अवश्य
शर्ली एक लम्बे दिन के पश्चात् अपनी आराम कुर्सी पर बैठ गयी l उसने खिड़की के बाहर उससे भी वृद्ध पति-पत्नी को एक बाड़े को खींचते हुए देखा जो एक अहाते में पड़ा था और जिसपर लिखा था “मुफ्त है l” शर्ली अपने पति के साथ उनकी मदद करने दौड़ गयी l चारों ने मिलकर मेहनत की और बाड़े के एक हिस्से को एक ठेले में लादकर शहर के सड़क से होते हुए उस दम्पति के घर के निकट ले आये – पूरे समय हँसते हुए कि वे तमाशा बन गए थे l जब वे बाड़े के दूसरे हिस्से को लेने गए, उस महिला ने शर्ली से पुछा, “तुम्हें मेरी सहेली बनना चाहिए?” “हाँ, अवश्य,” उसने उत्तर दिया l शर्ली को बाद में पता चला कि उसकी नयी वियतनामी सहेली थोड़ी अंग्रेजी जानती थी और अकेली थी क्योंकि उसके व्यस्क बच्चे उनसे बहुत दूर रहने चले गए थे l
लैव्यव्यवस्था की पुस्तक में, परमेश्वर ने इस्राएलियों को याद दिलाया कि वे परदेशी होने का अनुभव जानते थे (19:34) और दूसरों के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए (पद.9-18) l परमेश्वर ने उनको अपना राष्ट्र बनाने के लिए अलग किया था, और इसके बदले में उन्हें अपने “पड़ोसियों” से अपने समान प्रेम करके उन्हें आशीष देना था l परमेश्वर की ओर से सभी राष्ट्रों के लिए महानतम आशीष, यीशु ने, बाद में अपने पिता के शब्दों को दोहराया और उनको हम तक पहुँचाया : “तू परमेश्वर अपने प्रभु से . . . और . . . अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रख” (मत्ती 22:37-39) l
हमारे अन्दर मसीह की आत्मा के निवास करने के द्वारा, हम परमेश्वर से और दूसरों से प्रेम कर सकते हैं क्योंकि उसने पहले हमसे प्रेम किया है (गलातियों 5:22-23; 1 युहन्ना 4:19) l क्या हम शर्ली के साथ कह सकते हैं, “हाँ, अवश्य”?
अभी से
जब मेरी सबसे बड़ी बहन के बायोप्सी(ख़ास चिकित्सीय जाँच) ने फरवरी 2017 के अंतिम दिनों में कैंसर प्रगट कर दिया, मैंने अपनी सहेलियों से कहा, “अभी से शुरू करते हुए - मुझे अपनी बहन कैरोलिन के साथ अधिकाधिक समय व्यतीत करना होगा l” कुछ लोगों ने मुझसे कहा कि मेरी भावनाएं उस खबर के प्रति एक अनावश्यक प्रतिक्रिया थी l परन्तु दस महीनों के भीतर उनकी मृत्यु हो गयी l और उनके साथ घंटों बिताने के बावजूद, जब हम किसी से प्रेम करते हैं हमारे हृदयों के पास प्रयाप्त प्रेम करने के लिए प्रयाप्त समय कभी नहीं है l
प्रेरित पतरस ने आरम्भिक कलीसिया में यीशु के अनुयायियों को “एक दूसरे से अधिक प्रेम” (1 पतरस 4:8) रखने का आह्वान किया l वह सताव के अंतर्गत दुःख उठा रहे थे और उनके लिए अपने मसीही समुदाय में अपने भाइयों और बहनों से पहले से अधिक प्रेम करना ज़रूरी था l क्योंकि परमेश्वर ने उनके हृदयों में अपना प्रेम उंडेला था, बदले में वे भी दूसरों को प्रेम करना चाहेंगे l उनका प्रेम प्रार्थना, उदार आतिथ्य, और कोमल और सच्चे संवाद द्वारा प्रगट होना था – सबकुछ परमेश्वर द्वारा दी गयी सामर्थ्य में (पद.9-11) l अपने अनुग्रह के द्वारा, परमेश्वर ने उनको लाभहीन तरीके से उसके नेक उद्देश्य के साथ परस्पर सेवा करने का वरदान किया था l ताकि “सब बातों में यीशु मसीह के द्वारा, परमेश्वर की महिमा प्रगट हो” (पद.11) l यह परमेश्वर की सामर्थी योजना है जो वह हमारे द्वारा पूरी करता है l
हमें दूसरों की और उनको हमारी ज़रूरत है l हम प्रेम करने के लिए परमेश्वर से जितना भी समय या जितने भी संसाधन प्राप्त किये हैं उनका उपयोग करें – अभी से l
क्या हम आराम कर सकते हैं?
