जब मेरे पति और मैं कर्नाटक राज्य के एक छोटे,  बीहड़ स्थान की खोज कर रहे थे,  तो मैंने एक चट्टानी, सूखी जगह पर एक सूरजमुखी का पौधा देखा, जहाँ काँटेदार नागफनी(cactus) और अन्य  खरपतवार उगे हुए थे l यह घरेलू सूरजमुखी जितना लंबा तो नहीं था,  लेकिन वह उतना ही उज्ज्वल था – और मुझे खुशी महसूस हुई l

इस उबड़-खाबड़ स्थान में यह अप्रत्याशित उज्ज्वल स्थान मुझे याद दिलाता है कि कैसे यीशु में विश्वासियों के लिए भी, जीवन, बंजर और निराश लग सकता है l मुसीबतें अजेय लग सकती हैं, और भजनकार दाऊद के रोने की तरह,  हमारी प्रार्थनाएँ कभी-कभी अनसुनी सी महसूस होती हैं : “हे यहोवा, कान लगाकर मेरी सुन ले, क्योंकि मैं दिन और दरिद्र हूँ” (भजन संहिता 86: 1) l  उसकी तरह,  हम भी आनंद के लिए लालायित होते हैं (पद.4) l

लेकिन दाऊद आगे बढ़ते हुए घोषित करता हैं कि हम एक विश्वासयोग्य (पद.11), “दयालु और अनुग्रहकारी परमेश्वर” (पद.15), की सेवा करते हैं (पद.15), जो उन्हें जो उसे “पुकारते हैं उन सभों के लिए . . . अति करुनामय है” (पद.5) l वह निश्चय उत्तर देता है (पद.7) l

कभी-कभी उजाड़ स्थानों में, परमेश्वर एक सूरजमुखी भेजता है – एक उत्साहजनक शब्द या एक मित्र की ओर से एक पत्र; एक आरामदायक पद या बाइबल सन्देश; एक सुन्दर सूर्योदय – जो हमें आशा के साथ एक हलके कदम से आगे बढ़ने में मदद करता है l यहां तक ​​कि जब हम उस दिन का इंतज़ार करते हैं, जब हम अपनी कठिनाई से परमेश्वर के छुटकारा का अनुभव करेंगे, हम भजनकार के साथ घोषणा करने में शामिल हों, “ तू महान् और आश्चर्यकर्म करनेवाला है, केवल तू ही परमेश्वर है” (पद.10) l