सबको सहानुभूति चाहिए
जब जीवन यीशु में नया विश्वासी था और कॉलेज से निकला ही था, उसने एक तेल की एक बड़ी कंपनी में कार्य किया l सेल्समैन की भूमिका में, उसने यात्राएं की; और अपनी यात्रा में उसने लोगों की कहानियाँ सुनी – उनमें से कई मार्मिक थीं l उसने महसूस किया कि ग्राहकों की सबसे बड़ी ज़रूरत तेल नहीं थी, बल्कि सहानुभूति l उनको परमेश्वर की ज़रूरत थी l इसने जीवन को सेमिनरी जाकर परमेश्वर के हृदय के विषय जानने और आखिरकार पास्टर बनने के लिए प्रेरित किया l
जीवन की सहानुभूति का उद्गम यीशु में था l मत्ती 9:27-33 में हमें दो दृष्टिहीनों और एक दुष्टात्माग्रस्त मनुष्य की आश्चर्यजनक चंगाई में मसीह की करुणा की झलक मिलती है l “वह अपनी समस्त सांसारिक सेवा के दौरान, “सब नगरों और गाँवों में” (पद.35) सुसमाचार प्रचार करता रहा और चंगाई देता रहा l क्यों? “जब उसने भीड़ को देखा तो उसको लोगों पर तरस आया, क्योंकि वे उन भेड़ों के समान जिनका कोई रखवाला न हो, व्याकुल और भटके हुए से थे” (पद.36) l
आज का संसार अभी भी परेशान और दुखित लोगों से भरा हुआ है जिन्हें एक उद्धारकर्ता की कोमल देखभाल की ज़रूरत है l अपनी भेड़ की अगुवाई, सुरक्षा, और देखभाल करनेवाले चरवाहे की तरह, यीशु अपने निकट आनेवालों पर अपनी सहानुभूति दिखाता है (11:28) l कोई फर्क नहीं पड़ता कि हम जीवन में कहाँ हैं और हम क्या अनुभव कर रहे हैं, हम उसमें कोमलता और देखभाल से उमड़ता हुआ हृदय पाते हैं l और जब हम परमेश्वर की प्रेममयी करुणा के लाभार्थी बन गए हैं, हम इसे दूसरों तक पहुँचाए बिना रह नहीं सकते हैं l
आशा में जल
टॉम और मार्क की सेवा जीवनों को तरोताज़ा करती है l वीडियों में यह स्पष्ट है कि एक खुले स्नानघर में पूरे कपड़े पहने हुए बच्चों का एक समूह हँस और नाच रहा है – उनके लिए यह पहली बार हुआ है l ये लोग हैती(Haiti) देश में स्थानीय कलीसियाओं के साथ मिलकर कुओं में छनाई/निस्यन्दन(filtration) प्रणाली इनस्टॉल करके, दूषित जल से जुड़ी बीमारियों को रोककर जीवनों को आसान बनाते और बढ़ाते हैं l स्वच्छ, ताजे जल तक पहुँच लोगों को उनके भविष्य के लिए आशा देता है l
यीशु ने यूहन्ना 4 में “जीवन जल” का सन्दर्भ देकर तरोताजगी के निरंतर श्रोत के समान विचार को पकड़ लेने का उल्लेख किया l थके और प्यासे यीशु ने एक सामरी स्त्री से पीने के लिए जल माँगा (पद.4-8) l इस अनुरोध के कारण एक संवाद आरम्भ हुआ, जिसमें यीशु ने स्त्री को “जीवन जल” (पद.9-15) की पेशकश की – जल जो उसके जीवन और आशा का श्रोत बन जाएगा, जैसे “अनंत जीवन के लिए उमड़ता रहेगा” (पद.14) l
हमें पता चलता है कि यह जीवन जल बाद में यूहन्ना में क्या है जब यीशु ने कहा, “यदि कोई प्यासा हो तो मेरे पास आए और पीए,” यह घोषणा करते हुए कि जो कोई भी उस पर विश्वास करता है, उसके पास “जीवन के जल की नदियाँ ]बहेंगी) l” उसने यह वचन पवित्र आत्मा के विषय में कहा” (पद.37-39) l
