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Articles by आर्थर जैक्सन

लाइट्स ऑन करके जीवन जीना

एक कार्य के लिए मुझे और मेरे सहकर्मी को 250 किलोमीटर की यात्रा पर जाना पड़ा, और रात हो चुकी थी जब हम ने घर लौटने के लिए यात्रा आरम्भ की। बूढ़ा होता हुआ शरीर और बूढ़ी आँखें मुझे रात को गाड़ी चलाने में परेशान करती हैं; परन्तु फिर भी मैंने पहले गाड़ी चलाने को चुना। मेरे हाथों ने स्टियरिंग पकड़ लिया और मेरी आँखों ने धुंधली सड़कों को गौर से देखा। गाड़ी चलाते हुए मैंने पाया कि जब मेरे पीछे से आने वाले वाहन मेरे आगे सड़क पर रोशनी डालते थे, तब मैं और अच्छे से देख पाता था। मुझे आखिरकार बहुत आराम मिला, जब मेरे दोस्त ने चलाने के लिए गाड़ी मुझ से ले ली। तब उसे पता चला कि मैं तो बड़ी लाइट्स के साथ नहीं बल्कि छोटी लाइट्स जला कर गाड़ी चला रहा था!

भजन संहिता 119 ऐसे व्यक्ति की कुशल रचना है जो यह समझ गया कि परमेश्वर का वचन हमें प्रतिदिन जीने के लिए रोशनी प्रदान करता है (पद 105) । फिर भी, प्राय: कितनी बार हम अपने आप को मेरी तरह उस दिन हाईवे की रात जैसी असुखद स्थितियों में पाते हैं? हम देखने के लिए इतना जोर देते हैं जिसकी जरूरत नहीं है और कई बार हम सुखद मार्गों से भटक जाते हैं, क्योंकि हम परमेश्वर के वचन की रोशनी का प्रयोग करना भूल जाते हैं। भजन संहिता 119 हमें “बटन को ऑन” करने के बारे में इच्छित रहने के लिए प्रोत्साहित करता है। क्या होता है जब हम ऐसा करते हैं? हम पवित्रता के लिए बुद्धि प्राप्त करते हैं (पद 9-11); हम भटकने से बचने के लिए ताज़ा प्रेरणा और प्रोत्साहन प्राप्त करते हैं (101-102) । और जब हम लाइट्स ऑन करके जीवन जीते हैं, तो भजनकार की स्तुति हमारी स्तुति बन जाती है: “आहा! मैं तेरी व्यवस्था से कैसी प्रीति रखता हूँ! दिन भर मेरा ध्यान उसी पर लगा रहता है” (पद 97)।

प्रश्नों के साथ आराधना करना

यात्रियों के समूह में एक लम्बी (या छोटी) यात्रा पर जाते हुए किसी के द्वारा यह पूछना असामान्य नहीं है, “क्या हम पहुँच गए हैं?” किस ने बच्चों का बड़ों के ओंठो से आते हुए इन सार्वभौमिक प्रश्नों को नहीं सुना होगा, जो अपनी मंजिल पर पहुँचने के लिए उत्सुक हैं? परन्तु सभी आयु वर्ग के लोग यही प्रश्न पूछने की ओर प्रवृत होते हैं, जब वे जीवन की चुनौतियों से थक जाते हैं, जो कभी भी समाप्त होती प्रतीत नहीं होती। 

भजन संहिता 13 में ऐसी ही परिस्थिति दाऊद के साथ भी है। दो पदों में चार बार (पद 1-2) दाऊद-जिसे भुला दिए जाने, छोड दिए जाने और परास्त हो जाने का अहसास हुआ-दुखित होता है “कब तक?” पद दो में वह पूछता है, “मैं कब तक अपने मन ही मन में युक्तियाँ करता रहूँ?” भजन संहिता, जैसे यह भजन, जिनमें विलाप सम्मिलित है, हमें प्रत्यक्ष रूप से आराधना के रूप में अपने प्रश्नों के साथ प्रभु के पास आने की अनुमति देता है। आखिरकार, तनाव और दुःख के लम्बे समय में बात करने के लिए परमेश्वर से अच्छा और कौन हो सकता है? हम बीमारी, दुःख और परिजनों से दूर होने और सम्बन्धों में आई कठिनाइयों और अपने संघर्षों को उसके समक्ष ला सकते हैं। 

