वह जानता था कि यीशु क्या करता : “अपने बैरियों से प्रेम रखो”(मत्ती 5:44) l 

यीशु ने उन चुनौतीपूर्ण शब्दों को बोलने से कहीं अधिक उन्हें जीता था l जब एक शत्रुतापूर्ण भीड़ ने उसे पकड़ कर महायाजक के पास ले गयी, “जो मनुष्य यीशु को पकड़े हुए थे, वे उसे ठठ्ठों में उड़ाकर पीटने लगे”(लूका 22:63) l उनके दिखावटी मुकदमों और अमल के दौरान दुर्व्यवहार जारी रहा l यीशु ने इसे केवल सहन नहीं किया l जब रोमी सैनिकों ने उसे क्रूस पर चढ़ाया, तो उसने उनकी क्षमा के लिए प्रार्थना की(23:34) l 

हो सकता है कि हमारा सामना किसी वास्तविक शत्रु से न हो जो हमें मारने का प्रयास कर रहा हो l लेकिन विदित है कि उपहास और तिरस्कार सहना कैसा होता है l हमारी स्वाभाविक प्रतिक्रिया क्रोध में प्रतिक्रिया देना होता है l यीशु ने मानक बताया : “अपने सतानेवालों के लिए प्रार्थना करो”(मत्ती 5:44) l 

आज, आइये उस प्रकार के प्रेम में चलें, दयालुता दिखाएँ जैसा यीशु ने किया था—यहाँ तक कि अपने शत्रुओं पर भी l