आत्मा के द्वारा, विश्वासी मसीह में एक किये जाते हैं और असीम सामर्थ्य, आशा और परमेश्वर में पाए जाने वाले आनंद तक उनकी पहुँच होती है l जीवन जल की तरह, पवित्र आत्मा विश्वासियों के भीतर रहते हुए, हमें ताज़ा और नवीनीकृत करता है l
सच्चे मित्र
मध्य विद्यालय में, मेरे पास एक “कभी-कभी” सहेली थी l हम दोनों हमारी छोटी कलीसिया में “घनिष्ठ मित्र” थे (जहाँ मैं उसकी उम्र की एक ही लड़की थी), और हम कभी-कभी स्कूल के बाहर एक साथ रहते थे l लेकिन स्कूल में यह एक अलग कहानी थी l अगर वह मुझसे खुद मिलती थी, तो हेलो कह सकती थी; लेकिन केवल अगर कोई और आसपास नहीं होता था l यह महसूस करते हुए, मैंने शायद ही कभी स्कूल की दीवारों के भीतर उसका ध्यान आकर्षित करने की कोशिश की l मुझे हमारी मित्रता की सीमा पता थी l
शायद हम सभी ने एकतरफा या संकीर्ण मित्रता के दर्द का अनुभव किया है l लेकिन एक और तरह की मित्रता है – एक जो सभी सीमाओं से परे फैली हुयी है l यह सादृश्य स्वभाव वालों के साथ हमारी मित्रता है जो हमारे साथ जीवन की यात्रा को साझा करने के लिए प्रतिबद्ध हैं l
दाऊद और योनातान इसी प्रकार के मित्र थे l योनातान दाऊद के साथ “आत्मा में एक” था और उसे “अपने प्राण के समान प्यार करता था” (1 शमूएल 18:1-3) l हालाँकि, योनातान अपने पिता शाऊल की मृत्यु के बाद शासन करने के लिए कतार में था, वह परमेश्वर के चुने हुए प्रतिस्थापन दाऊद के प्रति वफादार था l योनातान ने शाऊल द्वारा दाऊद की हत्या करने के दो षड्यंत्रों से बच निकलने में उसकी मदद की थी (19:1-6; 20:1-42) l
सभी बाधाओं के बावजूद, योनातान और दाऊद मित्र बने रहे – जो नीतिवचन 17:17 की सच्चाई की ओर इशारा करता है : “मित्र सब समयों में प्रेम रखता है l” उनकी विश्वासयोग्य मित्रता हमें प्यार भरे रिश्ते की झलक देती है जो परमेश्वर हमारे साथ रखता है (युहन्ना 3:16; 15:15) l उनकी तरह की मित्रता के द्वारा, परमेश्वर के प्यार के बारे में हमारी समझ गहरी हो जाती है l
मुड़कर भागो
ऐली के पास प्रेमी माता-पिता थे और वह एक खुबसूरत, स्मार्ट, और प्रतिभाशाली किशोरी थी l परन्तु हाई स्कूल के बाद किसी व्यक्ति या स्थिति ने उसे हेरोइन(नशीला पदार्थ) लेने को उकसाया l उसके माता पिता ने उसके अन्दर बदलाव देखकर उसे स्वास्थ्यलाभ/पुनर्वासन केंद्र भेज दिया जिसके बाद ऐली ने आख़िरकार उसके ऊपर होनेवाले प्रभाव को स्वीकार किया l इलाज के बाद, उन्होंने उससे पूछा कि नशीला पदार्थ के उपयोग के विषय वह अपने मित्रों से क्या कहना चाहेगी l उसकी सलाह थी : “केवल मुड़कर भागो l” उसने निवेदन किया कि “केवल नहीं कहना” प्रर्याप्त नहीं है l
दुखद रूप से, ऐली पुनः पूर्व दशा में चली गयी और नशीले पदार्थ के अधिक मात्रा में सेवन करने के कारण बाईस वर्ष की उम्र में उसकी मृत्यु हो गयी l उसके दुखी माता-पिता दूसरों को उस नियति से बचाने के प्रयास में, एक स्थानीय न्यूज़ कार्यक्रम में उपस्थित होकर श्रोताओं से उन स्थितियों से दूर रहकर जहाँ वे नशीले पदार्थ और दूसरे खतरों के संपर्क में आ सकते हैं उन्हें “ऐली के लिए दौड़ेने” के लिए उत्साहित किया l