जब हमारे पास प्रश्न हों, तब भी आराधना रुकनी नहीं चाहिए। स्वर्ग का परमप्रधान परमेश्वर हमारा स्वागत करता है कि हम अपने चिंता-युक्त प्रश्नों को उसके पास लेकर आएँl और सम्भवतः, समय के दौरान हमारे प्रश्न विनतियों और प्रभु के लिए हमारे भरोसे और स्तवन के भावों में बदल जाएँ (पद 3-6)। 

“यहोवा का”

इन दिनों टैटू (tattoos) लगा कर लोगों की नज़रों में आना सामान्य है l कुछ टैटू इतने छोटे होते हैं कि दूसरे उसे शायद ही देख सकें l अन्य लोग जैसे खिलाड़ी, अभिनेता/अभिनेत्री से लेकर सामान्य लोग भी अपने शरीर का अधिकाँश भाग शब्दों, और डिजाईनों से बहुरंगी बना लेते हैं l ऐसी प्रवृति जो शायद स्थायी दिखाई देता है, प्रवृति जिसने 2014 में 3 अरब डॉलर राजस्व कमाने के साथ-साथ टैटू हटाने के लिए अलग से 66 करोड़ डॉलर कमाया l

टैटू के विषय आप क्या महसूस करते हैं के बावजूद, यशायाह 44 अलंकारिक रूप से लोगों का अपने हाथों पर कुछ लिखने के विषय कहता है : “यहोवा का” (पद.5) l यह आत्म-टैटू सम्पूर्ण परिच्छेद का उत्कर्ष है जो परमेश्वर के चुने हुए लोगों के लिए उसकी देखभाल दर्शाता है (पद.1) l वह उसकी देखभाल पर भरोसा कर सकते थे (पद.2); और उनकी भूमि और वंशजों को आशीष के लिए चिन्हित किया गया था (पद.3) l दो साधारण, शक्तिशाली शब्द, “यहोवा का,” निश्चित कर दिया कि परमेश्वर के लोग जानते थे वे उसकी संपत्ति हैं और कि वह उनकी देखभाल करेगा l

यीशु मसीह में विश्वास करके परमेश्वर के पास आनेवाले अपने विषय दृढ़ता से बोल सकते हैं, “यहोवा का!” हम उसके लोग, उसकी भेड़, उसकी संतान, उसकी मीरास, उसका निवास स्थान हैं l हम अपने जीवन के विभिन्न ऋतुओं में इन बातों को ही थामें रहते हैं l यद्यपि हमारे पास कोई बाहरी चिह्न या टैटू नहीं होगा, हमें यह भरोसा है कि हमारे हृदयों में परमेश्वर की आत्मा की गवाही है कि हम उसके हैं (देखें रोमियों 8:16-17) l

