आप जानते होंगे कि यह कैसा है l एक चिकित्सा प्रक्रिया के बाद बिल आते रहते हैं – निश्चेतक से, शल्यचिकित्सक से, लैब से, चिकित्सालय से l रोहन ने आपातकालीन सर्जरी के बाद इसका अनुभव किया l उसने शिकायत की, “हम बीमा के बाद हज़ारों रुपयों के देनदार होते हैं l यदि केवल हम इन बिलों का भुगतान कर सकते हैं, तो जीवन अच्छा होगा और मुझे संतोष होगा! फिलहाल, मुझे ऐसा लग रहा है कि बेतरतीब क्रिकेट की गेंदों से मुझ पर प्रहार हो रहा है, जिसके कारण मुझे पार्क से बाहर जाना पड़ता है l  

जीवन उसी प्रकार कभी-कभी हमारे पास आता है l प्रेरित पौलुस निश्चित रूप से हमदर्दी रख  सकता था l उसने कहा, “मैं दीन होना भी जानता हूँ,” फिर भी उसने “सब दशाओं में . . तृप्त होना” सीख लिया था (फिलिप्पियों 4:12) l उसका रहस्य? जो मुझे सामर्थ्य देता है उसमें मैं सब कुछ कर सकता हूँ” (पद.13) l जब मैं ख़ास तौर पर असंतुष्ट समय से निकल रहा था, तो मैं एक बधाई पत्र पर इसे पढ़ा : “यदि यह यहाँ नहीं है, तो यह कहाँ है?” यह एक शक्तिशाली अनुस्मारक था कि अगर मैं यहाँ और अभी संतुष्ट नहीं हूँ, तो कौन सी बात मुझे सोचने को विवश करती है कि यदि मैं किसी दूसरी स्थिति में होता तो मैं संतुष्ट होता?

हम यीशु में संतुष्ट होना कैसे सीखते हैं? शायद यह ध्यान देने की बात है l आनंद और अच्छे के लिए आभारी होने के विषय l एक वफादार पिता के बारे में अधिक जानने के लिए l विश्वास और धैर्य में बढ़ने में l यह पहचानने में कि जीवन परमेश्वर के बारे में है और मेरे बारे में नहीं है l उसमें निहित संतुष्टता मुझे सिखाने का आग्रह करना l