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Articles by आदम अर होल्ज़

इसे अपना बनाएं, दोस्त

11 जून 2002 को गायन प्रतियोगिता अमेरिकन आइडल की शुरुआत हुई। हर हफ्ते, आशावादियों ने लोकप्रिय गीतों के अपने संस्करणों का प्रदर्शन किया, और दर्शकों ने मतदान किया कि प्रतियोगिता के अगले दौर में कौन आगे बढ़ेगा।

शो में पैनल जजों में से एक, रैंडी जैक्सन की सिग्नेचर फीडबैक यह तीखी टिप्पणी थी, “आपने उस गाने को अपना बना लिया दोस्त”। उन्होंने उस प्रशंसा की सराहना उस समय करी जब एक गायक ने एक परिचित धुन ली, इसे पूरी तरह से सीखा, और फिर इसे एक नए तरीके से प्रदर्शित किया जिसने इसे एक अद्वितीय, व्यक्तिगत रूप दिया। इसे अपना बनाना इसका पूरी तरह से और रचनात्मक रूप से स्वामित्व करना (अपनाना) था, और फिर इसे दुनिया को मंच पर पेश करना था।

पौलुस भी हमें कुछ ऐसा करने के लिए आमंत्रित करता है जो हमारे विश्वास और हमारी अभिव्यक्ति पर भी विश्वास करने के लिये है । फिलिप्पियों 3 में, वह परमेश्वर के सामने सही स्थिति में खड़े रहने के प्रयासों को अस्वीकार करता है (पद 7, 8)। इसके बजाय, वह हमें विश्वास के आधार पर परमेश्वर की ओर से आने वाली धार्मिकता को अपनाना सिखाता है (पद 9)। क्षमा और छुटकारे का वरदान हमारी प्रेरणा और लक्ष्यों को बदल देता है, “मैं उस उपलब्धि को पा लेने के लिये निरन्तर यत्न कर रहा हूँ जिसके लिये मसीह यीशु ने मुझे अपना बधुँआ बनाया था” (पद 12)।

यीशु ने हमारी विजय सुरक्षित कर ली है। अब हमारा काम  क्या है? उस सत्य को पकड़ने के लिए, परमेश्वर के सुसमाचार के उपहार को आंतरिक रूप देना और उसके साथ हमारी टूटी हुई दुनिया के बीच जीना। दूसरे शब्दों में, हमें अपने विश्वास को अपना बनाना है और ऐसा करने में जो हम पहले ही प्राप्त कर चुके हैं उस पर खरा उतरना है (पद 16)।

 

परमेश्वर केंद्रित

जब मैं सगाई की अंगूठियों की खरीदारी कर रहा था, तो मैंने बिल्कुल सही हीरे की तलाश में कई घंटे बिताए। मैं इस विचार से त्रस्त था, क्या होगा अगर मैं सबसे उत्तम पाने से चूक गया?

आर्थिक मनोवैज्ञानिक बैरी श्वार्ट्ज के अनुसार, मेरा ज़्यादातर अनिर्णय होना इशारा करता है कि मैं वह हूं जिसे वह "संतोषकर्ता" के विपरीत "अधिकतम" कहता है। एक संतोष करने वाला व्यक्ति इस आधार पर चुनाव करता है कि उसकी जरूरतों के लिए कुछ पर्याप्त है या नहीं। अधिकतमकर्ता? हमारी ज़रूरत हमेशा उत्तम चुनाव करने की रहती है (दोषी!)। हमारे सामने कई विकल्पों के कारण अनिर्णय का संभावित परिणाम? चिंता, अवसाद और असंतोष। वास्तव में, समाजशास्त्रियों ने इस घटना के लिए एक और वाक्यांश गढ़ा है: चूक जाने का डर।

हमें निश्चित रूप से पवित्रशास्त्र में अधिकतमकर्ता या संतोषकर्त्ता शब्द नहीं मिलेंगे। लेकिन हम इसी प्रकार का विचार ज़रूर पाते है। 1 तीमुथियुस में, पौलुस ने तीमुथियुस को चुनौती दी कि वह इस दुनिया की वस्तुओं के विपरीत परमेश्वर में मूल्य खोजें। दुनिया द्वारा पूरे होने के लिए किए गए वादे कभी भी भरपूरी से पूरे नहीं हो सकते। पौलुस चाहता था कि तीमुथियुस इसके बजाय अपनी पहचान को परमेश्वर में बढ्ने दे: "संतोष सहित भक्ति बड़ी कमाई है" (6:6)। पौलुस एक संतुष्ट व्यक्ति की तरह लगता है जब वह आगे कहता है, "यदि हमारे पास खाने और पहिनने को हो, तो इन्हीं पर संतोष करना चाहिए" (पद 8)।

