कीड़ा से लड़ाई तक
10 वर्ष का क्लेओ पहली बार मछली पकड़ते समय चारे के डिब्बे में झांककर हिचकिचाया l आखिरकार उसने मेरे पति से कहा, “मेरी मदद करें, मैं कीड़ा से डरता हूँ l उसके भय ने उसे काम करने से रोका l
भय वयस्कों को भी पंगु कर देता है l गिदोन भी भयभीत हुआ होगा जब परमेश्वर का स्वर्गदूत उससे मिलने आया जब वह मिद्यानी शत्रुओं से छिपकर गेहूँ साफ़ कर रहा था (न्यायियों 6:11) l स्वर्गदूत ने उससे कहा कि वह युद्ध में परमेश्वर के लोगों की अगुवाई करने के लिए परमेश्वर द्वारा चुना गया था (पद.12-14) l
गिदोन का प्रतुत्तर? “हे मेरे प्रभु, विनती सुन, मैं इस्राएल को कैसे छुड़ाऊँ? देख, मेरा कुल मनश्शे में सब से कंगाल है, फिर मैं अपने पिता के घराने में सब से छोटा हूँ” (पद.15) l परमेश्वर की उपस्थिति की निश्चितता के बाद भी, गिदोन भयभीत था और चिन्ह माँगा कि परमेश्वर अपनी प्रतिज्ञा अनुसार इस्राएल को बचाने के लिए उसे उपयोग करेगा (पद.36-40) l और परमेश्वर ने उसके निवेदन का उत्तर दिया l इस्राएली यूद्ध में सफल रहे और 40 वर्षों तक शांति का आनंद उठाया l
हम सब भी अनेक तरह से भयभीत होते हैं-कीड़ों से लड़ाई तक l गिदोन की कहानी हमें सिखाती है कि हम इसमें निश्चित रहें : यदि परमेश्वर हमसे कुछ करने को कहता है, वह उसे करने के लिए सामर्थ्य और ताकत देगा l
परमेश्वर कुछ नया करता है
हाल ही में एक समूह में भागीदारी करते समय अगुए ने प्रश्न किया “क्या परमेश्वर आपके जीवन में कुछ नया कर रहा है?” कुछ कठिन स्थितियों से जूझ रही मेरी सहेली, मिंडी ने उत्तर दिया l उसने अपने वृद्ध माता-पिता के साथ धीरज, अपने अस्वस्थ पति के लिए ताकत, और बच्चों की समझ शक्ति और नाती-पोतों के विषय बताया जिन्होंने यीशु को उद्धारकर्ता ग्रहण नहीं किया था l तब उसने हमारी स्वाभाविक सोच के विपरीत गहरी पहुँच वाली टिप्पणी की : “मैं मानती हूँ परमेश्वर मेरे प्रेम करने और अवसर की सीमा को बढ़ाने का नया कार्य कर रहा है l”
थिस्सलुनीके के नए विश्वासियों के लिए पौलुस की प्रार्थना यहाँ ठीक बैठती है : “तुम्हारा प्रेम भी आपस में और सब मनुष्यों के साथ बढ़े, और उन्नति करता जाए” (1 थिस्स. 3:12) l उसने उनको यीशु के विषय शिक्षा दी थी किन्तु दंगे के कारण उसे अचानक जाना पड़ा था (प्रेरितों 17:1-9) l अब अपनी पत्री में वह उनको अपने विश्वास में स्थिर रहने को कहा (1 थिस्स. 3:7-8) l और उसकी प्रार्थना थी कि प्रभु उनके प्रेम को सबके लिए बढ़ाए l
कठिनाईयों में हम अक्सर शिकायत करते और पूछते हैं, “क्यों? या सोचते है, मैं क्यों? ऐसी स्थितियों में दूसरों से प्रेम करने के नए अवसरों के लिए प्रभु से प्रेम को बढ़ाने और सहायता करने की ताकत मांगे l
मधुर संगति
नर्सिंग होम में वह वृद्ध महिला किसी से बातचीत नहीं करती थी अथवा किसी से कुछ नहीं मांगती थी l ऐसा लगता था मानों वह अपनी जर्जर पुरानी कुर्सी में झूलती हुई, महज जीवित थी l उससे मिलनेवाले कम ही थे, लिहाजा एक जवान नर्स अपने अवकाश के समय उसके कमरे में अक्सर जाती थी l उस महिला से बातचीत आरंभ न करने की इच्छा से प्रश्न न पूछकर, वह एक और कुर्सी खींचकर उसके साथ झूलने लगी l कुछ महीनों के बाद, उस वृद्ध महिला ने उससे कहा, “मेरे साथ झूलने के लिए धन्यवाद l” वह संगति के लिए धन्यवादी थी l
