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Articles by डेव ब्रेनन

मेरे प्रिय मित्र के नाम

पहली सदी में प्रेरित यूहन्ना का गयुस को पत्र लिखना ऐसी कला है जो इक्कीसवीं सदी में लुप्त हो चुकी है। न्यूयॉर्क टाइम्स की लेखिका कैथरीन फील्ड लिखती हैं, "पत्र लिखना हमारी प्राचीनतम कलाओं में से एक है।

गयुस को लिखे पत्र में, यूहन्ना शारीरिक और आत्मिक चंगाई की आशा के साथ गयुस की सत्यनिष्ठा पर एक उत्साहवर्धक वचन शमिल करते हैं और कलीसिया के प्रति उसके प्रेम पर टिपण्णी करते हैं। यूहन्ना ने कलीसिया में किसी समस्या की बात कही जिसे अलग से बाद में संबोधित करने का वादा किया। और उन्होंने परमेश्वर की महिमा हेतु अच्छे कार्य करने के महत्व के बारे में लिखा। कुल मिलाकर यह पत्र उत्साहवर्धक और चुनौतीपूर्ण था।

डिजिटल बातचीत के युग का अर्थ है, कागज के पत्र का लुप्त होना, परन्तु इसे दूसरों को प्रोत्साहित करने से हमें नहीं रोकना चाहिए। पौलुस ने चर्मपत्र पर प्रोत्साहन भरे पत्र लिखे; हम विभिन्न तरीकों में दूसरों को प्रोत्साहित कर सकते हैं। मुख्य यह नहीं कि तरीका क्या है, परन्तु यह है कि हम दूसरों को बताएँ कि हम यीशु के नाम पर उनकी परवाह करते हैं!

गयुस को यूहन्ना के पत्र से मिले प्रोत्साहन की कल्पना करें। हम भी मेसेज लिखकर या फ़ोन करके प्रेरणाप्रद शब्दों द्वारा अपने मित्रों को परमेश्वर का प्रेम दिखा सकते हैं।

फिर भी आशा

 

मेरे द्वारा 1988 से लेकर अब तक हमारी प्रतिदिन की रोटी  के लिए लिखे गए सैंकड़ों लेखों में से, कुछ एक मेरे मन में बस गए हैं l उनमें से एक लेख 1990 के दशक के मध्य का है जिसमें मैंने लिखा था कि हमारी तीन बेटियाँ कैंप या मिशन दौरे पर गयी हुई थीं, इसलिए छः साल का स्टीव और मैंने कुछ मनोरंजक समय एक साथ बिताए l

एयरपोर्ट की ओर सैर पर जाते समय, स्टीव ने मुड़कर मुझसे कहा, “मलेस्सा के बिना उतना आनंद नहीं है l” मलेस्सा उसकी आठ वर्षीय बहन और दिलीदोस्त थी l  उस समय हममें से कोई नहीं जानता था कि उसके वे शब्द कितने हृदयस्पर्शी होंगे l कार दुर्घटना में किशोरी मेलेस्सा की मृत्यु के बाद के वर्षों में जीवन “उतना आनंददायक” नहीं रहा है l बीच का समय दर्द को कम कर सकता है, किन्तु कोई भी दर्द को पूरी रीति से मिटा नहीं सकता l समय घाव को भर नहीं सकता है l लेकिन यहाँ कुछ है जिससे सहायता मिल सकती है : ढाढ़स देनेवाले परमेश्वर द्वारा प्रतिज्ञात दिलासा को सुनें, उस पर चिंतन करें, और उसका स्वाद लें l

सुनें: “हम मिट नहीं गए; यह यहोवा की महाकरूणा का फल है, क्योंकि उसकी दया अमर है l (विलापगीत 3:22) l

चिंतन करें: वह तो मुझे विपत्ति के दिन में अपने मण्डप में छिपा रखेगा l (भजन 27:5) l

स्वाद लें: मेरे दुःख में मुझे शांति उसी से हुई है, क्योंकि तेरे वचन के द्वारा मैंने जीवन पाया है l (119:50) l

