यीशु के लिए खड़े होने का साहस
सन् 155ईस्वी में, प्रारम्भिक कलीसिया के पादरी पॉलीकार्प को मसीह पर उनके विश्वास के लिए आग से जलाकर मार डालने की धमकी दी गई थी। उन्होंने यह प्रतिउत्तर दिया था, “मैं छियासी वर्ष से उसका सेवक हूँ, और उसने मेरे साथ कुछ भी गलत नहीं किया। और अब मैं अपने उस राजा की निन्दा कैसे करूँ जिसने मेरा उद्धार किया है?”जब हम अपने राजा, अर्थात् यीशु पर अपने विश्वास के कारण नितान्त परीक्षा का सामना करते हैं, तो ऐसे समय में पॉलीकार्प की यह प्रतिक्रिया हमारे लिए भी एक प्रेरणा हो सकती है।
यीशु की मृत्यु से कुछ घंटे पहले, पतरस ने साहसपूर्वक मसीह के प्रति अपनी वफादारी की शपथली थी: “मैं तो तेरे लिए अपना प्राण दूँगा” (यूहन्ना 13:37)। यीशु ने, जो पतरस को पतरस से भी अधिक जानता था,उसे यह प्रतिउत्तर दिया, “मैं तुझ से सच-सच कहता हूँ कि मुर्गा बाँग न देगा जब तक तू तीन बार मेरा इन्कार न कर लेगा!” (पद 38)। हालाँकि, यीशु के जी उठने के बाद, उसी पतरसने जिसने उसका इन्कार किया था, साहसपूर्वक उसकी सेवा करना आरम्भ किया और उसी ने अंत में अपनी मृत्यु के माध्यम से उसकी महिमा की (21:16-19)।
तो आप पॉलीकार्प हैं या पतरस? यदि हम ईमानदार बनें, तो हम में से अधिकांश लोग पतरस के समान हैं जिनमें “साहस की कमी है”, अर्थात् यह यीशु परविश्वास करने वाले एक व्यक्ति के रूप में बोलने या सम्मानपूर्वक कार्य करने की विफलता है। इस प्रकार के अवसरों को हमें स्थाई रुप से परिभाषित नहीं करना चाहिए, चाहे वे कक्षा में हों, सभा कक्ष में हों, या विश्राम कक्ष में हों। जब ऐसीविफलताएँ घटित हों, तो हमें प्रार्थनापूर्वक स्वयं को झाड़कर उस यीशु की ओर फिरना चाहिए, जो हमारे लिए मरा और जो हमारे लिए जीवित है। वह हमें उसके प्रति विश्वासयोग्य रहने में सहायता करेगा और प्रतिदिन कठिन स्थानों में साहसपूर्वक उसके लिए जीवन व्यतीत करने में भी सहायता करेगा।
थके हुए तम्बू
"तम्बू थक गया है!" ये मेरे मित्र पॉल के शब्द थे, जो केन्या के नैरोबी में एक चर्च के पासबान हैं। 2015 से, मण्डली ने एक तम्बू जैसी संरचना में आराधना की है। अब, पौलुस लिखता है, “हमारा तम्बू जीर्ण हो गया है, और वर्षा होने पर टपकता है।
उनके तम्बू की संरचनात्मक कमजोरियों के बारे में मेरे मित्र के शब्द हमें हमारे मानव अस्तित्व की कमजोरियों के बारे में प्रेरित पौलुस के शब्दों की याद दिलाते हैं। “बाहरी तौर पर हम नाश हो रहे हैं . . . जब तक हम इस तम्बू में हैं, हम कराहते और बोझ से दबे रहते हैं" (2 कुरिन्थियों 4:16; 5:4)।
यद्यपि हमारे नाजुक मानव अस्तित्व के बारे में जागरूकता अपेक्षाकृत प्रारंभिक जीवन में होती है, लेकीन हमारी उम्र बढ़ने के साथ इसके बारे में अधिक जागरूक हो जाते हैं। दरअसल, हमारा समय चोरी हो जाता है। युवावस्था की जीवन शक्ति उम्र बढ़ने की वास्तविकता के सामने आत्मसमर्पण करती है (सभोपदेशक 12:1-7 देखें)। हमारा शरीर- हमारा तंबू-थक जाता हैं।
