परिवार सत्रहवीं सदी के व्याकरण जाननेवाला डॉमिनिक बहॉर्स के बिस्तर के आसपास इकठ्ठा हुआ, जो मृत्यु शय्या पर था l जब उन्होंने अंतिम साँसें लीं, कहते हैं कि उन्होंने कहा, “मैं मरने वाला हूँ या मैं मरने जा रहा हूँ; कोई भी अभिव्यक्ति सही है l” अपनी मृत्यु शय्या पर व्याकरण की परवाह कौन करेगा? एक मात्र वही व्यक्ति जिसने जीवन भर व्याकरण की परवाह की l 

जब तक हम बुढ़ापे तक पहुँचते हैं, हम काफी हद तक अपने तरीकों में तैयार हो चुके होते हैं l हमारे पास अपने विकल्पों को उन आदतों में बदलने के लिए जीवन भर का समय रहा होगा जो अच्छे या बुरे चरित्र में बदल  जाती है l हम वही हैं जो बनने के लिए हमने चुना है l 

जब हमारा चरित्र युवा और लचीला है तो ईश्वरीय आदतें विकसित करना आसान होता है l पतरस आग्रह करता है, “तुम सब प्रकार का यत्न करके अपने विश्वास पर सद्गुण, और सद्गुण पर समझ, और समझ पर संयम, और संयम पर धीरज, और धीरज पर भक्ति और भक्ति पर भाईचारे की प्रीति और भाईचारे की प्रीति पर प्रेम बढ़ाते जाओ”(2 पतरस 1:5-7) l इन गुणों का अभ्यास करें, और “तुम हमारे प्रभु और उद्धारकर्ता यीशु मसीह के अनंत राज्य में बड़े आदर के साथ प्रवेश करने पाओगे”(पद.11) l 

पतरस की सूची में कौन से गुण आपमें सबसे अधिक जीवित हैं? किन गुणों पर अभी भी काम रहने की ज़रूरत है? हम वास्तव में नहीं बदल सकते जो हम बन गए हैं, लेकिन यीशु बदल सकता है l उससे आपको बदलने और सशक्त बनाने के लिए कहें l यह एक धीमी, कठिन यात्रा हो सकती है, लेकिन यीशु हमें वही देने में माहिर है जिसकी हमें ज़रूरत है l उससे अपने चरित्र को बदलने के लिए कहें ताकि आप अधिक से अधिक उसके जैसे बन सकें l