मेरी मदद!
प्रसिद्ध भजन मण्डली, ब्रुकलीन टैबरनैकल ने कई दशकों से आत्म-विभोर करने वाले भजनों से सैंकड़ों लोगों को आशीषित किया है। उनकी रिकॉर्डिंग में भजन 121 पर आधारित "मेरी मदद" एक उदाहरण है।
भजन 121 का आरम्भ उस परमेश्वर के प्रति विश्वास के व्यक्तिगत अंगीकार से होता है जो सब बातों का रचयिता, और मदद का स्रोत है (1-2)। स्थिरता (3), दिन-रात की परवाह (3-4), और उपस्थिति और रक्षा (5-6), और हर बुराई से बचाव (7-8)।
शात्रों से प्रेरित होकर परमेश्वर के लोगों ने सदियों से अपने गीतों में परमेश्वर को "सहायता" का स्रोत बताया है। महान सुधारक मार्टिन लूथर ने लिखा, "परमेश्वर हमारा एक मजबूत गढ़ है, एक दीवार जो कभी नहीं ढहती; हमारे दोषपूर्ण और नश्वर होने के वावजूद वह हमारी सदा मिलने वाली सहायता हैं"।
क्या आप अकेला, छोड़ा, निष्कासित, भ्रमित महसूस करते हैं? भजन 121 के शब्दों पर मनन करें। अपनी आत्मा में विश्वास और साहस भर जाने दें। आप अकेले नहीं हैं, इसलिए जीवन आप ही जीने का प्रयत्न ना करें। वरन् परमेश्वर की सांसारिक और अनन्त काल की परवाह में आनंदित हों जिसे प्रभु यीशु मसीह के जीवन, मृत्यु, पुनः जी उठने, और स्वर्गारोहण में प्रदर्शित किया गया है। और आगे जो भी हो, उसे उनकी सहायता से ग्रहण करें।
यह कौन है?
“अपने डेस्क पर से सब कुछ हटाकर, एक कागज़ का टुकड़ा और पेंसिल निकालें l” जब मैं विद्यार्थी था ये भयानक शब्द दर्शाते थे कि “परीक्षा का समय” आ गया था l
मरकुस 4 में, हम पढ़ते हैं कि यीशु का दिन झील के किनारे शिक्षा से आरंभ होकर (पद.1), झील में परीक्षा के साथ अंत हुआ (पद.35) l शिक्षण मंच के रूप में प्रयुक्त नाव यीशु और उसके चेलों को झील के उस पार ले जाने के लिए की गयी l यात्रा के दौरान (जब यीशु थककर नाव के पिछले भाग में सो रहा था), शिष्यों ने आंधी का सामना किया (पद.37) l भीगे हुए शिष्यों ने इन शब्दों से यीशु को जगाया, “हे गुरु, क्या तुझे चिंता नहीं कि हम नष्ट हुए जाते हैं?” (पद.38) l तब ऐसा हुआ l वही जिसने दिन के आरंभ में “सुनने!” के लिए भीड़ का आह्वान किया था, प्रकृति की आंधी को एक सरल, ताकतवर आज्ञा दी-“शांत रह, और थम जा!” (पद.39) l
आंधी ने आज्ञा मान ली और भयभीत शिष्यों ने अपने आश्चर्य को इन शब्दों में व्यक्त किया, “यह कौन है...?”(पद.41) l प्रश्न अच्छा था किन्तु शिष्यों को ईमानदारी से और सही रूप में इस नतीजे पर पहुँचने में समय लगने वाला था कि यीशु परमेश्वर का पुत्र है l खरा, ईमानदार, सच्चा प्रश्न और अनुभव आज भी लोगों को उसी निर्णय तक पहुँचाते हैं l वह सुनने के लिए शिक्षक से बढ़कर है l वह उपासना के योग्य परमेश्वर है l