डार्नेल यह जानते हुए भौतिक चिकित्सक(Physical therapist) के कार्यालय में प्रवेश किया कि वह अत्यधिक दर्द का अनुभव करेगा l चिकित्सक ने उसकी बाहों को खींचा/फैलाया और उनको उन स्थितियों में मोड़े जो मैंने अपने चोट लगने के समय से अभी तक नहीं किये थे l प्रत्येक असुविधाजनक स्थिति में कुछ क्षणों तक रखते हुए, उसने कोमलता से उससे बोली : “ठीक है, आप आराम कर सकते हैं l” उसने बाद में कहा, “मैं सोचता हूँ कि हर एक थेरेपी सत्र में मैंने कम से कम पचास बार उस बात को सुना : ‘ठीक है, आप आराम कर सकते हैं l’ ”
उन शब्दों पर विचार करते हुए, डार्नेल ने महसूस किया कि ये शब्द उसके सम्पूर्ण जीवन में भी लागू हो सकते हैं l वह चिंता के बदले परमेश्वर की भलाई और विश्वासयोग्यता में आराम कर सकता था l
जब यीशु अपनी मृत्यु के निकट पहुँचा, वह जानता था कि उसके शिष्यों को यह जानना ज़रूरी था l जल्द ही वे उथल-पुथल और सताव का सामना करेंगे l यीशु ने उनको उत्साहित करने के लिए कहा, वह पवित्र आत्मा को उनके साथ रहने और उसकी शिक्षा को उनको याद दिलाने के लिए भेजेगा (यूहन्ना 14:26) l और इसलिए वह कह सका , “मैं तुम्हें शांति दिए जाता हूँ, अपनी शांति तुम्हें देता हूँ . . . तुम्हारा मन व्याकुल न हो, और न डरे” (पद.27) l
हमारे दैनिक जीवनों में बहुत कुछ है जिसके विषय हम ईमानदार हो सकते हैं l किन्तु हम खुद को याद दिलाते हुए परमेश्वर में अपने भरोसे में उन्नति कर सकते हैं कि उसका आत्मा हमारे अन्दर बसता है – और वह अपनी शांति हमें देता है l जब हम उसकी सामर्थ्य पर निर्भर होते हैं, हम चिकित्सक के शब्दों में उसकी सुन सकते हैं : “ठीक है, तुम आराम कर सकते हैं l”
मैं केवल यही देखता हूँ
सर्दियों के एक जमा देने वाले दिन क्रिस्टा खड़ी हो कर झील के साथ ही बने हुए बर्फ से ढके सुन्दर लाईटहाउस को देख रही थी। जैसे ही उसने फोटो लेने के लिए अपने फोन को बाहर निकाला, उसके चश्मे के शीशों पर धुंध जम गई। वह कुछ भी नहीं देख पाई, तो उसने अपने कैमरे को लाईटहाउस की ओर करने का निर्णय किया और अलग-अलग कोणों से तीन-चार तस्वीरें खींच ली। बाद में देखने पर उसे पता चला कि कैमरा तो “सेल्फी” लेने के लिए सैट किया हुआ था और उसने हंसते हुए कहा, “मेरा केन्द्र तो मैं और मैं और मैं ही थी।” क्रिस्टा की तस्वीरों ने मुझे ऐसी ही एक गलती को याद दिलाया: कि हम इतने आत्मकेन्द्रित हो जाते हैं कि हम परमेश्वर की बड़ी योजना को अपनी दृष्टि से ओझल कर देते हैं। यीशु का चचेरा भाई यूहन्ना स्पष्ट रीति से जानता था कि उसका केन्द्र वह स्वयं नहीं था। आरम्भ से ही उसने पहचान लिया था कि उसका स्थान या बुलाहट परमेश्वर के पुत्र यीशु की ओर संकेत करने की थी । जब उसने यीशु को उसके और उसके शिष्यों की ओर आते हुए देखा, तो उसने कहा, “देखो परमेश्वर का मेमना!” (यूहन्ना 1:29)। उसने कहना जारी रखा, “मैं जल से बपतिस्मा देता हुआ आया कि वह इस्राएल पर प्रगट हो जाए। (पद 31)। जब कुछ समय बाद यूहन्ना के शिष्यों ने सूचना दी कि यीशु के शिष्य बन रहे हैं, यूहन्ना ने कहा, “तुम तो आप ही मेरे गवाह हो कि मैं ने कहा, ‘मैं मसीह नहीं, परन्तु उसके आगे भेजा गया हूँ।...