जंगली घास को पानी देना
इस वसंत में, जंगली घास ने हमारे पीछे के आँगन में ऐसे हमला किया जैसे कुछ जुरासिक पार्क जैसा हो। एक इतनी बड़ी होगयी कि जब मैंने उसे बाहर निकालने की कोशिश की, तो मुझे डर लगा कि कहीं मैं खुद को चोट न पहुँचा दूँ। इससे पहले कि मैं उसे कुदाल से मारता, मैंने देखा कि मेरी बेटी वास्तव में उस पर पानी डाल रही थी। "तुम जंगली घास को पानी क्यों दे रही हो?" मैंने कहा। "मैं देखना चाहती हूं कि यह कितना बड़ा हो जाएगा!" उसने एक उग्र मुस्कराहट के साथ उत्तर दिया।
जंगली घास कोई ऐसी चीज नहीं है जिसे हम जानबूझकर पोषित करते हैं। लेकिन जैसा कि मैंने इसके बारे में सोचा, मुझे एहसास हुआ कि कभी-कभी हम अपने आत्मिक जीवन में "जंगली घास" को पानी देते हैं, इच्छाओं को खिलाते हैं जो हमारे विकास को रोकती हैं।
पौलुस इसके बारे में गलातियों 5:13-26 में लिखता है, जहाँ वह शरीर के द्वारा जीने और आत्मा के द्वारा जीने का अंतर बताता है। वह कहता है कि अकेले नियमों का पालन करने की कोशिश करने से हम "जंगली घास -मुक्त" जीवन की स्थापना नहीं कर पाएंगे। इसके बजाय, जंगली पौधों को सींचने से बचने के लिए, वह हमें “आत्मा के अनुसार चलने” का निर्देश देता है। वह आगे कहते हैं कि परमेश्वर के साथ प्रतिदिन चलना ही हमें "शरीर की लालसाओं को तृप्त करने" के आवेग से मुक्त करता है (पद. 16)।
पौलुस की शिक्षा को पूरी तरह से समझने की यह एक आजीवन प्रक्रिया है। लेकिन मुझे उनके मार्गदर्शन की सरलता पसंद है: अपनी आत्म-केंद्रित इच्छाओं को पोषित करके कुछ अवांछित बढ़ने के बजाय, जब हम परमेश्वर के साथ अपने संबंध विकसित कर रहे होते हैं, हम फल उगाते हैं और एक ईश्वरीय जीवन की फसल काटते हैं (पद. 22-25) ।
अशांति के बीच अनुग्रह
मैं झपकी ले रहा था, जब उसने मुझे उठा दिया। तहखाने से, मेरे बेटे ने अपने इलेक्ट्रिक गिटार के तार पर मारा। दीवारें गूंज उठीं। कोई शांति नहीं। कोई ख़ामोशी नहीं। कोई झपकी नहीं। क्षणों बाद, प्रतिस्पर्धी संगीत ने मेरे कानों को अभिवादित किया: मेरी बेटी पियानो पर “अमेजिंग ग्रेस” बजा रही है।
आम तौर पर, मुझे अपने बेटे का गिटार बजाना बहुत पसंद है। लेकिन उस पल में, इसने मुझे झकझोर कर रख दिया था। उतनी ही जल्दी, जॉन न्यूटन का परिचित भजन ने मुझे याद दिलाया कि अराजकता के बीच अनुग्रह पनपता है। जीवन के तूफान चाहे कितने भी तेज़, अवांछित या विचलित करने वाले क्यों न हों, परमेश्वर के अनुग्रह के भजन स्पष्ट और सच्चे हैं, जो हमें उसकी सतर्क देखभाल की याद दिलाते हैं।
हम उस वास्तविकता को पवित्रशास्त्र में देखते हैं। भजन संहिता 107:23-32 में, नाविकों को एक ऐसे भंवर के खिलाफ संघर्ष करना पड़ता है जो उन्हें आसानी से उड़ा सकता है। “और क्लेश के मारे उनके जी में जी नहीं रहता;” (पद 26)। फिर भी वे निराश नहीं हुए लेकिन “तब वे संकट में यहोवा की दोहाई देते हैं, और वह उनको सकेती से निकालता है।” (पद 28)। अंत में, हम पढ़ते हैं: “तब वे उनके बैठने से आनन्दित होते हैं, और वह उनको मन चाहे बन्दरगाह में पहुँचा देता है”।
अराजक क्षणों में, चाहे वे जानलेवा हों या केवल नींद के लिए खतरा हों, शोर और भय की बौछार हमारी आत्मा को झकझोर सकती है। लेकिन जब हम परमेश्वर पर भरोसा करते और उनसे प्रार्थना करते हैं, तो हम उनके अटल प्रेम का आश्रय स्थल-उनकी उपस्थिति और प्रावधान के अनुग्रह का अनुभव करते हैं।
दौड़ दौड़ना
