मेरे सहकर्मी टॉम के डेस्क पर 8 इंच चौड़ा और 12 इंच लम्बा क्रूस रखा हुआ है l उसका मित्र, फिल ने जो कैंसर के रोग से बच गया, उसे यह इसलिए दिया ताकि टॉम सब कुछ को “क्रूस के दृष्टिकोण” से ही देख सके l कांच का वह क्रूस परमेश्वर के प्रेम का और उसके लिए उसकी भली इच्छा का ताकीद है l

मसीह में यह सभी विश्वासियों के लिए चुनौतीपूर्ण विचार है, विशेषकर कठिन दिनों में l परमेश्वर के प्रेम की अपेक्षा अपनी समस्याओं पर केन्द्रित होना अधिक सरल है l

प्रेरित पौलुस का जीवन अवश्य ही क्रूस का दृष्टिकोण रखनेवाला एक उदहारण था l सताव के समय उसने खुद के विषय कहा कि “सताए तो जाते हैं, पर त्यागे नहीं जाते, गिराए तो ज़ाते हैं, पर नष्ट नहीं होते” (2 कुरिं. 4:9) l उसका विश्वास था कि कठिन दिनों में, परमेश्वर काम करता है, “हमारे लिए बहुत ही महत्वपूर्ण और अनंत महिमा उत्पन्न करता जाता है; और हम तो देखी हुई वस्तुओं पर नहीं परन्तु अनदेखी वस्तुओं को देखते रहते हैं” (पद.17-18) l

अनदेखी वस्तुओं को देखते” रहने का अर्थ यह नहीं कि हम अपनी समस्याओं को घटाते हैं l पॉल बर्नेट अपनी टीका में इस परिच्छेद की व्याख्या इस तरह करते हैं, “[हमारे लिए] परमेश्वर के उद्देश्य की सच्चाई पर आधारित, भरोसा होना चाहिए . . . दूसरी ओर, एक गंभीर मान्यता कि हम आशा के साथ कराहते हैं जिसमें पीड़ा भी है l”

यीशु ने हमारे लिए अपने जीवन की आहुति दे दी l उसका प्रेम गहरा और बलिदानी है l जब हम जीवन को “क्रूस के दृष्टिकोण” से देखते हैं, हम उसका प्रेम और विश्वासयोग्यता देखते हैं l और उसमें हमारा भरोसा बढ़ता है l