लोमड़ियाँ पकड़ना
जब पहली बार एक चमगादड़ हमारे घर में घुसा हमने उसे परजीवी कीड़े की तरह सरलता से हटा दिया l परन्तु दूसरी बार रात के समय उसके अन्दर आने के बाद, मैंने इन छोटे प्राणियों के विषय थोड़ी जानकारी प्राप्त की और पता चला कि मनुष्य से मुलाकात के लिए उन्हें बहुत छोटा सा सुराख़ चाहिए l वास्तव में, यदि उनको सिक्के के किनारे के बराबर भी जगह मिल जाती है वे अन्दर घुस आते हैं l
इसलिए मैंने अपनी बन्दुक भरी और लक्ष्य की ओर चल पड़ा l मैं घर में चारों ओर गया और छोटे से छोटा सुराख़ भी बंद कर दिया l
श्रेष्ठगीत 2:15 में, सुलैमान एक और कष्टकर स्तनधारी जीव के विषय बताता है l वह “छोटी लोमड़ियों” के खतरे के विषय लिखता है जो “दाख की बारियों को बिगाड़ती हैं l” प्रतीकात्मक रूप से, वह उन खतरों के विषय बोल रहा है जो किसी सम्बन्ध के बीच आकर उसे बर्बाद कर सकती हैं l अब मुझे चमगादड़-प्रेमियों या लोमड़ी-प्रेमियों को ठेस पहुँचाने का इरादा नहीं है परन्तु चमगादड़ों को घर के बाहर और लोमड़ियों को दाख की बारी से बाहर रखना अपने जीवनों से पाप को दूर रखना है (इफिसियों 5:3) l परमेश्वर के अनुग्रह से पवित्र आत्मा हमारे अन्दर काम करता है इसलिए कि हम “शरीर के अनुसार नहीं वरन् आत्मा के अनुसार” चलें (रोमियों 8:4) l आत्मा की सामर्थ्य से हम पाप की परीक्षा का सामना कर सकते हैं l
परमेश्वर की स्तुति हो कि, मसीह में, अब हम “प्रभु में ज्योति” हैं और इस प्रकार प्रभु को “भानेवाला” जीवन जी सकते हैं (इफिसियों 5:8-10) l आत्मा उन छोटी लोमड़ियों को पकड़ने में हमारी मदद करता है l
सदा से बेहतर
पेरिस में नोट्रे डेम कैथेड्रल(प्रधान गिरजाघर) एक भव्य ईमारत है l उसकी शिल्पकारी मंत्रमुग्ध करनेवाली है, और उसकी खिडकियों के रंगीन कांच एवं खुबसूरत आंतरिक विशेषताएँ असाधारण हैं l शताब्दियों से पेरिस के परिदृश्य में गगनचुंबी, उसे नवीनीकरण की आवश्यकता पड़ी – जो उस समय आरम्भ हुआ जब एक विनाशकारी आग ने उस शानदार पुराने इमारत को अत्यंत हानि पहुंचाई l
इसलिए इस आठ शताब्दी पुरानी ऐतिहासिक स्थल से प्रेम करनेवाले लोग इसे बचाने के लिए आ रहे हैं l इस इमारत के नवीनीकरण के लिए दस खरब डॉलर से अधिक बटोरा गया है l पत्थर की इस संरचना को दृढ़ करने की ज़रूरत है l क्षतिग्रस्त आंतरिक भाग और उसकी अभिलाषित शिल्पकृति की मरम्मत ज़रूरी है l यद्यपि, प्रयास उचित है, क्योंकि यह पुराना कैथेड्रल अनेक लोगों के लिए आशा का प्रतीक है l
जो इमारतों के लिए सच है वह हमारे लिए भी सच है l इस पुराने चर्च की तरह, हमारे शरीर, आख़िरकार धारण करने के लिए थोड़ा और खराब दिखाई देने लगेंगे! परन्तु जिस प्रकार प्रेरित पौलुस समझाता है, समाचार अच्छा है : जबकि हमारी जवानी की शारीरिक गूंज शनै-शनै कम होती जाएगी, हमारे व्यक्तित्व का सार/मूल –हमारा आत्मिक व्यक्तित्व – निरंतर नया होता जाता है और उन्नति करता है (2 कुरिन्थियों 4:16) l