अपनी पत्नी, पुत्र और पुत्री को खोने की त्रासदियों की एक श्रृंखला के बाद, 89 की उम्र में फौजा सिंह ने दौड़ने के अपने जूनून पर ध्यान केन्द्रित करने का फैसला किया l सिंह, पंजाबी भारतीय मूल के ब्रिटेन के सौ वर्ष के इस व्यक्ति ने, टोरंटो वाटरफ्रंट लम्बी दौड़(मैराथन) खत्म करने वाले पहले 100 वर्षीय व्यक्ति बने l शायद उनके स्वस्थ आहार, और शारीरिक और मानसिक अनुशासन ने उन्हें अपने प्रतिस्पर्धा में बढ़त हासिल करने में सक्षम बनाया l सिंह अपने कमज़ोर पैरों के कारण 5 साल की उम्र तक चलने में असमर्थ थे l हालाँकि उन्हें अक्सर चिढ़ाया जाता था और उन्हें “छड़ी” कह कर पुकारा जाता था, सिंह अपनी उपलब्धियों के कारण अब “पगड़ी वाला तूफ़ान” /(Turbaned Tornedo/ टरबंड टोरनाडो) के रूप में लोकप्रिय हैंl
प्रेरित पौलुस ने अपने दिनों में उसी प्रकार का अनुशासन प्रदर्शित करनेवाले एथलीटों को मान्यता दी (1 कुरिन्थियों 9:24) l लेकिन उसने यह भी माना कि चाहे उन्होंने कितना भी प्रशिक्षण लिया हो, अंततः उनका वैभव फीका पड़ जाता है l इसके विपरीत, उसने कहा, हमारे पास यीशु के लिए इस तरह जीने का अवसर है जो अनंतकाल को प्रभावित करता है l “एक मुकुट तो हमेशा के लिए रहेगा” (पद.25) पौलुस का तात्पर्य है,यदि क्षणिक वैभव के लिए प्रयास करनेवाले एथलीट इसके लिए इतना परिश्रम कर सकते हैं, तो के लिए जीने वालों का कितना अधिक होना चाहिए l
हम उद्धार कमाने के लिए प्रशिक्षण नहीं लेते हैं l बल्कि, इसके बिलकुल विपरीत; जब हम मानते हैं कि हमारा उद्धार वास्तव में कितना अद्भुत है, वह हमारी प्राथमिकताओं, हमारे दृष्टिकोण, और वे चीजें जिनके लिए हम जीते हैं उनको पुनः आकार देता है जब हम परमेश्वर की सामर्थ्य में विश्वासयोग्यता से अपने विश्वास की दौड़ दौड़ते हैं l
इसे अपना बनाएं, दोस्त
11 जून 2002 को गायन प्रतियोगिता अमेरिकन आइडल की शुरुआत हुई। हर हफ्ते, आशावादियों ने लोकप्रिय गीतों के अपने संस्करणों का प्रदर्शन किया, और दर्शकों ने मतदान किया कि प्रतियोगिता के अगले दौर में कौन आगे बढ़ेगा।
शो में पैनल जजों में से एक, रैंडी जैक्सन की सिग्नेचर फीडबैक यह तीखी टिप्पणी थी, “आपने उस गाने को अपना बना लिया दोस्त”। उन्होंने उस प्रशंसा की सराहना उस समय करी जब एक गायक ने एक परिचित धुन ली, इसे पूरी तरह से सीखा, और फिर इसे एक नए तरीके से प्रदर्शित किया जिसने इसे एक अद्वितीय, व्यक्तिगत रूप दिया। इसे अपना बनाना इसका पूरी तरह से और रचनात्मक रूप से स्वामित्व करना (अपनाना) था, और फिर इसे दुनिया को मंच पर पेश करना था।
पौलुस भी हमें कुछ ऐसा करने के लिए आमंत्रित करता है जो हमारे विश्वास और हमारी अभिव्यक्ति पर भी विश्वास करने के लिये है । फिलिप्पियों 3 में, वह परमेश्वर के सामने सही स्थिति में खड़े रहने के प्रयासों को अस्वीकार करता है (पद 7, 8)। इसके बजाय, वह हमें विश्वास के आधार पर परमेश्वर की ओर से आने वाली धार्मिकता को अपनाना सिखाता है (पद 9)। क्षमा और छुटकारे का वरदान हमारी प्रेरणा और लक्ष्यों को बदल देता है, “मैं उस उपलब्धि को पा लेने के लिये निरन्तर यत्न कर रहा हूँ जिसके लिये मसीह यीशु ने मुझे अपना बधुँआ बनाया था” (पद 12)।
यीशु ने हमारी विजय सुरक्षित कर ली है। अब हमारा काम क्या है? उस सत्य को पकड़ने के लिए, परमेश्वर के सुसमाचार के उपहार को आंतरिक रूप देना और उसके साथ हमारी टूटी हुई दुनिया के बीच जीना। दूसरे शब्दों में, हमें अपने विश्वास को अपना बनाना है और ऐसा करने में जो हम पहले ही प्राप्त कर चुके हैं उस पर खरा उतरना है (पद 16)।
परमेश्वर केंद्रित
जब मैं सगाई की अंगूठियों की खरीदारी कर रहा था, तो मैंने बिल्कुल सही हीरे की तलाश में कई घंटे बिताए। मैं इस विचार से त्रस्त था, क्या होगा अगर मैं सबसे उत्तम पाने से चूक गया?