प्रेरित पौलुस ने अपने आत्मिक पुत्र तीमुथियुस से (और हम सबसे) बुराई से भागने पर जोर दिया (2 तीमुथियुस 2:22), और प्रेरित पतरस ने भी उसी प्रकार चेतावनी दी, “सचेत हो, और जागते रहो; क्योंकि तुम्हारा विरोधी शैतान गर्जनेवाले सिंह के समान इस खोज में रहता है कि किस को फाड़ खाए l विश्वास में दृढ़ होकर . . . उसका सामना करो” (1 पतरस 5:8-9) l
हममें से कोई भी परीक्षा से मुक्त नहीं है l और अक्सर सबसे अच्छी बात यह है कि हम उन स्थितियों से दूर हो जाएं जहां हमारे सामने परीक्षा आ सकती है – यद्यपि हमेशा परीक्षाएं टाली नहीं जा सकती हैं l परन्तु हम बाइबल पर आधारित होकर और प्रार्थना की सामर्थ्य से मजबूत विशवास रखते हुए बेहतर तैयार रह सकते हैं l जब हम “विश्वास में दृढ़ [खड़े रहते हैं] हम जानेंगे कब हमें मुड़ना है और कब परमेश्वर की ओर भागना है l
विशवास की विरासत
निर्णायक क्षण से बहुत पहले जब बिली ग्रैहम सोलह वर्ष की उम्र में मसीह में विश्वास में आए, यीशु के प्रति उनके माता-पिता की भक्ति प्रगट थी l वे दोनों विश्वासियों के एक परिवार में विशवास किये थे और उनका पालन पोषण भी वहीं हुआ था l बिली के माता-पिता ने अपने विवाह के बाद, प्रेमपूर्वक अपने बच्चों का पालन-पोषण करने के द्वारा उस विरासत को जारी रखा, जिसमें प्रार्थना और बाइबल पठन और बच्चों के साथ विश्वासयोग्यता से चर्च जाना शामिल था l ग्रैहम के माता-पिता द्वारा बिली के लिए दृढ़ बुनियाद रखना ही वह मिटटी थी जिसे परमेश्वर ने उसे विश्वास में लाने के लिए उपयोग किया और, अंततः, एक दृढ़ सुसमाचार प्रचारक की उसकी बुलाहट भी l
प्रेरित पौलुस का युवा शागिर्द तीमुथियुस भी एक मजबूत आत्मिक बुनियाद से फायदा उठाया था l पौलुस ने लिखा, “मुझे तेरे उस निष्कपट विश्वास की सुधि आती है, जो पहले तेरी नानी लोइस और तेरी माता युनिके में था” (2 तीमुथियुस 1:5) l इस विरासत ने तीमुथियुस को तैयार किया और उसके हृदय को मसीह में विश्वास करने की ओर ले चला l
अब पौलुस तीमुथियुस को अपने विशवास की परम्परा को आगे ले चलने का आग्रह करता है (पद.5), “परमेश्वर के . . . वरदान को . . . [पवित्र आत्मा द्वारा जो] “सामर्थ्य” [देता है, अपने अन्दर] प्रज्वलित कर दे” (पद.6-7) l आत्मा की सामर्थ्य के कारण, तीमुथियुस निर्भय होकर सुसमाचार के लिए जी सकता था (पद.8) l एक मजबूत आत्मिक विरासत गारन्टी नहीं देता है कि हम विश्वास में आ जाएंगे, परन्तु दूसरों का नमूना और सलाह मार्ग प्रशस्त करने में सहायता कर सकता है l और हमारे यीशु को उद्धारकर्ता ग्रहण करने के बाद, आत्मा सेवा में, उसके साथ जीवन जीने में, और दूसरों के विश्वास को पोषित करने में भी हमारी अगुवाई करेगा l
बस एक साँस
बॉबी की अचानक मृत्यु ने मुझे मृत्यु की कठोर सच्चाई और जीवन की अल्पता याद दिलायी l मेरे बचपन की सहेली केवल चौबीस वर्ष की थी जब बर्फीले सड़क पर एक दुखद दुर्घटना में उसकी मृत्यु हो गयी l एक बिगड़े परिवार में उसका पालन-पोषण हुआ, अभी हाल ही में वह उन्नति करती हुयी दिखाई दे रही थी l यीशु में एक नयी विश्वासिनी, उसका जीवन इतना जल्दी कैसे समाप्त हो सकता था?