लेकिन थके हुए तंबू को थके हुए भरोसे के बराबर नहीं होना चाहिए। उम्र बढ़ने के साथ आशा और दिल को फीका नहीं पड़ना चाहिए। "इस कारण हम हियाव नहीं छोड़ते," प्रेरित कहते हैं (2 कुरिन्थियों 4:16)। जिस ने हमारी देह बनाई है उसी ने अपने आत्मा के द्वारा वहां वास किया है। और जब यह शरीर अब हमारी सेवा नहीं कर सकता है, तो हमारे पास एक ऐसा निवास होगा जो टूटने और दर्द के अधीन नहीं होगा - हमें "परमेश्वर की ओर से एक भवन, स्वर्ग में एक अनन्त घर" मिलेगा (5:1)।
यीशु के पास दौड़ना
पेरिस की यात्रा दौरान, बेन और उसके दोस्तों ने खुद को शहर के प्रसिद्ध संग्रहालयों में से एक में पाया। हालांकि बेन कला का छात्र नहीं था, फिर भी जब उसने यूजीन बर्नैंड द्वारा एक चित्रकारी पुनरुत्थान की सुबह चेले पतरस और यूहन्ना कब्र की ओर दौड़ते हुए को देखा तो वह विस्मय में था। बिना कुछ कहे, पतरस और यूहन्ना के चेहरे और उनके हाथों की स्थिति बहुत कुछ कहती है, दर्शकों को अपनी जगह पर खुद को रखने और अपनी भावनाओं को साझा करने के लिए आमंत्रित करती है।
यूहन्ना 20:1-10 के आधार पर, पेंटिंग यीशु की खाली कब्र की दिशा में दौड़ते हुए दोनों चेलों को चित्रित करती है (पद 4)। यह अति उत्कृष्ट कृति भावनात्मक रूप से संघर्ष कर रहे दो चेलों की गहनता को दिखती है। यद्यपि उस समय उनका विश्वास पूरी तरह से निर्मित नहीं था, पर वे सही दिशा में दौड़ रहे थे, और अंततः पुनरुत्थित यीशु ने स्वयं को उनके सामने प्रकट किया (पद. 19-29)। उनकी खोज सदियों से यीशु के खोजकर्ताओं से कुछ अलग नहीं थी। हालाँकि हम एक खाली कब्र या कला के एक शानदार टुकड़े के अनुभवों से दूर हो सकते हैं, पर हम सुसमाचार को स्पष्ट रूप से देख सकते हैं। पवित्रशास्त्र हमें आशा और खोज करने और यीशु और उसके प्रेम की दिशा में चलने के लिए विवश करता है - यहाँ तक कि संदेहों, प्रश्नों और अनिश्चितताओं के साथ भी। कल, जैसा कि हम ईस्टर मनाते हैं, हम यीशु के शब्दों को याद रखें: "तुम मुझे ढूंढ़ोगे और पाओगे भी; क्योंकि तुम अपने सम्पूर्ण मन से मेरे पास आओगे" (यिर्मयाह 29:13)।<a href="https://www.bible.com/bible/1683/1SA.10.HINDI-BSI" title="1 शमूएल 10" target="_blank">1 शमूएल 10</a>
<a href="https://www.bible.com/bible/1683/1SA.11.HINDI-BSI" title="1 शमूएल 11" target="_blank">1 शमूएल 11</a>
<a href="https://www.bible.com/bible/1683/1SA.12.HINDI-BSI" title="1 शमूएल 12" target="_blank">1 शमूएल 12</a>
<a href="https://www.bible.com/bible/1683/LUK.9.37-62.HINDI-BSI" title="लूका 9.37-62" target="_blank">लूका 9.37-62</a>
जब अत्यधिक दबाव हो
कई साल पहले, एक दोस्त ने मुझे बताया कि एक गली को पार करने की कोशिश करते समय वह कितनी भयभीत थी, जहाँ कई सड़कें मिलती थीं। “मैंने कभी ऐसा कुछ नहीं देखा; सड़क पार करने के लिए मुझे जो नियम सिखाए गए थे वे अप्रभावी लग रहे थे। मैं इतना डरा हुआ था कि मैं कोने पर खड़ा होकर बस का इंतज़ार करता, और बस ड्राइवर से पूछता कि क्या वह मुझे सड़क के दूसरी तरफ जाने की अनुमति देगा। एक पैदल यात्री के रूप में और बाद में एक चालक के रूप में इस चौराहे को सफलतापूर्वक मार्ग निर्देशन (नेविगेट)करने में मुझे काफी समय लगेगा।