आर्थिक मनोवैज्ञानिक बैरी श्वार्ट्ज के अनुसार, मेरा ज़्यादातर अनिर्णय होना इशारा करता है कि मैं वह हूं जिसे वह "संतोषकर्ता" के विपरीत "अधिकतम" कहता है। एक संतोष करने वाला व्यक्ति इस आधार पर चुनाव करता है कि उसकी जरूरतों के लिए कुछ पर्याप्त है या नहीं। अधिकतमकर्ता? हमारी ज़रूरत हमेशा उत्तम चुनाव करने की रहती है (दोषी!)। हमारे सामने कई विकल्पों के कारण अनिर्णय का संभावित परिणाम? चिंता, अवसाद और असंतोष। वास्तव में, समाजशास्त्रियों ने इस घटना के लिए एक और वाक्यांश गढ़ा है: चूक जाने का डर।
हमें निश्चित रूप से पवित्रशास्त्र में अधिकतमकर्ता या संतोषकर्त्ता शब्द नहीं मिलेंगे। लेकिन हम इसी प्रकार का विचार ज़रूर पाते है। 1 तीमुथियुस में, पौलुस ने तीमुथियुस को चुनौती दी कि वह इस दुनिया की वस्तुओं के विपरीत परमेश्वर में मूल्य खोजें। दुनिया द्वारा पूरे होने के लिए किए गए वादे कभी भी भरपूरी से पूरे नहीं हो सकते। पौलुस चाहता था कि तीमुथियुस इसके बजाय अपनी पहचान को परमेश्वर में बढ्ने दे: "संतोष सहित भक्ति बड़ी कमाई है" (6:6)। पौलुस एक संतुष्ट व्यक्ति की तरह लगता है जब वह आगे कहता है, "यदि हमारे पास खाने और पहिनने को हो, तो इन्हीं पर संतोष करना चाहिए" (पद 8)।
जब मैं उन असंख्य तरीकों के बारे में सोचता हूं, जिन्हें दुनिया पूरा करने का वादा करती है, तो मैं आमतौर पर बेचैन और असंतुष्ट हो जाता हूं। लेकिन जब मैं परमेश्वर पर ध्यान केंद्रित करता हूं और अधिकतम करने के लिए अपने बलपूर्वक आग्रह को त्याग देता हूं, तो मेरी आत्मा वास्तविक संतोष और शांति की ओर बढ़ती है।
परमेश्वर केंद्रित
जब मैं सगाई की अंगूठियों की खरीदारी कर रहा था, तो मैंने बिल्कुल सही हीरे की तलाश में कई घंटे बिताए। मैं इस विचार से त्रस्त था, क्या होगा अगर मैं सबसे उत्तम पाने से चूक गया?