स्वर्ग जाने से पहले, यीशु ने अपने शिष्यों के साथ निरंतर रहनेवाला एक सहायक भेजने की प्रतिज्ञा की l उसने उनसे कहा कि वह उन्हें अकेले नहीं छोड़ेगा किन्तु उनके संग रहने के लिए पवित्र आत्मा भेजेगा (यूहन्ना 14:17) l वह प्रतिज्ञा आज भी यीशु के विश्वासियों के लिए सच है l यीशु ने कहा कि त्रियेक परमेश्वर हममें अपना “घर” बनाएगा (पद.23) l
हमारे सम्पूर्ण जीवन में प्रभु हमारा निकट और विश्वासयोग्य सहयोगी है l वह हमारे कठिनतम संघर्षों में मार्गदर्शन करेगा, हमारे पाप क्षमा करेगा, प्रत्येक शांत प्रार्थना सुनेगा, और उन बोझों को उठाएगा जो हमारे लिए उठाना कठिन है l
आज हम उसकी मधुर संगति का आनंद उठा सकते हैं l
पाँच उँगलियों की प्रार्थना
प्रार्थना एक सूत्र नहीं, परमेश्वर के साथ बातचीत है l फिर भी हमें अपने प्रार्थना समय को तरोताज़ा करने हेतु एक “तरीका” उपयोग करना संभव है l हम भजन और दूसरे वचनों को (जैसे प्रभु की प्रार्थना) को प्रार्थना के रूप में उपयोग कर सकते हैं, अथवा ACTS तरीका (Adoration-आराधना, Confession-पाप स्वीकार, Thanksgiving-धन्यवाद, and Supplication-विनती) उपयोग कर सकते हैं l हाल ही में मुझे “पाँच उँगलियों की प्रार्थना” का पता चला जो परहित प्रार्थना के लिए मर्दार्शिका हो सकती है l
· दोनों हाथ जोड़ने पर, अंगूठा आपके सबसे निकट है l इसलिए अपने निकट के लोगों के लिए-अपने प्रियों के लिए प्रार्थना करें (फ़िलि.1:3-5) l
· अगली ऊँगली तर्जनी है l शिक्षकों के लिए-बाइबिल शिक्षक और उपदेशक, और बच्चों को पढ़ानेवालों के लिए प्रार्थना करें (1 थिस्स. 5:25) l
· अगली ऊँगली सबसे लम्बी है l अधिकारियों के लिए प्रार्थना करें-राष्ट्रीय और स्थानीय अगुवे, और अपने काम के पर्वेक्षक के लिए प्रार्थना करें(1 तीमू. 2:1-2) l
· चौथी ऊँगली सबसे कमजोर है l परेशान और दुखित लोगों के लिए प्रार्थना करें (याकूब 5:13-16) l
· उसके बाद छोटी ऊँगली l यह परमेश्वर की महानता के समक्ष आपके छोटेपन की याद दिलाती है l अपनी ज़रूरतों के लिए प्रार्थना करें (फ़िलि. 4:6,19) l
आप जो भी तरीका उपयोग करें, अपने पिता से बात करें l वह आपके दिल की आवाज़ सुनना चाहता है l
पांच मिनट का नियम
मैं एक माँ को याद करता हूँ जिसके पास पांच मिनट का नियम था l प्रतिदिन बच्चों को स्कूल जाने से पांच मिनट पूर्व प्रार्थना के लिए इकट्ठा होना होता था l
बच्चे माँ के चारों ओर इकठ्ठा होते और वह प्रत्येक का नाम लेकर उनके दिन पर प्रभु का आशीष मांगती l फिर उसके प्यार करने के बाद वे चले जाते l पड़ोस के बच्चे भी इसमें शामिल हो जाते थे l कई वर्षों बाद एक बच्चे ने सीखी गई दैनिक प्रार्थना की विशेषता का अनुभव बताया l
