विमान उड़ने से पहले वह युवक बेचैन था। वह आंखें बंद कर के शांत होने के लिए लंबी सांसें ले रहा था। विमान उड़ते ही वह इधर-उधर होने लगा। उसका ध्यान बंटाने के लिए एक बुजुर्ग स्त्री उसके बाँह पर हाथ रखकर बातचीत करने लगी। “तुम्हारा नाम क्या है? कहां से आए हो? हमें कुछ नहीं होगा। तुम अच्छा कर रहे हो”। ऐसी बातें करने लगी। वह उसे नजर-अंदाज कर सकती थी। लेकिन उसने उससे बातचीत करने को चुना। छोटी बातें। 3 घंटे बाद विमान उतरने पर उसने कहा, “मेरी मदद करने के लिए आपका बहुत धन्यवाद”!

कृपा के ऐसे सुन्दर चित्र मुश्किल से देखने को मिलते हैं। हममें से अनेकों के लिए दया स्वाभाविक रूप से नहीं आती। पौलुस ने कहा कि “एक दूसरे पर कृपालु और करुणामय हो” (इफिसियों 4:32) पर  वह यह नहीं कह रहा था कि यह हम पर निर्भर करता है। यीशु में विश्वास करने द्वारा हमारे नए जीवन के बाद से हमारे अन्दर पवित्र-आत्मा ने बदलाव का कार्य शुरू कर दिया है। कृपा पवित्र-आत्मा का निरंतर चलने वाला कार्य है, जो हमें मन के आत्मिक स्वभाव में नया बनाती है (पद 23)।

करुणा का परमेश्वर हमारे दिल में कार्य करता है, जिससे हम दूसरों से प्रोत्साहन भरे शब्द कह कर उनके जीवन को छू सकें।