पौलुस यहूदी शुद्धिकरण समारोह में मंदिर में गया था(प्रेरितों 21:26) l लेकिन कुछ उपद्रवियों ने सोचा कि वह क़ानून के विरुद्ध शिक्षा दे रहा था, इसलिए उन्होंने उसे मार डालना चाहा(पद.31) l रोमी सैनिक तुरंत हस्तक्षेप कर पौलुस को गिरफ्तार कर लिये, उसे बाँध दिया, और भीड़ के चिल्लाते हुए, “उसका अंत कर दो!”(पद.36) उसे मंदिर क्षेत्र से बाहर ले गए l
प्रेरित ने इस धमकी पर क्या प्रतिक्रिया व्यक्त दी? उसने पलटन के सरदार से पुछा कि क्या वह “लोगों से बात [कर सकता है]”(पद.39) l जब रोमी सरदार ने अनुमति दी, तो पौलुस, जिसका खून बह रहा था, और घायल था, क्रोधित भीड़ की ओर मुड़ा और यीशु में अपना विश्वास साझा किया(22:1-16) l
यह दो हज़ार साल से भी पहले की बात है—बाइबल की एक पुरानी कहानी जिससे हमें जुड़ना मुश्किल हो सकता है l ऐसे देश में जहां विश्वासियों पर नियमित रूप से अत्याचार किया जाता है, अभी हाल ही में, पीटर नाम के एक व्यक्ति को उस समय गिरफ्तार किया गया था जब वह जेल में बन्द अपने एक मित्र से मिलने गया था जो यीशु में विश्वास करता था l पीटर को जेल की एक अँधेरी कोठरी में डाल दिया गया और पूछताछ के दौरान उसकी आँखों पर पट्टी बाँध दी गयी l जब आँखों से पट्टी हटाई गयी तो उसने चार सैनिकों को बंदूकें ताने हुए देखा l पीटर की प्रतिक्रिया? उसने इसे अपना विश्वास साझा करने के “एक उत्तम अवसर के रूप में देखा l”
पौलुस और एक आधुनिक/modern-day पीटर एक कठिन, महत्वपूर्ण सत्य की ओर इशारा करते हैं l भले ही परमेश्वर हमें कठिन समय का अनुभव करने की अनुमति देता है—यहाँ तक कि सताव भी—हमारा कार्य एक ही है : “सुसमाचार प्रचार [करें]”(मरकुस 16:15) l वह हमारे साथ रहेगा और हमें अपना विश्वास साझा करने के लिए बुद्धि और सामर्थ्य देगा l
आपको या आपके किसी परिचित को मसीह में विश्वास के लिए कैसे सताव का सामना करना पड़ा है? आज आप “सुसमाचार का प्रचार” कैसे करेंगे?
प्रिय यीशु, कृपया मुझे प्रेम और ज्ञान के साथ आपका प्रतिनिधित्व करने का साहस दें l