जब हम पवित्र आत्मा पर हमें भरने और हमें नवीन बनाने के लिए “उसे भाते [रहने का लक्ष्य बनाते हैं]” (5:9), हमारी आत्मिक उन्नति को ठहरने की ज़रूरत नहीं है – चाहे हमारी “ईमारत” कैसी भी दिखाई दे l
हैक्स(Hacks) से बढ़कर
हाल ही में मुझे एक “हैक(Hack)” (एक पेचीदा समस्या का एक अक्लमंद हल) मिल गया जब मेरे एक पौत्र ने अपने खिलौना खरगोश को हमारी अंगीठी(fireplace) के कांच पर गर्म किया l उस खिलौना खरगोश के रोएँ(fur) का परिणाम अच्छा नहीं था, परन्तु अंगीठी को सुधारनेवाला विशेषज्ञ ने एक बहुत बढ़िया हल दिया – एक सलाह जिससे अंगीठी का कांच फिर से नया दिखाई दे सकता था l वह सलाह काम कर गया, और अब हम स्टफ्ड(भरे हुए) खिलौनों को अंगीठी के निकट नहीं ले जाने देते हैं!
मैं हैक्स की बात करता हूँ क्योंकि कभी-कभी हम बाइबल को हैक्स के एक संग्रह के रूप में देख सकते हैं – जीवन को सरल बनाने के सलाह l जबकि यह सच है कि बाइबल मसीह को आदर देनेवाला नया जीवन कैसे जीया जाए के विषय बहुत अधित बताती है, इस पुस्तक का केवल यही उद्देश्य नहीं है l जो बाइबल हमारे लिए प्रबंध करती है वह मनुष्य की सबसे बड़ी ज़रूरत का हल है : पाप और परमेश्वर से अनंत अलगाव से बचाव l
पूरी तरह से उत्पत्ति 3:15 में उद्धार की प्रतिज्ञा से नया आकाश और नयी पृथ्वी तक की सच्ची आशा तक (प्रकाशितवाक्य 21:1-2), बाइबल बताती है कि परमेश्वर के पास हमें हमारे पाप से बचाने और अपने साथ संगति का आनंद उठाने देने की अनंत योजना है l हर एक कहानी में और किस प्रकार जीवन जीया जाए की प्रत्येक सलाह में, बाइबल हमें यीशु – केवल एक जो हमारी सबसे बड़ी समस्या हल कर सकता है - की ओर इशारा करती है l
जब हम परमेश्वर की पुस्तक खोलते हैं, हम स्मरण कर सकें कि हम यीशु को, उसके द्वारा दिया जानेवाले बचाव को, और उसकी संतान के रूप में कैसे जीवन जीया जाए को खोज रहे हैं l उसने सबसे बड़ा हल दे दिया!
क्या आप अभी भूखे हैं?
थॉमस को मालूम था उसे क्या करना था? भारत में एक निर्धन परिवार में जन्म लिया और अमरीकियों द्वारा गोद लिया गया, और भारत लौटने पर उसने अपने ही गृह शहर के बच्चों को खौफ़नाक स्थिति में देखा l इसलिए वह जान गया उसे सहायता करनी होगी l वह अमरीका लौटकर, अपनी शिक्षा समाप्त करके, ढेर सारा पैसा जमा करके, भविष्य में भारत लौटने की योजना बनाने लगा l
उसके बाद, याकूब 2:14-18 पढ़ने के बाद जिसमें प्रेरित प्रश्न करता है, “यदि कोई कहे कि मुझे विश्वास है पर वह कर्म न करता हो, तो इससे क्या लाभ?” थॉमस ने अपने मातृभूमि में एक छोटी लड़की को उसने अपनी माँ से चीखते सुना : “परन्तु माँ, मैं तो अभी भूखी हूँ!” उसने उन दिनों को याद किया जब वह भी बचपन में बहुत ही भूखा था – कूड़ेदानों में भोजन ढूढ़ता था l थॉमस ने सहायता करने के लिए वर्षों तक इंतज़ार नहीं कर सकता था l उसने निर्णय किया, “मैं अभी सहायता करना आरंभ करूँगा!!”