जब मैं उन असंख्य तरीकों के बारे में सोचता हूं, जिन्हें दुनिया पूरा करने का वादा करती है, तो मैं आमतौर पर बेचैन और असंतुष्ट हो जाता हूं। लेकिन जब मैं परमेश्वर पर ध्यान केंद्रित करता हूं और अधिकतम करने के लिए अपने बलपूर्वक आग्रह को त्याग देता हूं, तो मेरी आत्मा वास्तविक संतोष और शांति की ओर बढ़ती है।

परमेश्वर केंद्रित

जब मैं सगाई की अंगूठियों की खरीदारी कर रहा था, तो मैंने बिल्कुल सही हीरे की तलाश में कई घंटे बिताए। मैं इस विचार से त्रस्त था, क्या होगा अगर मैं सबसे उत्तम पाने से चूक गया?

आर्थिक मनोवैज्ञानिक बैरी श्वार्ट्ज के अनुसार, मेरा ज़्यादातर अनिर्णय होना इशारा करता है कि मैं वह हूं जिसे वह "संतोषकर्ता" के विपरीत "अधिकतम" कहता है। एक संतोष करने वाला व्यक्ति इस आधार पर चुनाव करता है कि उसकी जरूरतों के लिए कुछ पर्याप्त है या नहीं। अधिकतमकर्ता? हमारी ज़रूरत हमेशा उत्तम चुनाव करने की रहती है (दोषी!)। हमारे सामने कई विकल्पों के कारण अनिर्णय का संभावित परिणाम? चिंता, अवसाद और असंतोष। वास्तव में, समाजशास्त्रियों ने इस घटना के लिए एक और वाक्यांश गढ़ा है: चूक जाने का डर।

हमें निश्चित रूप से पवित्रशास्त्र में अधिकतमकर्ता या संतोषकर्त्ता शब्द नहीं मिलेंगे। लेकिन हम इसी प्रकार का विचार ज़रूर पाते है। 1 तीमुथियुस में, पौलुस ने तीमुथियुस को चुनौती दी कि वह इस दुनिया की वस्तुओं के विपरीत परमेश्वर में मूल्य खोजें। दुनिया द्वारा पूरे होने के लिए किए गए वादे कभी भी भरपूरी से पूरे नहीं हो सकते। पौलुस चाहता था कि तीमुथियुस इसके बजाय अपनी पहचान को परमेश्वर में बढ्ने दे: "संतोष सहित भक्ति बड़ी कमाई है" (6:6)। पौलुस एक संतुष्ट व्यक्ति की तरह लगता है जब वह आगे कहता है, "यदि हमारे पास खाने और पहिनने को हो, तो इन्हीं पर संतोष करना चाहिए" (पद 8)।

जब मैं उन असंख्य तरीकों के बारे में सोचता हूं, जिन्हें दुनिया पूरा करने का वादा करती है, तो मैं आमतौर पर बेचैन और असंतुष्ट हो जाता हूं। लेकिन जब मैं परमेश्वर पर ध्यान केंद्रित करता हूं और अधिकतम करने के लिए अपने बलपूर्वक आग्रह को त्याग देता हूं, तो मेरी आत्मा वास्तविक संतोष और शांति की ओर बढ़ती है।

हमारे लिए जगह तैयार करना

हमारा परिवार एक पिल्ला लाने की योजना बना रहा था, इसलिए मेरी ग्यारह वर्ष की बेटी ने महीनों तक खोज की। वह जानती थी कि कुत्ते को क्या खाना चाहिए और उसे एक नए घर में कैसे परिचित कराना है─असंख्य अन्य विवरणों के साथ।

उसने मुझसे कहा, पिल्लों को सबसे अच्छा लगता है अगर उन्हें एक समय में एक कमरे से परिचित किया जाए। इसलिए हमने सावधानी से एक अतिरिक्त कमरा तैयार किया। मुझे यकीन है कि हमारे नए पिल्ले को पालते हुए अन्य और आश्चर्य होंगे, लेकिन मेरी बेटी की खुशी से भरी तैयारी इससे अधिक गहन नहीं हो सकती थी।