अवश्य है कि वह बढ़े और मैं घटूँ।” (यूहन्ना 3:28-30)।
परमेश्वर करे कि हमारे जीवनों का केन्द्र बिन्दु यीशु और उसे अपने सम्पूर्ण हृदय से प्रेम करना हो।
वह किस प्रकार का उद्धारकर्ता है?
पिछले वर्ष, कुछ मित्रों ने और मैंने तीन महिलाओं की चंगाई के लिए प्रार्थना की, जो कैंसर के साथ संघर्ष कर रही थींl हम जानते थे कि परमेश्वर में ऐसा करने की सामर्थ थी और हम ने उससे ऐसा करने के लिए प्रतिदिन प्रार्थना कीl हम ने बीते समय में उसे कार्य करते हुए देखा था और हमें विश्वास था कि वह ऐसा फिर से कर सकता थाl हम में से प्रत्येक के संघर्ष में ऐसे दिन आए, जिनमें ऐसा लगा कि चंगाई वास्तविकता में बदल गई है और हम सभी ने खुशी मनाईl परन्तु उस पतझड़ में उन सभी की मृत्यु हो गईl कुछ लोगों ने कहा कि यही “अन्तिम चंगाई” थी और एक तरह से यह थी भीl परन्तु फिर भी उस हानि ने हमें गहरा दुःख पहुँचायाl हम चाहते थे वह उन सभी को-यहीं और अभी-चंगा कर दे, परन्तु क्या कारण रहे यह हम कभी भी नहीं समझ पाए, कि कोई चमत्कार नहीं हुआl
कुछ लोग उन चमत्कारों के कारण, जो उसने किए और अपनी आवश्यकताओं को पूरा करवाने के लिए यीशु के पीछे आए (यूहन्ना 6:2, 26)l कुछ लोगों ने उसे बस एक बढ़ई के पुत्र के रूप में देखा (मत्ती 13:55-58), और कुछ लोगों ने उससे उनके राजनीतिक अगुवे होने की आशा की (लूका 19:37-38)l कुछ लोगों ने उसे एक महान शिक्षक माना (मत्ती 7:28-29), जबकि कुछ लोगों ने उसके पीछे आना समाप्त कर दिया क्योंकि उसकी शिक्षा समझने में कठिन थी (यूहन्ना 6:66)l
यीशु अब भी हमारी उन सब अपेक्षाओं को हमेशा पूरा नहीं करता जो हम उससे रखते हैंl तौभी, वह हमारी कल्पना से बहुत बढ़कर हैl वह अनन्त जीवन प्रदान करने वाला है (पद 47-48) l वह भला और बुद्धिमान है; और वह प्रेम करता है, क्षमा करता है, हमारे निकट रहता है और हमें आराम प्रदान करता हैl ऐसा हो हम यीशु में जैसा वह है, वैसे में ही आराम प्राप्त करें और उसके पीछे चलते रहेंl
जहाँ हमें आशा मिलती है
एलिज़ाबेथ बहुत समय से ड्रग की लत से संघर्ष कर रही थी, और उससे छुटने के बाद अब उसके बदले दूसरों को मदद करना चाहती थी l इसलिए वह नाम रहित छोटे-छोटे पर्चे लिखकर अपने शहर में यहाँ-वहां रखने लगी l एलीजाबेथ इनको कारों की विंडशील्ड वाइपर के नीचे दबा देती है और पार्कों में खम्बों पर लगा देती है l पहले वह खुद आशा के संकेत खोजती थी; अब वह इन संकेतों को दूसरों के लिए छोड़ देती है l उनके एक पर्चे के अंत में यह लिखा था : “अत्यधिक प्रेम l आशा भेजी गयी l”
