नीदरलैंड में सर्दियां शायद ही कभी बहुत अधिक बर्फ लाती हैं, लेकिन, अधिक ठण्ड होने पर नहरों पर बर्फ जम जाती है l जब मेरे पति, टॉम, वहाँ बड़े हो रहे थे, तो उनके माता-पिता का पारिवारिक नियम था : “जब तक बर्फ इतनी मोटी न हो जाए कि घोड़े का वजन सह सके, तब तक बर्फ से दूर रहें l” क्योंकि घोड़े अपनी उपस्थिति का सबूत पीछे छोड़ देते थे, टॉम और उसके मित्रों ने सड़क से कुछ खाद/मिट्टी उठाकर पतली बर्फ के सतह पर डाला और उस पर जाने का जोखिम उठाया l उन्हें कोई हानि नहीं पहुँची, न ही किसी को पता चला, परन्तु वे अपने मन में जानते थे कि वे अनाज्ञाकारी थे l
आज्ञाकारिता हमेशा स्वाभाविक रूप से नहीं आती l आज्ञापालन करने या न करने का विकल्प कर्तव्य की भावना या सज़ा के डर से उत्पन्न हो सकता है l लेकिन हम अपने ऊपर अधिकार रखने वालों के प्रति प्रेम और सम्मान के कारण उनकी आज्ञा का पालन करना भी चुन सकते हैं l
यूहन्ना 14 में, यीशु ने यह कहकर अपने शिष्यों को चुनौती दी, “यदि कोई मुझ से प्रेम रखेगा तो वह मेरे वचन को मानेगा, और मेरा पिता उससे प्रेम रखेगा . . . जो मुझ से प्रेम नहीं रखता, वह मेरे वचन नहीं मानता”(पद.23-24) l आज्ञा मानना हमेशा आसान विकल्प नहीं होता है, लेकिन हमारे भीतर रहने वाली आत्मा की सामर्थ्य हमें उसकी आज्ञा मानने की इच्छा और क्षमता देती है(पद.15-17) l उसकी सक्षमता से, हम उसकी आज्ञाओं का पालन करना जारी रख सकते हैं जो हमसे सबसे अधिक प्यार करता है—सजा के डर से नहीं, बल्कि प्रेम से l
आप किस तरह से जानबूझकर अनाज्ञाकारी रहे हैं? कठिन या असुविधाजनक होने पर भी आपके लिए परमेश्वर की आज्ञा मानना क्यों महत्वपूर्ण है?
प्रेमी परमेश्वर, कृपया आपके निर्देशों को सुनने के लिए मेरे हठी हृदय को नरम करें l मुझे अपना एजेंडा/कार्यसूची अलग रखने और ईमानदारी से आपकी आज्ञा मानने में मदद करें l