यात्रियों के समूह में एक लम्बी (या छोटी) यात्रा पर जाते हुए किसी के द्वारा यह पूछना असामान्य नहीं है, “क्या हम पहुँच गए हैं?” किस ने बच्चों का बड़ों के ओंठो से आते हुए इन सार्वभौमिक प्रश्नों को नहीं सुना होगा, जो अपनी मंजिल पर पहुँचने के लिए उत्सुक हैं? परन्तु सभी आयु वर्ग के लोग यही प्रश्न पूछने की ओर प्रवृत होते हैं, जब वे जीवन की चुनौतियों से थक जाते हैं, जो कभी भी समाप्त होती प्रतीत नहीं होती। 

भजन संहिता 13 में ऐसी ही परिस्थिति दाऊद के साथ भी है। दो पदों में चार बार (पद 1-2) दाऊद-जिसे भुला दिए जाने, छोड दिए जाने और परास्त हो जाने का अहसास हुआ-दुखित होता है “कब तक?” पद दो में वह पूछता है, “मैं कब तक अपने मन ही मन में युक्तियाँ करता रहूँ?” भजन संहिता, जैसे यह भजन, जिनमें विलाप सम्मिलित है, हमें प्रत्यक्ष रूप से आराधना के रूप में अपने प्रश्नों के साथ प्रभु के पास आने की अनुमति देता है। आखिरकार, तनाव और दुःख के लम्बे समय में बात करने के लिए परमेश्वर से अच्छा और कौन हो सकता है? हम बीमारी, दुःख और परिजनों से दूर होने और सम्बन्धों में आई कठिनाइयों और अपने संघर्षों को उसके समक्ष ला सकते हैं। 

जब हमारे पास प्रश्न हों, तब भी आराधना रुकनी नहीं चाहिए। स्वर्ग का परमप्रधान परमेश्वर हमारा स्वागत करता है कि हम अपने चिंता-युक्त प्रश्नों को उसके पास लेकर आएँl और सम्भवतः, समय के दौरान हमारे प्रश्न विनतियों और प्रभु के लिए हमारे भरोसे और स्तवन के भावों में बदल जाएँ (पद 3-6)।