प्रेम के साथ आशा – यही तो यीशु देता है l वह प्रतिदिन हमारे लिए अपना प्रेम लाता है और अपनी आशा से हमें सामर्थी बनता है l उसका प्रेम सीमित नहीं है किन्तु बहुतायत से उसके हृदय से हमारे हृदयों में उदारतापूर्वक उंडेला जाता है l “हम जानते हैं कि परमेश्वर हमसे कितना प्रेम करता हैं, क्योंकि उसने हमारे हृदयों को अपने प्रेम से परिपूर्ण करने के लिए हमें पवित्र आत्मा दिया है” (रोमियों 5:5) l वह कठिन समयों का उपयोग हममें धीरज और चरित्र विकसित करने और संतुष्ट और आशा से परिपूर्ण जीवन देने के लिए करता है (पद. 3-4) l और जब हम उससे दूर होते हैं, उस समय भी, वह हमसे प्रेम करता है (पद.6-8) l
क्या आप आशा के संकेत ढूंढ़ रहे हैं? प्रभु हमें उसके साथ सम्बन्ध विकसित करने के लिए निमंत्रण देकर प्रेम से आशा देता है l परिपूर्ण जीवन के लिए हमारी आशा उसके अपराजित प्रेम में स्थिर है l
क्रूस का दृष्टिकोण
मेरे सहकर्मी टॉम के डेस्क पर 8 इंच चौड़ा और 12 इंच लम्बा क्रूस रखा हुआ है l उसका मित्र, फिल ने जो कैंसर के रोग से बच गया, उसे यह इसलिए दिया ताकि टॉम सब कुछ को “क्रूस के दृष्टिकोण” से ही देख सके l कांच का वह क्रूस परमेश्वर के प्रेम का और उसके लिए उसकी भली इच्छा का ताकीद है l
मसीह में यह सभी विश्वासियों के लिए चुनौतीपूर्ण विचार है, विशेषकर कठिन दिनों में l परमेश्वर के प्रेम की अपेक्षा अपनी समस्याओं पर केन्द्रित होना अधिक सरल है l
प्रेरित पौलुस का जीवन अवश्य ही क्रूस का दृष्टिकोण रखनेवाला एक उदहारण था l सताव के समय उसने खुद के विषय कहा कि “सताए तो जाते हैं, पर त्यागे नहीं जाते, गिराए तो ज़ाते हैं, पर नष्ट नहीं होते” (2 कुरिं. 4:9) l उसका विश्वास था कि कठिन दिनों में, परमेश्वर काम करता है, “हमारे लिए बहुत ही महत्वपूर्ण और अनंत महिमा उत्पन्न करता जाता है; और हम तो देखी हुई वस्तुओं पर नहीं परन्तु अनदेखी वस्तुओं को देखते रहते हैं” (पद.17-18) l
अनदेखी वस्तुओं को देखते” रहने का अर्थ यह नहीं कि हम अपनी समस्याओं को घटाते हैं l पॉल बर्नेट अपनी टीका में इस परिच्छेद की व्याख्या इस तरह करते हैं, “[हमारे लिए] परमेश्वर के उद्देश्य की सच्चाई पर आधारित, भरोसा होना चाहिए . . . दूसरी ओर, एक गंभीर मान्यता कि हम आशा के साथ कराहते हैं जिसमें पीड़ा भी है l”
यीशु ने हमारे लिए अपने जीवन की आहुति दे दी l उसका प्रेम गहरा और बलिदानी है l जब हम जीवन को “क्रूस के दृष्टिकोण” से देखते हैं, हम उसका प्रेम और विश्वासयोग्यता देखते हैं l और उसमें हमारा भरोसा बढ़ता है l
एक साल में बाइबल