जिस तरह से मेरी बेटी ने पिल्ले की आने की उत्सुकता अपनी प्रेम भरी तैयारी करके दिखाई, उसने मुझे मसीह की अपने लोगों के साथ जीवन साझा करने की लालसा और उनके लिए एक घर तैयार करने के उनके वादे की याद दिला दी। अपनी सांसारिक सेवकाई के अंत के निकट, यीशु ने अपने चेलों से उस पर भरोसा करने का आग्रह करते हुए कहा, "तुम परमेश्वर में विश्वास करते हो; मुझ पर भी विश्वास करो" (यूहन्ना 14:1)। फिर उसने वादा किया कि “[उनके] लिए जगह तैयार करेंगे  . . . कि [वे] भी वहीं हों जहां [वह है]” (पद.3)।

चेलों को जल्द ही संकट का सामना करना था। लेकिन यीशु चाहता था कि वे जानें कि वह उन्हें अपने घर लाने के लिए काम पर लगा है।

मैं और कुछ तो नहीं पर अपनी बेटी की सचेत इरादे से भर कर हमारे नए पिल्ले के लिए तैयारियों में आनंद कर सकता था। लेकिन मैं केवल कल्पना कर सकता हूं कि हमारा उद्धारकर्ता अपने प्रत्येक जन के लिए जो उसके साथ अनन्त जीवन बिताएंगे अपनी विस्तृत तैयारी में कितना अधिक प्रसन्न होगा (पद.2)।

पलायन या शांति?

हॉट-टब दुकान का विज्ञापन-पट्ट कह रहा था "पलायन" । यह मेरा ध्यान आकर्षित करता है - और मुझे सोचने पर मजबूर करता है। मैंने और मेरी पत्नी ने हॉट टब लेने के बारे में बात की है . . .  किसी दिन। यह हमारे पिछवाड़े में एक छुट्टी की तरह होगा! सफाई के अलावा। और बिजली का बिल। और... अचानक, बचने-की-उम्मीद कुछ ऐसी लगने लगती है जिससे मुझे बचने की आवश्यकता हो।

फिर भी, यह शब्द इतने प्रभावशाली ढंग से लुभाता है क्योंकि यह कुछ ऐसा वादा करता है जो हम चाहते हैं : राहत। आराम। सुरक्षा। पलायन । यह कुछ ऐसा है जो हमारी संस्कृति हमें कई तरीकों से लुभाती और चिढ़ाती है। अब, आराम करने या किसी खूबसूरत जगह पर पलायन करने में कुछ भी गलत नहीं है। लेकिन जीवन की कठिनाइयों से बचने और उनके साथ परमेश्वर पर भरोसा करने में अंतर है।

यूहन्ना 16 में, यीशु ने अपने शिष्यों से कहा कि उनके जीवन का अगला अध्याय उनके विश्वास की परीक्षा लेगा। "इस संसार में तुम्हें क्लेश होगा," वह अंत में सारांशित करता है। और फिर वह इस वादे को जोड़ता है, "परन्तु ढाढ़स बांधो, मैं ने संसार को जीत लिया है" (पद 33)। यीशु नहीं चाहता था कि उसके चेले निराशा के आगे झुकें। इसके बजाय, उसने उन्हें उस पर भरोसा करने के लिए आमंत्रित किया, बाकी को जानने के लिए जो वह प्रदान करता है : "मैंने तुम्हें ये बातें बताई हैं," उसने कहा, "ताकि मुझ में तुम्हें शांति मिले" (पद 33)।

यीशु ने हमें दर्द-मुक्त जीवन का वादा नहीं किया है। लेकिन वह वादा करता है कि जब हम उस पर भरोसा करते हैं और आराम करते हैं, तो हम एक ऐसी शांति का अनुभव कर सकते हैं जो दुनिया द्वारा हमें बेचने की कोशिश करने वाले किसी भी पलायन से अधिक गहरी और अधिक संतोषजनक है।

एक दिन क्रिसमस के करीब

"मुझे विश्वास नहीं हो रहा है कि क्रिसमस खत्म हो गया है," मेरी उदास बेटी ने कहा।

मुझे पता है कि वह कैसा महसूस करती है : क्रिसमस के बाद नीरस लग सकता है। उपहार खोल दिए गए हैं। क्रिसमस-पेड़ और बत्तियाँ हटानी है l उदासीन जनवरी──और, कई लोगों के लिए, छुटियों में बढ़े वजन को घटाने की जरूरत है। क्रिसमस──और इसके साथ आने वाली बेदम अपेक्षा──अचानक बहुत दूर महसूस होती है।

