स्कूल में कुछ चुनौतियों का सामना करने के बाद एक युवा लड़के को, उसके पिता ने उसे एक प्रतिज्ञा सिखाना शुरू किया जिसे उसे स्कूल जाने से पहले सुनना था : “मैं परमेश्वर को आज मुझे जगाने के लिए धन्यवाद देता हूँ l मैं स्कूल जा रहा हूँ ताकि मैं सीख सकूँ . . . और एक अगुवा बन सकूँ जो बनने के लिए परमेश्वर ने मुझे रचा है l” प्रतिज्ञा एक तरीका है जिससे पिता अपने बेटे को खुद पर लागू करने और जीवन की अपरिहार्य चुनौतियों से निपटने में मदद करने की उम्मीद करता है l

एक तरह से, अपने बेटे से इस प्रतिज्ञा को याद करने में मदद करने के द्वारा, पिता कुछ वैसा ही कर रहा है जैसा कि परमेश्वर ने मरुभूमि में इस्राएलियों को दिया था : “ये आज्ञाएँ  . . . तेरे मन में बनी रहें l तू इन्हें अपने बालबच्चों को समझाकर सिखाया करना” (व्यवस्थाविवरण 6:6-7) l

चालीस साल तक जंगल में भटकने के बाद, इस्राएलियों की अगली पीढ़ी प्रतिज्ञात देश में प्रवेश करने वाली थी l परमेश्वर जानता था कि उनके लिए सफल होना आसान नहीं होगा – जब तक कि वे अपना ध्यान उस पर नहीं रखेंगे l और इसलिए, मूसा के द्वारा, उसे याद करने और उसके प्रति आज्ञाकारी होने का आग्रह किया – और अपने बच्चों को उसके वचन के बारे में “घर में बैठे, मार्ग पर चलते, लेटते, उठते” (पद.7) बात करके परमेश्वर को जानने और प्यार करने में मदद करने के लिए कहा l

हर नए दिन में, हम भी पवित्रशास्त्र को अपने दिलों और दिमागों का मार्गदर्शन करने की अनुमति देने के लिए प्रतिबद्ध हो सकते हैं जब हम उसके प्रति आभार व्यक्त करते हैं l