एक पेचीदा ट्रैफिक चौराहा जितना जटिल हो सकता है, जीवन की जटिलताओं का मार्ग निर्देशन (नेविगेट) करना उससे भी अधिक खतरनाक हो सकता है। यद्यपि भजन संहिता 118 में भजनकार की विशिष्ट स्थिति अनिश्चित है, हम जानते हैं कि यह कठिन और प्रार्थना के लिए सही था: "मैंने संकट में परमेश्वर को पुकारा (पद. 5), भजनहार ने कहा।परमेश्वर पर उसका भरोसा अटूट था: “यहोवा मेरे संग हैं। मैं न डरूँगा.... यहोवा मेरे संग है; वह मेरा सहायक है” (पद. 6-7)
जब हमें नौकरी या स्कूल या निवास स्थान बदलने की आवश्यकता हो तो भयभीत होना कोई असामान्य बात नहीं है। चिंता तब पैदा होती है जब स्वास्थ्य में गिरता है, संबंध बदलते हैं, या रुपये/पैसे समाप्त हो जाते हैं। परन्तु इन चुनौतियों की व्याख्या परमेश्वर द्वारा परित्याग के रूप में नहीं की जानी चाहिए। जब अत्यधिक दबाव हो तो हम अपने आपको को प्रार्थनापूर्वक उसकी उपस्थिति में पाएँ।
आप और मुझ पर दया
कोविड—19 महामारी के परिणामों में से एक क्रूज (पर्यटक) जहाजों की डॉकिंग और यात्रियों का क्वारंटाइन (अलग) किया जाना था। द वॉल स्ट्रीट जर्नल में एक लेख छापा गया जिसमें कुछ पर्यटकों के साक्षात्कार शामिल थे। क्वारंटाइन किए जाने पर कैसे बातचीत के अधिक अवसर मिलते हैं, इस बारे में बताते हुये एक यात्री ने मजाक में कहा कि कैसे उसका जीवनसाथी, जिसके पास एक उत्कृष्ट स्मृति थी, उसके द्वारा किए गए हर अपराध को सामने लाने में सक्षम थी, और उसने महसूस किया कि अभी भी पूरा नहीं बताया है।
इस तरह के बयान हमें हंसा सकते हैं, हमें हमारी मानवता की याद दिला सकते हैं, और हमें सचेत करने का काम कर सकते हैं, अगर हम उन चीजों को बहुत कसकर पकड़ने के लिए प्रवृत्त हैं जिन्हें हमें छोड देना चाहिए। फिर भी जो हमें चोट पहुँचाते हैं उनके प्रति कृपालु व्यवहार करने में क्या बात हमारी मदद करती है? हमारे महान परमेश्वर की झलक, जैसा कि उसने भजन संहिता 103:8–12 जैसे अंशों में चित्रित किया है।
8–10 पदों के संदेश का अनुवाद उल्लेखनीय है: “यहोवा दयालु, और अनुग्रहकरी, विलम्ब से कोप करनेवाला, और अति करूणामय है। वह सर्वदा वादविवाद करता न रहेगा, न उसका क्रोध सदा के लिये भड़का रहेगा। उस ने हमारे पापों के अनुसार हम से व्यवहार नहीं किया, और न हमारे अधर्म के कामों के अनुसार हम को बदला दिया है।” जब हम पवित्रशास्त्र को प्रार्थनापूर्वक पढ़ते हैं तो परमेश्वर की सहायता के लिए पूछना हमें गलत तरीके से दुर्भावनापूर्ण बदला लेने या दंडित करने की योजना के बारे में प्रेरित कर सकता है। और यह हमारे लिए और उन लोगों के लिए जिन्हें हमें नुकसान पहुँचाने का लालच हो सकता है अनुग्रह, दया और क्षमा को रोक कर प्रार्थनाओं को प्रेरित कर सकता है
आशीषमय पश्चाताप