आर्थिक मनोवैज्ञानिक बैरी श्वार्ट्ज के अनुसार, मेरा ज़्यादातर अनिर्णय होना इशारा करता है कि मैं वह हूं जिसे वह "संतोषकर्ता" के विपरीत "अधिकतम" कहता है। एक संतोष करने वाला व्यक्ति इस आधार पर चुनाव करता है कि उसकी जरूरतों के लिए कुछ पर्याप्त है या नहीं। अधिकतमकर्ता? हमारी ज़रूरत हमेशा उत्तम चुनाव करने की रहती है (दोषी!)। हमारे सामने कई विकल्पों के कारण अनिर्णय का संभावित परिणाम? चिंता, अवसाद और असंतोष। वास्तव में, समाजशास्त्रियों ने इस घटना के लिए एक और वाक्यांश गढ़ा है: चूक जाने का डर।
हमें निश्चित रूप से पवित्रशास्त्र में अधिकतमकर्ता या संतोषकर्त्ता शब्द नहीं मिलेंगे। लेकिन हम इसी प्रकार का विचार ज़रूर पाते है। 1 तीमुथियुस में, पौलुस ने तीमुथियुस को चुनौती दी कि वह इस दुनिया की वस्तुओं के विपरीत परमेश्वर में मूल्य खोजें। दुनिया द्वारा पूरे होने के लिए किए गए वादे कभी भी भरपूरी से पूरे नहीं हो सकते। पौलुस चाहता था कि तीमुथियुस इसके बजाय अपनी पहचान को परमेश्वर में बढ्ने दे: "संतोष सहित भक्ति बड़ी कमाई है" (6:6)। पौलुस एक संतुष्ट व्यक्ति की तरह लगता है जब वह आगे कहता है, "यदि हमारे पास खाने और पहिनने को हो, तो इन्हीं पर संतोष करना चाहिए" (पद 8)।
जब मैं उन असंख्य तरीकों के बारे में सोचता हूं, जिन्हें दुनिया पूरा करने का वादा करती है, तो मैं आमतौर पर बेचैन और असंतुष्ट हो जाता हूं। लेकिन जब मैं परमेश्वर पर ध्यान केंद्रित करता हूं और अधिकतम करने के लिए अपने बलपूर्वक आग्रह को त्याग देता हूं, तो मेरी आत्मा वास्तविक संतोष और शांति की ओर बढ़ती है।
हमारे लिए जगह तैयार करना
हमारा परिवार एक पिल्ला लाने की योजना बना रहा था, इसलिए मेरी ग्यारह वर्ष की बेटी ने महीनों तक खोज की। वह जानती थी कि कुत्ते को क्या खाना चाहिए और उसे एक नए घर में कैसे परिचित कराना है─असंख्य अन्य विवरणों के साथ।
उसने मुझसे कहा, पिल्लों को सबसे अच्छा लगता है अगर उन्हें एक समय में एक कमरे से परिचित किया जाए। इसलिए हमने सावधानी से एक अतिरिक्त कमरा तैयार किया। मुझे यकीन है कि हमारे नए पिल्ले को पालते हुए अन्य और आश्चर्य होंगे, लेकिन मेरी बेटी की खुशी से भरी तैयारी इससे अधिक गहन नहीं हो सकती थी।
जिस तरह से मेरी बेटी ने पिल्ले की आने की उत्सुकता अपनी प्रेम भरी तैयारी करके दिखाई, उसने मुझे मसीह की अपने लोगों के साथ जीवन साझा करने की लालसा और उनके लिए एक घर तैयार करने के उनके वादे की याद दिला दी। अपनी सांसारिक सेवकाई के अंत के निकट, यीशु ने अपने चेलों से उस पर भरोसा करने का आग्रह करते हुए कहा, "तुम परमेश्वर में विश्वास करते हो; मुझ पर भी विश्वास करो" (यूहन्ना 14:1)। फिर उसने वादा किया कि “[उनके] लिए जगह तैयार करेंगे . . . कि [वे] भी वहीं हों जहां [वह है]” (पद.3)।
चेलों को जल्द ही संकट का सामना करना था। लेकिन यीशु चाहता था कि वे जानें कि वह उन्हें अपने घर लाने के लिए काम पर लगा है।
मैं और कुछ तो नहीं पर अपनी बेटी की सचेत इरादे से भर कर हमारे नए पिल्ले के लिए तैयारियों में आनंद कर सकता था। लेकिन मैं केवल कल्पना कर सकता हूं कि हमारा उद्धारकर्ता अपने प्रत्येक जन के लिए जो उसके साथ अनन्त जीवन बिताएंगे अपनी विस्तृत तैयारी में कितना अधिक प्रसन्न होगा (पद.2)।
पलायन या शांति?