कभी-कभी जीवन बहुत ही छोटा और दुःख भरा दिखाई देता है l भजन 39 में भजनकार दाऊद अपने दुःख पर विलाप करते हुए पुकारता है : “हे यहोवा, ऐसा कर कि मेरा अंत मुझे मालूम हो जाए, और यह भी कि मेरी आयु के दिन कितने हैं; जिससे मैं जान लूँ कि मैं कैसा अनित्य हूँ! देख, तू ने मेरी आयु बालिश्त भर की रखी है, और मेरी अवस्था तेरी दृष्टि में कुछ है ही नहीं l सचमुच सब मनुष्य कैसे भी स्थिर क्यों न हों तौभी व्यर्थ ठहरे हैं” (पद.4-5) l जीवन छोटा है l यदि हम एक सौ वर्ष भी जीवित रहें, हमारा पृथ्वी पर का जीवन समस्त समय में मात्र एक बूंद है l
और फिर भी, दाऊद के साथ, हम कह सकते हैं, “मेरी आशा तो [प्रभु की] ओर लगी है” (पद. 7) l हम भरोसा कर सकते हैं कि हमारे जीवनों में सार्थकता है l यद्यपि हमारा शरीर क्षीण होता जाता है, विश्वासी होने के कारण हमें भरोसा है कि हमारा “भीतरी मनुष्यत्व दिन प्रतिदिन नया होता जाता है” – और एक दिन हम उसके साथ अनंत जीवन का आनंद उठाएंगे (2 कुरिन्थियों 4:16-5:1) l हमें यह ज्ञात है क्योंकि परमेश्वर ने “हमें बयाने में आत्मा . . . दिया है”! (5:5) l
चोट पहुँचाने वाले शब्द
“खाल और हड्डी, खाल और हड्डी,” उस लड़के ने उपहास किया l “छड़ी,” एक अन्य ने उसके साथ स्वर मिलाया l जवाब में मैं भी बोल सकती थी “छड़ी और पत्थर से मेरी हड्डी टूट सकती है, किन्तु शब्दों से मुझे चोट कभी नहीं लगेगी l” परन्तु छोटी लड़की होते हुए भी, मैं जानती थी कि लोकप्रिय कविता सच नहीं थी l कठोर, विचारहीन शब्दों से चोट ज़रूर लगी – कभी-कभी बहुत अधिक, ये ऐसे घाव छोड़ गए जो बहुत गहरे थे और पत्थर या छड़ी की चोट से कहीं अधिक समय तक रहनेवाले घाव l
हन्ना विचारहीन शब्दों के डंक को ज़रूर जानती थी l उसका पति, एल्काना, उसे प्यार करता था परन्तु वह संतानहीन थी, जबकि उसकी दूसरी पत्नी, पनिन्ना, के पास अनेक बच्चे थे l एक ऐसी संस्कृति में जहाँ स्त्री का महत्त्व संतान होने पर आधारित था, पनिन्ना संतानहीन हन्ना को अत्यंत चिढ़ाकर” उसकी पीड़ा को और कष्टप्रद बना देती थी l वह उसे कुढ़ाती रही जबतक कि हन्ना रो नहीं दी और भोजन न कर सकी (1 शमूएल 1:6-7) l
और एल्काना शायद अच्छा ही सोचता था, परन्तु उसका विचारहीन उत्तर, “हे हन्ना, तू क्यों रोटी है? . . . क्या तेरे लिए मैं दस बेटों से भी अच्छा नहीं हूँ” (पद.8) फिर भी कष्टदायक था l