वर्तमान में इस अनाथालय में जिसे उन्होंने आरंभ किया था पचास बच्चे हैं जिन्हें भरपूर भोजन मिलता है और उनकी उचित देखभाल की जाती है और वे यीशु के बारे में सीखते हैं और शिक्षा भी प्राप्त कर रहे हैं – यह सब इसलिए क्योंकि एक व्यक्ति ने समझ लिया कि परमेश्वर उन्हें क्या करने को बुला रहा है और वह इस काम को टाल नहीं सकता है l
याकूब का सन्देश हम सब पर लागू होता है l यीशु मसीह में हमारा विश्वास हमें बहुत लाभ देता है – उसके साथ एक सम्बन्ध, बहुतायत का जीवन, और भविष्य की एक आशा l परन्तु इसका कुछ भी लाभ नहीं यदि हम आगे बढ़कर ज़रुरतमंदों की मदद नहीं करते हैं? क्या आप उस चीख को सुन रहे हैं : “मैं तो अभी भूखा हूँ!”
ऐबी की प्रार्थना
जब ऐबी हाई स्कूल की छात्रा थी, उसने और उसकी माँ ने एक हवाई जहाज़ दुर्घटना में बुरी तरह घायल एक व्यक्ति की कहानी सुनी – एक ऐसी दुर्घटना जिसमें उसके पिता और सौतेली माँ की मृत्यु हो गयी थी l यद्यपि वे इस व्यक्ति को नहीं जानते थे, ऐबी की माँ ने कहा, “हमें केवल इस व्यक्ति और इसके परिवार के लिए प्रार्थना करना होगा l और उन्होंने किया l
जल्द ही कुछ वर्ष बीत गए, और एक दिन ऐबी अपने विश्विद्यालय में एक कक्षा में प्रवेश की l एक विद्यार्थी ने उसे बैठने के लिए अपने करीब एक सीट दी l वह विद्यार्थी ऑस्टिन हैच था, हवाई दुर्घटना का शिकार जिसके लिए ऐबी ने प्रार्थना की थी l जल्द ही वे एक दूसरे के साथ मिलने लगे, और 2018 में उनका विवाह हो गया l
ऐबी ने अपने विवाह के तुरंत बाद एक साक्षात्कार में कहा, “यह सोचना पागलपन है कि मैं अपने भावी पति के लिए प्रार्थना कर रही थी l” दूसरों के लिए प्रार्थना करने का समय न निकालकर, अपने व्यक्तिगत ज़रूरतों और अपने निकट के लोगों के लिए अपनी प्रार्थनाओं को सीमित करना सरल है l हालाँकि, पौलुस इफिसुस के मसीहियों को लिखते हुए उनसे कहा कि “हर समय और हर प्रकार से आत्मा में प्रार्थना और विनती करते रहो, और इसी लिए जागते रहो कि सब पवित्र लोगों के लिए लगातार विनती किया करो” (इफिसियों 6:18) l और 1 तीमुथियुस 2:1 हमसे अधिकारियों के साथ-साथ “सब मनुष्यों” के लिए प्रार्थना करने को कहता है l
आइये हम दूसरों के लिए प्रार्थना करें – उनके लिए भी जिनको हम जानते नहीं हैं l यह “एक दूसरे का भार”(गलातियों 6:2) उठाने का एक तरीका है l
खाली बिछौना
मैं मोंटेगो बे, जमाइका के सैंट जेम्स इनफर्मरी(अस्पताल) लौटकर रेंडेल से पुनः मिलने के लिए उत्सुक था, जो दो वर्ष पूर्व उसके लिए यीशु के प्रेम के विषय जाना था l हाई स्कूल गायक-मण्डली की एक किशोरी, इवी और मैं प्रत्येक बसंत ऋतु के समय, रेंडेल के साथ वचन पढ़ते थे और सुसमाचार समझाते थे, और उसने व्यक्तिगत रूप से…