उसकी बाहों में सुरक्षित

बाहर का मौसम डरावना था, और मेरे मोबाइल फ़ोन में संभावित आकस्मिक बाढ़ की चेतवानी थी l पड़ोस में कारों की असामान्य संख्या थी जब स्कूल बस स्टॉप पर माता-पिता और अन्य लोग बच्चों को घर ले जाने आए हुए थे l बस आने से पहले बारिश होने लगी थी l उसी समय मैंने एक महिला को छाता लेकर कार से उतरते देखा l वह एक छोटी लड़की को बारिश से बचाते हुए कार में ले गयी l यह माता-पिता से सम्बंधित, सुरक्षात्मक देखभाल की “वास्तविक समय” की एक खूबसूरत तस्वीर थी जिसने मुझे हमारे स्वर्गिक पिता की देखभाल की ताकीद दी l
नबी यशायाह ने अनाज्ञाकारिता के लिए दण्ड के पश्चात् परमेश्वर के लोगों के लिए अनुकूल दिनों की भविष्यवाणी की (यशायाह 40:1-8) l पहाड़ों से सुनाया गया स्वर्गिक सुसमाचार (पद.9) ने इस्राएलियों को परमेश्वर की शक्तिशाली उपस्थिति और कोमल देखभाल के विषय आश्वास्त किया l सुसमाचार, तब और अब, यह है कि परमेश्वर की सामर्थ्य और राज्य करनेवाले अधिकार के कारण घबराए हुए हृदयों को भयभीत होने की ज़रूरत नहीं है (पद. 9-10) l प्रभु की सुरक्षा की उस सूचना में चरवाहों द्वारा दी गयी सुरक्षा शामिल थी (पद.11) : भेड़ के दुर्बल बच्चे चरवाहे की बाहों में सुरक्षा पाएंगे; बच्चे वाली माताओं की कोमलता से अगुवाई की जाएगी l
ऐसे संसार में जहां परिस्थितियाँ हमेशा सरल नहीं होंगी, सुरक्षा और देखभाल की ये तस्वीरें प्रभु की ओर दृढ़ता से देखने में हमें विवश करती हैं l जो प्रभु में पूरे हृदय से भरोसा करते हैं वे उसमें सुरक्षा और नयी ताकत पाते हैं (पद.31) l

अपने भाई की सुनना

“आपको मेरी सुनना होगा, मैं आपका भाई हूँ!” यह अनुरोध पड़ोस में रहनेवाला एक बड़े भाई का अपने छोटे भाई से था जो अपने पिता को अपने घर से अलग कर रहा था और जो बड़े भाई को पसंद नहीं था l स्थिति के विषय स्पष्ट रूप से बड़ा भाई सर्वोत्तम निर्णय लेने में सक्षम था l

हममें से कितने लोग बड़े भाई या बहन का विवेकपूर्ण सलाह लेने से इनकार किये हैं? यदि आपने अपने से परिपक्व व्यक्ति की अच्छी सलाह नहीं मानने के परिणाम का अनुभव किये हैं, तो आप अकेले नहीं हैं l

यीशु में हम विश्वासियों के लिए सबसे महान शरणस्थान परिवार है – जो उसमें समान विश्वास रखने के कारण आत्मिक रूप से सम्बंधित हैं l इस परिवार में परिपक्व पुरुष और स्त्री शामिल हैं जो परमेश्वर से और एक दूसरे से प्रेम करते हैं l मेरे पड़ोस में उस छोटे भाई की तरह, हमें भी कभी-कभी वापस मार्ग पर लाने के लिए चेतावनी और सुधार की ज़रूरत होती है l यह ख़ास तौर से उस समय सच है जब हम किसी का अपमान करते हैं या कोई हमारा अपमान करता है l उचित करना कठिन हो सकता है l फिर भी मत्ती 18:15-20 में यीशु के शब्द हमें बताते हैं कि हमारे आत्मिक परिवार में परस्पर अपमान होने पर हमें क्या करना चाहिए l

कृतज्ञता से, हमारे स्वर्गिक पिता ने हमारे जीवनों में ऐसे लोग रख रखे हैं जो उसे और दूसरों को आदर देने में हमारी मदद करने को तैयार हैं l और जब हम सुनते हैं, परिवार में सब कुछ भला होता है (पद.15) l

कैसे दृढ़ रहें

बहुत ही ठंडा दिन था, और मेरा ध्यान अपनी गरम कार से गरम भवन/इमारत में प्रवेश करने पर लगा था l अगले पल मैं धरती पर था, मेरे घुटने अन्दर को मुड़े हुए थे और मेरे पैरों का निचला भाग बाहर की ओर था l कुछ भी टूटा नहीं था, किन्तु मुझे दर्द बहुत था l  समय के साथ दर्द बढ़ना ही था और अनेक सप्ताह के बाद ही मैं स्वस्थ हो पाता l