भजन 102 का लेखक प्रार्थना का महत्त्व जानता था l इस भजन को कहते हैं, “दीन जन की उस समय की प्रार्थना जब वह दुःख का मारा अपने शोक की बातें यहोवा के सामने खोलकर कहता हो l” उसने पुकारा, “हे यहोवा, मेरी प्रार्थना सुन; ... जिस समय मैं पुकारूँ, उसी समय फुर्ती से मेरी सुन ले” (पद. 1-2) l परमेश्वर “ऊँचे ... स्थान से दृष्टि करके ... स्वर्ग से पृथ्वी की ओर देखा” (पद. 19) l
परमेश्वर आपकी चिंता करता है और आपकी सुनना चाहता है l चाहे आप पांच मिनट का नियम मानकर अपने दिन पर आशीष मांगे, या परेशानी के समय उसे अधिक समय पुकारते हैं, प्रभु से रोज़ प्रार्थना करें l आपका उदाहारण आपके परिवार और पड़ोसी पर गहरा प्रभाव डालेगा l
छोटी बातें
मेरी सहेली ग्लोरिया मुझे उत्तेजित होकर पुकारी l डॉक्टर से नियोजित भेंट के अलावा वह अपने घर से निकलने में असमर्थ थी l इसलिए मैं समझ गयी वह क्यों मुझसे कहने के लिए खुश थी, “मेरे पुत्र ने अभी-अभी मेरे कंप्यूटर में स्पीकर्स जोड़ा है, इसलिए अब मैं चर्च जा सकती हूँ!” अब वह अपने चर्च उपासना का सीधा प्रसारण सुन सकती थी l उसने परमेश्वर की भलाई की अत्यधिक चर्चा करी और “वह उपहार जो मेरा बेटा कभी मुझे दे सकता था!”
ग्लोरिया मुझे धन्यवादी हृदय रखना सिखाती है l उसके अनेक सीमाओं के बावजूद, वह छोटी बातों के लिए भी धन्यवादित है-सूर्यास्त, मददगार परिजन और मित्र, परमेश्वर के साथ शांत पल, अपने अपार्टमेन्ट में अकेले रहने की क्षमता l उसने परमेश्वर को जीवन भर उसकी ज़रूरतों को पूरा करते देखा है, और वह हर मिलनेवालों से परमेश्वर के विषय बताती है l
हम भजन 116 के रचयिता की कठिनाइयों को नहीं जानते हैं l कुछ बाइबिल टीकाकारों के अनुसार संभवतः बीमारी थी क्योंकि उसने कहा, “मृत्यु की रस्सियाँ मेरे चारों ओर थीं” (पद.3) l किन्तु अपने प्रति प्रभु का अनुग्रह और करुणा देखकर वह धन्यादित है जब उसे “बलहीन किया गया” (पद.5-6) l
जब हम बलहीन होते हैं, ऊपर देखना कठिन है l फिर भी ऐसा करने पर, हम देखते हैं कि परमेश्वर हमारे जीवनों में सभी अच्छे उपहारों का देनेवाला है-बड़ा और छोटा-और हम धन्यवाद देना सीखते हैं l
यीशु के कार्य देखें
वह आठ वर्षीय छोटा लड़का अपने माता-पिता के मित्र, वोली से बोला, “मैं यीशु से प्रेम करता हूँ और किसी दिन विदेश में परमेश्वर की सेवा करना चाहता हूँ l” आनेवाले दस वर्षों में वोली उसको बढ़ता देखकर उसके लिए प्रार्थना किया l जब वह युवक द्वारा माली जाकर सेवा करने हेतु एक मिशन एजेंसी में आवेदन किया, वोली ने उससे कहा, “समय हो गया है! मैंने तुम्हारी इच्छा जानकार, इस उत्तेजक खबर का इंतज़ार करते हुए, तुम्हारे लिए थोड़े पैसे जमा करना आरंभ किया l” वोली दूसरों की चिंता करता है और लोगों तक परमेश्वर का सुसमाचार पहुँचाना चाहता है l
परमेश्वर के राज्य का सुसमाचार सुनाते हुए एक नगर और गाँव से दूसरे तक जाते समय यीशु और उसके शिष्यों को आर्थिक साहयता चाहिए थी (लूका 8:1-3) l दुष्टात्मा और बीमारियों से छुटकारा प्राप्त स्त्रियों ने “अपनी सम्पति से” उनकी मदद की (पद.3) l एक सात दुष्टात्माओं से छुड़ाई गई मरियम मगदलीनी थी l दूसरी हेरोदेस के भंडारी खोजा की पत्नी, योअन्ना थी l सूसन्नाह और “बहुत से अन्य [स्त्रियों]” के विषय ज्ञात नहीं है (पद.3), किन्तु हमें मालूम है कि यीशु ने उनकी आत्मिक ज़रूरतें पूरी किये थे l अब उन्होंने आर्थिक संसाधन से उनकी मदद की l