सीरिया की एक स्त्री, रीमा जो अमरीका में आकर रहने लगी थी, ने अपने शिक्षक को हाथों के इशारों और सीमित अंग्रेजी भाषा की सहायता से बताने का प्रयास किया कि वह परेशान है l उसके आँसू बह रहे थे जब वह खूबसूरती से एक थाली में फतेयर (गोश्त, पनीर, और पालक से बना व्यंजन) लेकर आयी l तब उसने कहा, “एक व्यक्ति,” और उसने लम्बी साँस की आवाज़ निकलते हुए दरवाज़े से कमरे की ओर और कमरे से दरवाज़े की ओर इशारा किया l शिक्षक ने उसकी बातों को समझाया कि निकट के चर्च से बहुत से लोगों को कुछ उपहार लेकर रीमा और उसके परिवार से मिलने आना था l लेकिन केवल एक ही व्यक्ति आया l वह आकर अपने उपहार रखकर तुरन्त लौट गया l वह व्यक्ति अपनी जिम्मेदारियों में व्यस्त था, जबकि रीमा और उसका परिवार अकेलापन महसूस कर रहे थे और समुदाय की सहभागिता चाहते थे और अपने नए मित्रों के संग अपना नया व्यंजन फतेयर बांटना चाहते थे l
यीशु हमेशा लोगों को समय देता था l उसने समारोहों में भाग लिया, भीड़ को शिक्षा दी, और समय निकलकर व्यक्तियों से बातचीत की l वह एक कर अधिकारी, जक्कई के घर का मेहमान भी बना, जो पेड़ पर चढ़ कर उसे देखना चाहता था l यीशु उसे देखकर उससे बोला था, “झट उतर आ; क्योंकि आज मुझे तेरे घर में रहना अबश्य है” (लूका 19:1-5) l और जक्कई का जीवन हमेशा के लिए बदल गया था l
अन्य जिम्मेदारियों के कारण, हम हमेशा समय नहीं दे सकते हैं l किन्तु जब समय निकलते हैं, हमारे पास दूसरों के साथ संगती करने का और यह देखने का अद्भुत समय होगा कि परमेश्वर हमारे द्वारा कार्य कर रहा है l
यह स्वभाव में है
रेजिना के दिन का आरम्भ, एक दुखद खबर से हुआ था, फिर सहकर्मियों के साथ मीटिंग्स थीं जिनमें उसके सभी आईडिया अस्वीकृत हो गए। लौटते समय उसने एक केयर सेंटर में किसी बुजुर्ग मित्र के पास फूल ले जाकर उसे सरप्राइज देने का निर्णय लिया। मरिया के यह बताने पर कि परमेश्वर उसके लिए कितने भले हैं, उसकी आत्मा तरोताज़ा हो गई। उसने कहा, "मेरा अपना बिस्तर और अपनी कुर्सी हैं, तीन समय का भोजन और नर्सों की मदद है। और कभी किसी अपने को परमेश्वर मेरे पास भेज देते हैं क्योकि वे जानते हैं कि मैं उन से प्यार करती हूँ और वह स्वयं मुझ से प्यार करते हैं।"
स्वभाव। दृष्टिकोण। कहावत है, "10 प्रतिशत जीवन उससे बना है जो हमारे साथ घटता है, और 90 प्रतिशत उसपर हमारी प्रतिक्रिया से।" याकूब ने उनके नाम पत्र लिख था जो सताव के कारण तित्तर बित्तर हो गए थे, और उनसे परख के समय अपने दृष्टिकोण पर गौर करने को कहा। उसने उन्हें इन शब्दों से चुनौती दी: “इसको पूरे आनन्द की बात समझो...”। (याकूब 1:2)
आनंद से भरे होने का यह दृष्टिकोण तब उत्पन्न होता जब हम यह देखना सीख लेते हैं कि परमेश्वर संघर्षों का उपयोग हमारे विश्वास में परिपक्वता लाने के लिए करते हैं।