हन्ना के समान, हममें से अनेक कष्टकर शब्दों का परिणाम सहते रहते हैं l और हममें से कुछ एक अपने ही शब्दों द्वारा घोर प्रहार करके और दूसरों को चोट पहुंचाकर कदाचित अपने ही घावों के प्रति प्रतिकार किये हैं l परन्तु हम सब सामर्थ्य और चंगाई के लिए अपने प्रेमी और दयालु परमेश्वर की पास जा सकते हैं (भजन 27:5, 12-14) l वह प्रेम और अनुग्रहकारी शब्द बोलकर प्यार सहित हमारे लिए आनंदित होता है l
पत्थर फेंकना
लीसा के मन में उनके लिए कोई सहानुभूति नहीं है जिन्होनें अपने जीवनसाथी ले साथ बेवफ़ाई की है . . . जबतक उसने अपने विवाह में गहरे असंतुष्टता का अनुभव नहीं किया और एक खतरनाक आकर्षण पर क़ाबू पाने की कोशिश करते हुए पाया l उस पीड़ादायक अनुभव ने उसे दूसरों के लिए नयी करुणा और मसीह के शब्दों की…
फूल की तरह प्रफुल्लता
मेरा सबसे छोटा पौत्र केवल दो महीने का है, फिर भी हर बार जब मैं उसे देखती हूँ मैं उसमें छोटे-छोटे बदलाव पाती हूँ l हाल ही में, जब मैं उसको दुलार रही थी, वह मेरी ओर देखकर मुस्कराया! और अचानक मैं रोने लगी l शायद वह आनन्द था जो मैं अपने बच्चों की पहली मुस्कराहट के साथ याद कर रही थी l कुछ क्षण ऐसे ही होते हैं – वर्णन से बाहर l
भजन 103 में दाऊद ने एक काव्यात्मक गीत लिखा जिससे परमेश्वर की प्रशंसा के साथ इस पर भी विचार किया गया है कि हमारे जीवनों के आनंदित क्षण कितनी जल्दी गुज़र जाते हैं : “मनुष्य की आयु घास के समान होती है, वह मैदान के फूल के समान फूलता है, जो पवन लगते ही ठहर नहीं सकता, और न वह अपने स्थान में फिर मलता है” (पद. 15-16) l
परन्तु जीवन की अल्पता को जानने के बावजूद, दाऊद फूल को फलता-फूलता या बढ़ता हुआ वर्णन करता है l यद्यपि हर एक फूल अकेले ही शीघ्रता से खिलता और फूलता है, उसकी खुशबु और रंग और सुन्दरता उस क्षण को बहुत ही आनंदित करती है l और यद्यपि एक अकेला फूल शीघ्र ही भुलाया जा सकता है – “न वह अपने स्थान में फिर मिलता है” (पद.16) – तुलनात्मक तौर पर हमें निश्चय है कि “यहोवा की करुणा उसके डरवैयों पर युग युग . . . प्रगट होता रहता है” (पद.17) l
हम भी फूलों की तरह, उस क्षण में आनंदित होते और फलते-फूलते है; किन्तु हम इस सत्य का भी उत्सव मना सकते हैं कि हमारे जीवन के क्षण वास्तव में कभी भूलाए नहीं जाएंगे l परमेश्वर हमारे जीवनों के हर एक अंश को संभाले रखता है, और उसका अनंत प्रेम सदैव उसके बच्चों के साथ है l