यीशु के कार्य पर ध्यान देकर दूसरों के लिए उसकी इच्छा हमारी इच्छा बन जाती है l परमेश्वर से पूँछें वह आपको किस तरह उपयोग करना चाहता है l
धन्यवादी जीवन
अपने आत्मिक जीवन में परिपक्व और अधिक धन्यवादी होने की इच्छा से, सु ने धन्यवादी-जीवन मर्तबान बनाया l रोज़ शाम वह एक कागज पर परमेश्वर के प्रति धन्यवाद का विषय लिखकर मर्तबान में डाल देती थी l कुछ दिन उसके पास अनेक प्रशंसा होती थी; दूसरे कठिन दिनों में वह एक ढूँढने के लिए संघर्ष करती थी l वर्ष के अंत में उसने मर्तबान को खाली करके सभी पर्चे पढ़े l उसने अपने को परमेश्वर को उसके हर एक कार्य के लिए धन्यवाद देते हुए पाया l उसने खुबसूरत सूर्यास्त या पार्क में घुमने के लिए ठंडी शाम और दूसरे मौकों पर उसे किसी कठिन समस्या के हल के लिए अनुग्रह या प्रार्थना का उत्तर जैसी सरल आशीषें दी थीं l
सु की खोज मुझे भजनकार दाऊद के अनुभव की ताकीद देती है (भजन 23) l परमेश्वर ने उसे “हरी हरी चराईयों” और “सुखदाई जल” से तरोताज़ा किया (पद.2-3) l उसने उसे मार्गदर्शन, सुरक्षा, और शांति दी (पद.3-4) l दाऊद अंत करता है : “निश्चय भलाई और करुणा जीवन भर मेरे साथ-साथ बनी रहेंगी” (पद.6) l
मैं इस वर्ष धन्यवादी-जीवन मर्तबान बनाउँगी l शायद आप भी l मेरा विचार है हमारे पास परमेश्वर को धन्यवाद देने के अनेक कारण होंगे-मित्र और परिवार और उसके भौतिक, आत्मिक, और भावनात्मक ज़रूरतों के साथ l हम देखेंगे कि परमेश्वर की भलाई और करुणा और प्रेम हमारे साथ जीवन भर रहेंगे l
हमारा आवरण
मसीह में विश्वास के विषय संवाद करते समय, हम कभी-कभी शब्दों का उपयोग बगैर समझ और बिना समझाए करते हैं l उनमें से एक शब्द धर्मी है l हम कहते हैं कि परमेश्वर में धार्मिकता है और कि वह लोगों को धर्मी बनाता है, किन्तु यह विचार समझने में कठिन है l
चीनी भाषा में जिस तरह शब्द धार्मिकता लिखी हुई है सहायक है l यह दो शब्दों का मेल है l उपरी शब्द है भेड़ l नीचला शब्द है मुझे l भेड़ ढांकता है या व्यक्ति के ऊपर है l
यीशु के इस संसार में आने के बाद यूहन्ना बप्तिस्मादाता ने उसे “परमेश्वर का मेमना,’ पुकारा “ जो जगत का पाप उठा ले जाता है” (यूहन्ना 1:29) l हमारे पापों को जाना ही होगा क्योंकि यह हमें सिद्ध और सही परमेश्वर से अलग करता है l क्योंकि उसका प्रेम हमारे लिए अत्याधिक है, परमेश्वर ने अपने पुत्र यीशु को “जो पाप से अज्ञात था, उसी को उसने हमारे लिए पाप ठहराया कि हम उसमें होकर परमेश्वर की धार्मिकता बन जाएं” (2 कुरिं.5:21) l
मेमना यीशु, ने खुद को बलिदान करके अपना लहू बहाया l वह हमारा “बचाव” बना l वह हमें धर्मी बनाता है, जो हमें परमेश्वर के साथ सही सम्बन्ध में पहुंचाता है l
परमेश्वर के साथ सही होना उसकी ओर से उपहार है l मेमना यीशु, हमें ढंकने का परमेश्वर का तरीका है l