फटा हुआ पर्दा
वह दिन यरूशलेम के बाहरी क्षेत्र में एक अंधकारमय और निराशाजनक दिन था l शहरपनाह के ठीक बाहर एक पहाड़ी पर, एक व्यक्ति जो बीते तीन वर्षों तक उत्साही अनुयायियों की भीड़ आकर्षित करता रहा था उबड़-खाबड़ लकड़ी के एक क्रूस पर अपमान और पीड़ा में टंगा हुआ था l विलाप करनेवाले शोक में रो और बिलख रहे थे l सूर्य का प्रकाश अब दोपहर के आसमान को चमक नहीं दे पा रहा था l और क्रूस पर उस व्यक्ति के अत्यधिक पीड़ा का अंत हुआ जब वह ऊँची आवाज़ में चिल्लाया, “पूरा हुआ” (मत्ती 27:50; यूहन्ना 19:30) l
उसी क्षण, नगर के भीतर उस बड़े मंदिर से एक और आवाज़ आयी – कपड़े के चीरने की आवाज़ l आश्चर्यजनक रूप से, मनुष्य के हस्तक्षेप के बिना, वह अत्यधिक बड़ा, मोटा पर्दा जो मंदिर के बाहरी भाग को महा पवित्र स्थान से अलग करता था ऊपर से नीचे तक दो टुकड़े हो गया (मत्ती 27:51) l
वह फटा हुआ पर्दा क्रूस की सच्चाई का प्रतीक था : परमेश्वर तक एक नया मार्ग खुल गया था! क्रूस पर का व्यक्ति, यीशु, अंतिम बलिदान के रूप में अपना लहू बहा दिया था – एकमात्र वास्तविक और उपयुक्त बलिदान (इब्रानियों 10:10) – जो उसपर विश्वास करनेवाले प्रत्येक व्यक्ति को क्षमा का आनंद उठाने और परमेश्वर के साथ एक सम्बन्ध स्थापित करने देता है (रोमियों 5:6-11) l
उस मूल शुभ शुक्रवार के अंधकार के बीच में, हमने अबतक का सबसे उत्तम समाचार सुना – यीशु ने हमें हमारे पापों से बचाने के लिए और परमेश्वर के साथ संगति का अनुभव करने के लिए एक नया मार्ग खोल दिया (इब्रानियों 10:19-22) l हे मेरे परमेश्वर उस फटे हुए परदे के सन्देश के लिए धन्यवाद!
नम्र और सामर्थी
जैसे ही नीदरलैंड में शत्रु का कब्ज़ा बढ़ा, एन्नी फ्रैंक और उनके परिवार ने साहसिक रूप से तैयारी की और खतरे से बचने के लिए छिपने के एक गुप्त स्थान पर चले गए। विश्व युद्ध II के दौरान पकड़े जाने और बन्दी-शिविर में भेज दिए जाने से पहले वे दो वर्ष तक वहाँ रहे। फिर भी एन्नी का लिखा हुआ डायरी ऑफ ए यंग गर्ल जो बहुत ही प्रसिद्ध हो गया, उसमें उन्होंने कहा: “लम्बे समय टिके रहने के लिए सबसे धारदार हथियार नम्र और शान्त आत्मा है।”
जब हम वास्तविक जीवन की बात करते हैं तो नम्रता एक जटिल मुद्दा हो सकता है।
यशायाह 40 में हम परमेश्वर की एक तस्वीर को देखते हैं जो उन्हें नम्र और सामर्थी दिखाती है। पद 11 में हम पढ़ते हैं : “वह चरवाहे के समान अपने झुण्ड को चराएगा, वह भेड़ों के बच्चों को अँकवार में लिए रहेगा।” परन्तु यह इस पद के बाद आता है: “देखो, प्रभु यहोवा सामर्थ्य दिखाता हुआ आ रहा है, वह अपने भुजबल से प्रभुता करेगा” (पद 10)। सामर्थ से भरा हुआ, परन्तु जब दुर्बलों की सुरक्षा की बात आती है तो नम्र।