हममें से कौन है जो कभी नहीं गिरा है? कितना अच्छा होता यदि हम किसी वस्तु या व्यक्ति के सहारे से हमेशा अपने पैरों पर खड़े रह पाते? भौतिक/शारीरिक भाव में कभी न गिरने की कोई गारंटी नहीं होने के बावजूद, एक व्यक्ति है जो इस जीवन में मसीह को आदर देने और स्वर्ग में उसके समक्ष आनंदपूर्वक खड़े होने की हमारी कोशिश में हमें मदद देने के लिए तैयार है l

हर दिन हम परीक्षाओं (और झूठी शिक्षाओं) का सामना करते हैं जो हमें दिशाविहीन करने, भ्रमित करने, और उलझाने का प्रयास करती हैं l मगर अंत में हम अपने प्रयासों के द्वारा इस संसार में चलते हुए अपने पैरों पर खड़े नहीं रहते हैं l यह जानना अत्यधिक आश्वस्त करनेवाली बात है, जब हम क्रोधित आवाज़ में बोलने की जगह शांति बनाए रखते हैं, झूठ के स्थान पर ईमानदारी का प्रयास करते हैं, घृणा के स्थान पर प्रेम, या गलती के स्थान पर सच्चाई का प्रयास करते हैं – हम खड़े रहने के लिए परमेश्वर की सामर्थ्य का अनुभव करते हैं (यहूदा 1:24) l और मसीह के दूसरे आगमन पर जब हम परमेश्वर का अनुमोदन प्राप्त करेंगे, हम जो प्रशंसा वर्तमान में उसके थामनेवाले अनुग्रह के लिए करते हैं वह अनंत तक गूंजेगा (पद.25) l

शांत रह, मेरे मन

एक माँ की कल्पना करें जो बच्चे से प्यार कर रही हो, उसकी नाक पर धीरे-धीरे ऊँगली फेर रही हो और धीमे से उससे बोल रही हो  –“शांत रहो, खामोश रहो l” यह व्यवहार और सरल शब्द छोटे व्याकुल बच्चों की निराशा, अशांति, या पीड़ा में उनको आराम देने और शांत करने के लिए हैं l ऐसे नज़ारे विश्वव्यापी और अनंत है और हममें से अधिकतर लोग ऐसे प्रेमी अभिव्यक्तियों के देने या लेने वाले रहे हैं l भजन 131:2 पर विचार करते समय, यही तस्वीर मेरे दिमाग में आती है l

इस भजन की भाषा और शैली यह बताती है कि लेखक, दाऊद, ने कुछ ऐसा अनुभव किया था जिससे गंभीर विचार उत्पन्न हुआ था l क्या आपने निराशा, पराजय, या विफलता का अनुभव किया है जिसने विचारशील, विचारात्मक प्रार्थना को प्रेरित करता है? आप क्या करते हैं जब जीवन की परिस्थितियाँ आपको विनम्र बनाती है? जव आप किसी जांच में असफल होते हैं या आपकी नौकरी छूट जाती है या आप किसी सम्बन्ध के टूटने का अनुभव करते हैं? दाऊद ने अपने हृदय को प्रभु के सामने खोल दिया और इस क्रम में इमानदारी से अपने मन को टटोला और खोज किया (भजन 131:1) l अपनी परिस्थितियों के साथ मेल करने का प्रयास करते हुए, उसने एक छोटे बच्चे की तरह जो केवल अपनी माँ के निकट रहकर संतुष्टि पाता है, वह भी तृप्त हुआ (पद.2) l

जीवन की परिस्थितियाँ बदलती हैं और हम विनम्र किये जाते हैं l इसके बावजूद हम यह जानकार आशा रख सकते हैं और संतोष प्राप्त कर सकते हैं कि एक है जिसने हमेशा साथ रहने का और कभी नहीं छोड़ने का वादा किया है l हम उस पर सम्पूर्ण भरोसा रख सकते हैं l