“दिवालिया ”(BROKE) उस सड़क का नाम था” ग्रेडी ने उत्तर दिया था, और वे पांच अक्षर उसके लाइसेंस प्लेट पर गर्व से चमक रहे थे l हालाँकि आत्मिक भाव के इरादे से नहीं, यह मुँह बोला नाम अधेड़ उम्र के जुआरी, व्यभिचारी और धोखेबाज के लिए उपयुक्त है l वह टूट गया था, दिवालिया हो गया था, और परमेश्वर से दूर था l हालाँकि, एक शाम वह सब बदल गया जब उसे एक होटल के कमरे में परमेश्वर की आत्मा द्वारा दोषी ठहराया गया l उसने अपनी पत्नी से कहा, : “मुझे लगता है की मुझे उद्धार मिल रहा है!” उस शाम वह यीशु के पास क्षमा के लिए आया उसने अपने पापों को स्वीकार किया, जिसके विषय में उसने सोचा था कि वह उन्हें अपने साथ कब्र में ले जाएगाl अगले तीस वर्षों तक जिस व्यक्ति ने यह नहीं सोचा था कि वह स्वयं चालीस की उम्र देखने तक जीवित रहेगा उसने जीवित रहकर यीशु में परिवर्तित विश्वासी के रूप में परमेश्वर की सेवा की l उसकी लाइसेंस प्लेट अब—“दिवालिया”(BROKE) से “पश्चाताप” (REPENT)—में बदल गया थीl
REPENT(पश्चाताप) l यही तो ग्रेडी ने किया था और होशे 14:1-2 में परमेश्वर ने इस्राएल से यही करने को बुलाया था l “हे इस्राएल, अपने परमेश्वर यहोवा के पास लौट आ . . . बातें सीखकर और यहोवा की ओर लौटकर, उससे कह, ‘सब अधर्म दूर कर; अनुग्रह से हम को ग्रहण कर’ l” बड़े या छोटे, कम या अधिक, हमारे पाप हमें परमेश्वर से अलग कर देते हैं l लेकिन पाप से परमेश्वर की ओर मुड़ने और यीशु की मृत्यु के माध्यम से अनुग्रहपूर्वक प्रदान की गयी क्षमा को प्राप्त करने से यह फासला खत्म किया जा सकता है l चाहे आप मसीह में एक संघर्षरत विश्वासी हों या फिर जिसका जीवन ग्रेडी की तरह दिखाई देता हो, आपकी क्षमा केवल एक प्रार्थना की दूरी पर है l
गहरा पानी बचाव
दिसम्बर 2015 के विनाशकारी बारिश के दौरान, चेन्नई में केवल 24 घंटों में 494 मिलीमीटर की असामान्य रूप से उच्च वर्षा दर्ज की गई। बारिश के अलावा, कुछ जलाशयों को खोल दिया गया जिससे बाढ़ और बढ़ गई। 250 से अधिक लोग मर गये, और चेन्नई को "आपदा क्षेत्र" घोषित कर दिया गया। जब प्रकृति ने चेन्नई में बाढ़ ला दी, तो चेन्नई के मछुआरों ने शहर को दयालुता से भर दिया।
मछुआरों ने बहादुरी से 400 से अधिक लोगों को बचाया। कई घर पानी में डूब गए और कारें और अन्य वाहन तैर रहे थे। यदि इन समर्पित मछुआरों की करुणा और कुशलता न होती तो मानव जीवन का नुकसान और भी अधिक होता।
अकसर जीवन में हम जिस जल का भंवर का सामना करते हैं, नहीं, वह शाब्दिक नहीं है--लेकिन ओह, कितना असली! , अनिश्चितता और अस्थिरता के दिनों में, हम अभिभूत, असुरक्षित महसूस कर सकते हैं। लेकिन हमें निराश होने की जरूरत नहीं।
भजन 18 में, हम पढ़ते है की दाऊद के शत्रु कितने अधिक और सामर्थी थे, लेकिन उसका परमेश्वर उनसे भी अधिक महान और सामर्थी था। कितना महान? इतना महान की उसने उसका वर्णन करने के लिए बहुत सारे रूपक का इस्तेमाल किया (2)। परमेश्वर उसे गहरे जल और ताकतवार शत्रुओं से बचाने के लिए काफी सामर्थी था (16-17)। कितना महान? हमारे लिए यीशु के नाम से उसे पुकारने के लिए पर्याप्त है, हमारे जीवन में चारों ओर "जल" की मात्रा की लम्बाई और गहराई की परवाह किए बिना (3)
एक अविभाजित घर