और यीशु का विचार करें, जिसने एक कोड़ा बनाया और मंदिर में जब उन्होंने सराफों की चौकियाँ उलट दीं तो इसे चारों और घुमाया, परन्तु उन्हीं ने नम्रता के साथ बच्चों की देखभाल की। उन्होंने फरीसियों को धमकाने के लिए कड़े शब्दों का प्रयोग किया (मत्ती 23) परन्तु उस महिला को क्षमा कर दिया जिसे उनकी दया की आवश्यकता थी (यूहन्ना 8:1-11) ।
ऐसे कुछ समय भी हो सकते हैं जब आपको दुर्बलों को न्याय दिलवाने के लिए अन्य लोगों को चुनौती देनी पड़े- “परन्तु हमें सभी को अपनी नम्रता का प्रमाण भी अवश्य देना है” (फिलिप्पियों 4:5) । जब हम परमेश्वर की सेवा करते हैं, तो कई बार हमारी सबसे बड़ी ताकत जरूरतमन्दों के लिए हमारे नम्र हृदय को प्रदर्शित करती है।
प्रोत्साहन का वातावरण
हर बार जब मैं मेरे घर के फिटनेस सेंटर जाता हूँ, तो मैं प्रोत्साहित हो जाता हूँ। उस व्यस्त स्थान में मैं उन अन्य लोगों से घिरा होता हूँ, जो अपने शारीरिक स्वास्थ्य और सामर्थ को बेहतर बनाने के लिए कठिन परिश्रम कर रहे होते हैं। वहाँ लगे हुए पोस्टर हमें एक-दूसरे को न जाँचना स्मरण कराते रहते हैं, परन्तु उन शब्दों और कार्यों का सर्वदा स्वागत किया जाता है, जो दूसरों की परिस्थिति में सहायता को प्रदर्शित करते हैं।
जीवन के आत्मिक क्षेत्र में चीज़ें किस प्रकार होनी चाहिए, यह उसकी एक सटीक तस्वीर है! हम में से वे, जो आत्मिक रूप से “स्वस्थ” होने, अपने विशवास में बढ़ने के लिए कठिन परिश्रम कर रहे हैं, कईबार महसूस कर सकते, कि उनका इस क्षेत्र से कोई सम्बन्ध नहीं है, क्योंकि हम आत्मिक रूप से मसीह के साथ हमारे चाल-चलन में उतने परिपक्व और उतने स्वस्थ नहीं हैं, जितने दूसरे हैं।
पौलुस हमें छोटा परन्तु सीधा सुझाव देता है: “इस कारण एक दूसरे को शान्ति दो और एक दूसरे की उन्नति का कारण बनो” ( 1 थिस्सलुनीकियों 5:11) । और रोम के विश्वासियों के लिए उसने लिखा: हम में से हर एक अपने पड़ोसी को उसकी भलाई के लिये प्रसन्न करे कि उसकी उन्नति हो” (रोमियों 15:2)। यह पहचानना कि हमारा पिता हमारे ऊपर बहुत ही स्नेह के साथ अनुग्रहकारी है, इसलिए आइए हम दूसरे लोगों को प्रोत्साहन के शब्दों और कार्यों के साथ परमेश्वर का अनुग्रह दिखाएँ।
जब हम “एक दूसरे को स्वीकार” (पद 7) करते हैं, आइए हम अपनी आत्मिक उन्नति के लिए परमेश्वर-पवित्र आत्मा के कार्य पर आधारित हों। और जब हम प्रतिदिन उसके पीछे चलना खोजते हैं, तो हम यीशु में हमारे भाइयों और बहनों को प्रोत्साहन का एक वातावरण बनाएँ, जब वे अपने विशवास में बढ़ते हैं।