एक अंधे का आग्रह

कुछ वर्ष पूर्व, एक सह-यात्री ने ध्यान दिया कि मुझे दूर की वस्तुएं देखने में कठिनाई हो रही है l उसके बाद जो उसने किया वह सरल किन्तु जीवन बदलने वाला था l उसने अपना चश्मा उतार कर मुझे दिया और कहा, “इनको पहनकर देखिये l” उसका चश्मा पहनकर, मेरी धुंधली दृष्टि स्पष्ट हो गयी l मैं आँखों के डॉक्टर के पास गया जिसने मेरी दृष्टि की समस्या को ठीक करने के लिए मुझे चश्मा पहनने का सुझाव किया l

आज के पाठ लुका 18 में एक दृष्टिहीन व्यक्ति दिखाई देता है जो पूर्ण अन्धकार में रहते हुए अपनी जीविका के लिए भीख मांगने को मजबूर था l लोकप्रिय शिक्षक और आश्चर्यकर्म करनेवाले, यीशु की खबर उस अंधे भिखारी के कानों तक पहुँच गयी थी l इसलिए जब यीशु उस मार्ग पर गया जहां वह दृष्टिहीन भिखारी बैठा हुआ था, उसके मन में आशा जाग उठी l उसने पुकारा, “हे यीशु, दाऊद की संतान, मुझ पर दया कर!” (पद.38) l शारीरिक रूप से दृष्टिहीन होने के बावजूद, इस व्यक्ति में आत्मिक अंतर्दृष्टि थी कि यीशु कौन है और वह उसकी ज़रूरत पूरा कर सकता है l विशवास से विवश होकर, “वह और भी चिल्लाने लगा, ‘हे दाऊद की संतान, मुझ पर दया कर!’” (पद.39) l परिणाम? उसकी दृष्टिहीनता चली गयी, और अब वह अपनी जीविका के लिए भीख नहीं मांगता था और दृष्टि प्राप्त करके दूसरों के लिए परमेश्वर की आशीष बन गया था (पद.43) l

अन्धकार के क्षण और काल में, आप किस दिशा में मुड़ते हैं? आप किस पर भरोसा करते हैं और किसको पुकारते हैं? दृष्टि में सुधार के लिए चश्मा है, किन्तु परमेश्वर के पुत्र यीशु का स्पर्श ही है, जो लोगों को आत्मिक दृष्टिहीनता से प्रकाश में लाता है l

यीशु पर ध्यान करो!

ब्रदर जस्टिस एक विश्वासयोग्य व्यक्ति थे। अपने विवाह में निष्ठावान, एक समर्पित डाक कर्मचारी, तथा हर रविवार कलीसिया में अगुवे की भूमिका में सदैव उपस्थित रहते थे। जब मैं अपने बचपन की कलीसिया में गया, पियानो पर वही धुन बज रही थी जिसे ब्रदर जस्टिस बाइबिल अध्ययन के समय की समाप्ति पर बजाते थे। इस धुन ने समय की कसौटी का सामना किया है। ब्रदर जस्टिस के प्रभु के पास जाने के बाद, उनकी विश्वासयोग्यता की विरासत आज भी कायम है।

इब्रानियों 3 पाठकों को एक वफादार सेवक और विश्वासयोग्य पुत्र का ध्यान दिलाता है। हालाँकि, परमेश्वर के "दास" के रूप में मूसा की सच्चाई निर्विवाद है, परन्तु विश्वासियों को यीशु पर ध्यान केंद्रित करना सिखाया जाता है। “सो हे पवित्र भाइयों...”(पद 1)। परीक्षा में पढने वालों को ऐसा प्रोत्साहन मिला है (2:18)। उनकी विरासत केवल यीशु का अनुसरण करने से आती है, जो विश्वासयोग्य हैं।

परीक्षा की हवाएं आप सभी के आसपास घूम रही हैं। जब आप थके, जीर्ण, हार मानने को तैयार हों?  एक व्याख्या में पाठ हमें यीशु पर ध्यान करने के लिए आमंत्रित करता है (3:1 मैसेज)। उस पर ध्यान करो, दोबारा, बार-बार। यीशु पर ध्यान करके हम परमेश्वर के एक विश्वासयोग्य पुत्र को देखते हैं जो हमें उनके परिवार में रहने का साहस देते हैं।