16 जून 1858 में अमेरिकी प्रबंधकारिणी समिति, नव नामांकित गणतंत्रवादी उम्मीदवार के रूप में अब्राहम लिंकन ने अपना प्रसिद्ध “विभाजित घर” भाषण दिया, जिसमें अमेरिका में विभिन्न गुटों के बीच गुलामी को लेकर तनाव पर प्रकाश डाला गया। इससे लिंकन के मित्रों और शत्रुओं में हलचल मच गया। लिंकन ने महसूस किया कि “अविभाजित घर” भाषण की आकृति का उपयोग्य करना महत्वपूर्ण था जो यीशु ने मत्ती 12:25 में उपयोग्य किये क्योंकि यह व्यापक रूप से जाना जाता था और बस व्यक्त किया गया था। उसने यह रूपक का उपयोग किया “यह उन्हें समय के संकट में डालने के लिए पुरुषों के दिमाग में घर कर जाता।”
जबकि एक विभाजित घर खड़ा नहीं हो सकता—एक अविभाजित घर एकीकृत खड़ा रह सकता है निहित विपरीत कर सकता है। सैद्धांतिक रूप में, परमेश्वर का घर इसी इरादे के अनुसार होने के लिए बनाया गया है। (इफिसियों 2:19)। भले ही विभिन्न पृष्ठभूमि के लोगों से बनाया गया हो, क्रूस पर यीशु की मृत्यु के द्वारा हम परमेश्वर (और एक दूसरे) के साथ मिलन हुआ है (14-16)। इस सच्चाई के दृष्टीकोण में (इफिसियों 3 देखें), पौलुस यीशु में विश्वासियों को यह निर्देश प्रदान करता है: “और मेल के बन्धन में आत्मा की एकता रखने का यत्न करो। ”(4:3)।
आज, जब बढ़ता तनाव लोगों को बाँटने का खतरा है जो अन्यथा संयुक्त है जैसे की हमारे परिवार और सह विश्वासी। पवित्र आत्मा के मदद के द्वारा एक दूसरे के साथ एकता बनाए रखने के लिए परमेश्वर हमें बुद्धि और सामर्थ्य दे सकता है। यह हमे अंधकार, विभाजित दुनिया में ज्योति होने में मदद करेगा।
माँगो!
हमारे तहखाने से उठने वाली उल्लासपूर्ण चीखें मेरी पत्नी शर्ली की आई थीं। घंटों तक उसने एक न्यूज़लेटर प्रोजेक्ट के साथ संघर्ष करा, और अब वह उसे लगभग समाप्त ही करने वाली थी। आगे बढ़ने की अपनी चिंता और अनिश्चितता में, उसने परमेश्वर की मदद के लिए प्रार्थना की थी। उसने फेसबुक दोस्तों से भी संपर्क किया था और जल्द ही यह प्रोजेक्ट पूरा हो गया था- एक टीम प्रयास।
जबकि एक समाचार पत्र प्रोजेक्ट जीवन में एक छोटी सी चीज है, छोटी (या कम छोटी) चीजें चिंता या व्याकुलता पैदा कर सकती हैं। शायद आप नए-नए माता-पिता बने है और बच्चे को पालने के अनुभव से गुज़र रहे है; या एक छात्र हो सकते है जो नए शैक्षिक चुनौतियों का सामना कर रहे हो; या ऐसा व्यक्ति जो अपने किसी प्रियजन को खोने का शोक मना रहे हो; या ऐसा कोई व्यक्ति जो घर, काम, या अपनी सेवकाई में चुनौती का अनुभव कर रहा हो। कभी-कभी हम अनावश्यक रूप से ऐसे कगार पर होते हैं क्योंकि हम परमेश्वर से सहायता नहीं मांगते हैं (याकूब ४:२)।
पौलुस ने फिलिप्पी में यीशु के अनुयायियों और हमें आवश्यकता के समय हमारी रक्षा का सबसे पहले हथियार केंद्रित करते हुए कहा: "किसी बात की चिन्ता न करना, परन्तु हर बात में प्रार्थना और बिनती के द्वारा धन्यवाद के साथ परमेश्वर के सम्मुख अपनी बिनती प्रस्तुत करना" (फिलिप्पियों ४:६)। जब जीवन जटिल हो जाता है, तो हमें इस भजन जैसे अनुस्मारक की आवश्यकता होती है "यीशु कैसा दोस्त प्यारा.." :"ओह क्या शांति हम अक्सर खोते, / ओह क्या नाहक गम उठाते हैं, / यह ही बाइस है यकीनन, / बाप के पास न जाते हैं। ”
और शायद हमारे परमेश्वर से सहायता माँगने में, वह हमें ऐसे लोगों से पूछने के लिए प्रेरित करेगा जो हमारी सहायता कर सकते हैं।