हॉट-टब दुकान का विज्ञापन-पट्ट कह रहा था "पलायन" । यह मेरा ध्यान आकर्षित करता है - और मुझे सोचने पर मजबूर करता है। मैंने और मेरी पत्नी ने हॉट टब लेने के बारे में बात की है . . . किसी दिन। यह हमारे पिछवाड़े में एक छुट्टी की तरह होगा! सफाई के अलावा। और बिजली का बिल। और... अचानक, बचने-की-उम्मीद कुछ ऐसी लगने लगती है जिससे मुझे बचने की आवश्यकता हो।
फिर भी, यह शब्द इतने प्रभावशाली ढंग से लुभाता है क्योंकि यह कुछ ऐसा वादा करता है जो हम चाहते हैं : राहत। आराम। सुरक्षा। पलायन । यह कुछ ऐसा है जो हमारी संस्कृति हमें कई तरीकों से लुभाती और चिढ़ाती है। अब, आराम करने या किसी खूबसूरत जगह पर पलायन करने में कुछ भी गलत नहीं है। लेकिन जीवन की कठिनाइयों से बचने और उनके साथ परमेश्वर पर भरोसा करने में अंतर है।
यूहन्ना 16 में, यीशु ने अपने शिष्यों से कहा कि उनके जीवन का अगला अध्याय उनके विश्वास की परीक्षा लेगा। "इस संसार में तुम्हें क्लेश होगा," वह अंत में सारांशित करता है। और फिर वह इस वादे को जोड़ता है, "परन्तु ढाढ़स बांधो, मैं ने संसार को जीत लिया है" (पद 33)। यीशु नहीं चाहता था कि उसके चेले निराशा के आगे झुकें। इसके बजाय, उसने उन्हें उस पर भरोसा करने के लिए आमंत्रित किया, बाकी को जानने के लिए जो वह प्रदान करता है : "मैंने तुम्हें ये बातें बताई हैं," उसने कहा, "ताकि मुझ में तुम्हें शांति मिले" (पद 33)।
यीशु ने हमें दर्द-मुक्त जीवन का वादा नहीं किया है। लेकिन वह वादा करता है कि जब हम उस पर भरोसा करते हैं और आराम करते हैं, तो हम एक ऐसी शांति का अनुभव कर सकते हैं जो दुनिया द्वारा हमें बेचने की कोशिश करने वाले किसी भी पलायन से अधिक गहरी और अधिक संतोषजनक है।
एक दिन क्रिसमस के करीब
"मुझे विश्वास नहीं हो रहा है कि क्रिसमस खत्म हो गया है," मेरी उदास बेटी ने कहा।
मुझे पता है कि वह कैसा महसूस करती है : क्रिसमस के बाद नीरस लग सकता है। उपहार खोल दिए गए हैं। क्रिसमस-पेड़ और बत्तियाँ हटानी है l उदासीन जनवरी──और, कई लोगों के लिए, छुटियों में बढ़े वजन को घटाने की जरूरत है। क्रिसमस──और इसके साथ आने वाली बेदम अपेक्षा──अचानक बहुत दूर महसूस होती है।
कुछ साल पहले, जब हम क्रिसमस की चीजों को रख रहे थे, मुझे एहसास हुआ : कैलेंडर चाहे जो भी कहे, हम हमेशा एक दिन अगले क्रिसमस के करीब होते हैं। यह कुछ ऐसा हो गया है जो मैं अक्सर कहता हूं।
लेकिन क्रिसमस के हमारे अस्थायी उत्सव से कहीं अधिक महत्वपूर्ण इसके पीछे की आध्यात्मिक वास्तविकता है : यीशु ने हमारे संसार में जो उद्धार लाया और उसकी वापसी के लिए हमारी आशा। पवित्रशास्त्र बार-बार मसीह के दूसरे आगमन को देखने, प्रतीक्षा करने और लालसा करने के बारे में बात करता है। फिलिप्पियों 3:15-21 में पौलुस जो कहता है, मुझे वह पसंद है। वह दुनिया के जीने के तरीके की तुलना करता है - "पृथ्वी की वस्तुओं पर मन लगाए रहते हैं" (पद 19) के साथ - यीशु की वापसी में आशा द्वारा आकार की जीवन शैली के साथ : "हमारा स्वदेश स्वर्ग पर है; और हम एक उद्धारकर्ता प्रभु यीशु मसीह के वहां से आने की बात जोह रहे हैं” (पद 20)।
यह वास्तविकता कि हमारी "नागरिकता स्वर्ग में है" सब कुछ बदल देती है, जिसमें हम क्या उम्मीद करते हैं और हम कैसे जीते हैं शामिल है। यह आशा इस ज्ञान से दृढ़ होती है कि हर गुजरते दिन के साथ, हम वास्तव में एक दिन यीशु की वापसी के करीब हैं।