चर्च से कुंठित और निराश, सत्रह वर्षीय थॉमस ने जवाबों के लिए एक लम्बी खोज शुरु की l लेकिन उसने जो कुछ भी खोजा वह उसकी लालसाओं को संतुष्ट करते हुए प्रतीत नहीं हुए या  उसे उसके सवालों के जवाब मिले l

उसकी इस यात्रा ने अवश्य ही उसे उसके माता-पिता के निकट ला दिया l फिर भी मसीहत के साथ उसको समस्याएँ थीं l एक चर्चा के दौरान, वह कड़वाहट के साथ चिल्ला उठा, “बाइबल खोखली प्रतिज्ञाओं से भरी हुई है l”

एक अन्य आदमी निराशाओं और कठिनाईयों का सामना किया जिन्होंने उसके संदेहों को बढ़ा दिया l लेकिन जब दाऊद अपने शत्रुओं से भाग रहा था जो उसको मारना चाहते थे, उसका प्रत्युत्तर परमेश्वर से भागना नहीं परन्तु उसकी प्रशंसा करना थी l “चाहे मेरे विरुद्ध लड़ाई ठन जाए, उस दशा में भी मैं हियाव बांधे निश्चिन्त रहूँगा” (भजन 27:3) l

फिर भी दाऊद की कविता संदेह की ओर इशारा करती है l उसकी पुकार, “हे यहोवा, मेरा शब्द सुन, मैं पुकारता हूँ, तू मुझ पर अनुग्रह कर और मुझे उत्तर दे” (पद.7), भयातुर और प्रश्नों से भरा व्यक्ति महसूस होता है l “अपना मुख मुझ से न छिपा . . . मुझे त्याग न दे, और मुझे छोड़ न दे,” दाऊद ने विनती की (पद.9) l

हालाँकि, दाऊद ने अपने शक को उसे पंगु नहीं बनाने दिया l उन संदेहों में भी, उसने घोषणा की, “[मैं] जीवितों की पृथ्वी पर यहोवा की भलाई को देखूंगा” (पद.13) l उसके बाद उसने अपने पाठकों को संबोधित किया : आप, मैं, और इस संसार के थॉमस लोग l “यहोवा की बाट जोहता रह; हियाव बाँध और तेरा हृदय दृढ़ रहे; हाँ, यहोवा ही की बाट जोहता रह!” (पद.14) l

हम अपने अत्यंत बड़े प्रश्नों का शीघ्र और सरल उत्तर नहीं प्राप्त करेंगे l लेकिन हम पाएंगे – जब हम उसकी बाट जोहेंगे – एक परमेश्वर जो भरोसेमंद है l