कुछ साल पहले, जब हम क्रिसमस की चीजों को रख रहे थे, मुझे एहसास हुआ : कैलेंडर चाहे जो भी कहे, हम हमेशा एक दिन अगले क्रिसमस के करीब होते हैं। यह कुछ ऐसा हो गया है जो मैं अक्सर कहता हूं।

लेकिन क्रिसमस के हमारे अस्थायी उत्सव से कहीं अधिक महत्वपूर्ण इसके पीछे की आध्यात्मिक वास्तविकता है : यीशु ने हमारे संसार में जो उद्धार लाया और उसकी वापसी के लिए हमारी आशा। पवित्रशास्त्र बार-बार मसीह के दूसरे आगमन को देखने, प्रतीक्षा करने और लालसा करने के बारे में बात करता है। फिलिप्पियों 3:15-21 में पौलुस जो कहता है, मुझे वह पसंद है। वह दुनिया के जीने के तरीके की तुलना करता है - "पृथ्वी की वस्तुओं पर मन लगाए रहते हैं" (पद 19) के साथ - यीशु की वापसी में आशा द्वारा आकार की जीवन शैली के साथ : "हमारा स्वदेश स्वर्ग पर है; और हम एक उद्धारकर्ता प्रभु यीशु मसीह के वहां से आने की बात जोह रहे हैं” (पद 20)।

यह वास्तविकता कि हमारी "नागरिकता स्वर्ग में है" सब कुछ बदल देती है, जिसमें हम क्या उम्मीद करते हैं और हम कैसे जीते हैं शामिल है। यह आशा इस ज्ञान से दृढ़ होती है कि हर गुजरते दिन के साथ, हम वास्तव में एक दिन यीशु की वापसी के करीब हैं।

दुर्बलताएँ(The Dwindles)

यह मेरे कंठ में एक सुरसुराहट की तरह शुरू हुआ l उह ओह, मैंने सोचा l वह सुरसुराहट इन्फ्लुएंजा निकला l और वह केवल श्वसनी पीड़ा (bronchial affliction) का आरम्भ था l इन्फ़्लुएन्ज़ा ने काली खांसी का रूप ले लिया──जी हाँ, वह काली खांसी──और वह निमोनिया में बदल गया l 

आठ सप्ताह तक शरीर को नाश करनेवाली खांसी ने──इसे यूँ ही काली खांसी नहीं कहा जाता है──मुझे विनीत कर दिया l मैं खुद को वृद्ध नहीं मानता l लेकिन मैं उस दिशा में आगे बढ़ने के विषय सोचना आरम्भ करने के लिए पर्याप्त उम्र का हूँ l चर्च में मेरे छोटे समूह के एक सदस्य के पास उन स्वास्थ्य मामलों के लिए जो हमारे उम्र में बढ़ने के साथ आक्रमण करते हैं एक मजेदार नाम है : “दुर्बलता(The Dwindles) l” लेकिन इन दुर्बलताओं के “कार्य करने” के विषय कुछ भी हास्यमय नहीं है l 

2 कुरिन्थियों 4 में, पौलुस ने भी──अपने तरीके से──“दुर्बलता” के बारे में लिखा l वह अध्याय उसके और उसके टीम के द्वारा सहे गए सताव का वर्णन करता है l अपने मिशन को पूरा करने में एक भारी कीमत चुकाना पड़ा था l हमारा “बाहरी मनुष्यत्व नष्ट होता” गया, उसने स्वीकार किया l लेकिन यद्यपि उसका शरीर विफल होता गया──उम्र, सताव, और कठोर स्थितियों के कारण──पौलुस थामने वाली अपनी आशा को मजबूती से पकड़ा रहा : “हमारा भीतरी मनुष्यत्व दिन प्रतिदिन नया होता जाता है” (पद.16) l उसने बल दिया, “हमारा पल भर का हल्का सा क्लेश,” जो हमारे आगे है उसका मुकाबला नहीं कर सकता जो “हमारे लिए बहुत ही महत्वपूर्ण और अनंत महिमा उत्पन्न करता जाता है” (पद.17) l 

यहाँ तक कि जब मैं आज रात को लिख रहा हूँ, दुर्बलता मेरे सीने पर पंजा मारती है l लेकिन मैं जानता हूँ कि मेरे जीवन में और या किस और के जो मसीह से लिपटा रहता है, अंतिम निर्णय उनका नहीं है l 

लिपट जाना

“डैडी, क्या आप मेरे लिए पढेंगे?” मेरी बेटी ने पूछा l किसी बच्चे के लिए माता-पिता से इस प्रकार का प्रश्न करना असामान्य नहीं है l लेकिन मेरी बेटी अब ग्यारह वर्ष की है l इन दिनों, इस तरह के अनुरोध उस समय से कम होते हैं जब वह छोटी थी l “हाँ,” मैंने खुशी से कहा, और वह सोफे पर मेरे बगल में सिमट कर बैठ गयी l

जब मैं उसके लिए पढ़ रहा था, वह मानो मुझ से लिपट गयी l माता-पिता के रूप में वह उन शानदार क्षणों में से एक था, जब हम शायद हमारे लिए हमारे पिता के सिद्ध प्यार को महसूस करते है और हमारे लिए उसकी गहरी इच्छा कि हम उसकी उपस्थिति और हमारे लिए उसके प्रेम में “समा जाएँ l”

मुझे उस पल एहसास हुआ कि मैं बहुत हद तक अपने ग्यारह साल के बच्चे की तरह हूँ l अधिकांश समय, मैं स्वतंत्र होने पर ध्यान केंद्रित करता हूँ l हमारे लिए परमेश्वर के प्रेम के स्पर्श से दूर होना कितना सरल है, एक कोमल और सुरक्षात्मक प्रेम जिसका वर्णन भजन 116 “अनुग्रहकारी और धर्मी . . . दया करनेवाला” के रूप में करता है (पद.5) l यह एक प्यार है जहां, मेरी बेटी की तरह, मैं परमेश्वर की गोद में सिमट सकता हूँ, घर पर मेरे लिए उसकी खुशी में l

भजन 116:7 बताता है कि हमें नियमित रूप से अपने आप को परमेश्वर के अच्छे प्रेम की याद दिलाना पड़ सकता है, और फिर प्रतीक्षा कर रही उसकी बाहों में सिमट जाना : “हे मेरे प्राण, तू अपने विश्रामस्थान में लौट आ; क्योंकि यहोवा ने तेरा उपकार किया है l” और वास्तव  में, उसने किया है l

भय का तूफ़ान

हाल ही में मैंने एक टीवी विज्ञापन में देखा, एक महिला यूँ ही टीवी देखने वाले समूह में किसी से पूछती है, “मार्क, आप क्या खोज रहे हैं?” “खुद का एक संस्करण जो भय के आधार पर निर्णय नहीं लेता है,” वह सादगी से उत्तर देता है - यह एहसास नहीं करते हुए कि वह सिर्फ यह पूछ रही थी कि उसे टीवी पर क्या देखना पसंद है!
ठहरो, मैंने सोचा l मैं यह आशा नहीं कर रहा था कि एक टीवी विज्ञापन मुझपर इतनी गहराई से प्रहार करेगा! लेकिन मैं बेचारे मार्क से संबंधित था : कभी-कभी मैं भी उस तरह से शर्मिंदा महसूस करता हूँ जिस तरह कभी-कभी प्रतीत होता है कि डर मेरे जीवन को चला रहा है l
यीशु के शिष्यों ने भी डर की अथाह शक्ति का अनुभव किया l एक बार, जब वे गलील की झील के पार जा रहे थे (मरकुस 4:35), “तब बड़ी आँधी” आयी (पद.37) l डर ने उन्हें जकड़ लिया, और उन्होंने सुझाव दिया कि यीशु (जो सो रहा था!) शायद उनकी परवाह नहीं करेगा : “हे गुरु, क्या तुझे चिंता नहीं कि हम नष्ट हुए जाते हैं?” (पद.38) l
डर ने शिष्यों की दृष्टि को विकृत कर दिया, जिसके कारण वे उनके लिए यीशु के अच्छे इरादों को देखने में असमर्थ हो गए l आंधी और लहरों को डांटने के बाद (पद.39), मसीह ने दो तीखे प्रश्नों के साथ चेलों का सामना किया : “तुम क्यों डरते हो? क्या तुम्हें अब तक विश्वास नहीं?” (पद.40) l
तूफान हमारे जीवनों में भी उठते हैं, क्या ऐसा नहीं है? लेकिन यीशु के सवाल हमें अपने डर को परिप्रेक्ष्य में रखने में मदद कर सकते हैं l उनका पहला सवाल हमें अपने डर को नाम देने के लिए आमंत्रित करता है l दूसरा हमें उन विकृत भावनाओं को उसे सौंपने के लिए आमंत्रित करता है – उससे देखने वाली आँखें मांगता है कि वह जीवन के सबसे उग्र तूफानों में भी हमारा मार्गदर्शन कैसे करता है l