किसी प्रिय की मृत्यु के बाद जीवन फिर कभी भी पहले जैसा नहीं होता l किन्तु परमेश्वर की प्रतिज्ञाएँ आशा और शांति/दिलासा लेकर आती हैं l

परमेश्वर की महान सृष्टि

 

हाल ही में जब हम अपने नाती-पोते के साथ एक सैर पर थे, फ्लोरिडा में हमें एक वेब कैमरा की सहायता से एक उकाब के परिवार को देखने का अवसर मिला l भूमि से बहुत ऊपर बने घोंसले में हमने प्रतिदिन माँ, पिता और उकाब के छोटे बच्चे के दैनिक क्रिया पर ध्यान दिया l हर दिन दोनों माता-पिता निरंतर अपने बच्चे की सुरक्षा का ध्यान रखते हुए, उसके पोषण के लिए निकट के नदी से मछली लाकर खिलाया करते थे l
उकाब के परिवार की यह कहानी परमेश्वर की अद्भुत सृष्टि की एक छवि अर्थात् सृष्टि की छवि का एक विस्तृत वर्णन, परमेश्वर के रचनात्मक हाथों के कार्यों का रूप प्रस्तुत करती है, जिसका वर्णन भजनकार अपने भजन 104 में करता है l

हम कायनात से सम्बंधित परमेश्वर की सृष्टि का प्रताप देखते हैं (पद.2-4) l
हम पृथ्वी की रचना का अनुभव करते हैं अर्थात् जल, पर्वत, घटी (पद.5-9) l
हम परमेश्वर के उपहार की महिमा अर्थात् पशु, पक्षी, और उपज का आनंद लेते हैं (पद.10-18) l
हम परमेश्वर द्वारा रचित प्रकृति के क्रम का अर्थात् सुबह/रात, अन्धकार/ प्रकाश, कार्य/विश्राम पर अचम्भा करते हैं (पद.19-23) l

परमेश्वर ने अपने हाथों से हमारे आनंद और अपनी महिमा के लिए कितनी शानदार सृष्टि रची है! “हे मेरे मन, तू यहोवा को धन्य कह!”(पद.1) l हममें से हर एक उसको सभी बातों के लिए जो उसने हमें दिया है जिसको हम सराह सकते हैं और जिसका हम आनंद ले सकते हैं उसे धन्यवाद दे सकते हैं l

हार्दिक स्वागत

“कौन सबको गले लगाएगा?”

यही सवाल उन अनेक सवालों में से एक था जो हमारे मित्र स्टीव ने तब पूछा जब उसे पता चला कि उसे कैंसर हो गया है और उसे जान पड़ा कि वह थोड़े समय के लिए हमारे चर्च में अनुपस्थित रहेगा l यदि हम रोमियों 16:16 को लागू करें जिसके अनुसार, “आपस में पवित्र चुम्बन से नमस्कार करो” लिखा है, तो, स्टीव सबके साथ मित्रवत भाव रखते हुए अभिनन्दन करता था,  गर्मजोशी से हाथ मिलाता था, और “पवित्र चुम्बन” से बहुतों को गले भी लगाता था l

और अब जब हम सब स्टीव की चंगाई के लिए परमेश्वर से प्रार्थना कर रहे हैं, वह इस बात से चिंतित है कि जब उसकी शल्यचिकित्सा और इलाज होता है और वह हमारे चर्च से कुछ समय के लिए अनुपस्थित रहेगा, हम उसके अभिवादन करने की कमी को महसूस करेंगे l

शायद हम सब स्टीव की तरह एक दूसरे का अभिवादन खुलकर नहीं कर सकते, किन्तु लोगों की चिंता करने का उसका नमूना हमारे लिए ताकीद है l स्मरण करें कि पतरस कहता है, “बिना कुड़कुड़ाए एक दूसरे का अतिथि-सत्कार करो,” अथवा जिसका केंद्र प्रेम हो (1 पतरस 4:9; देखें फ़िलि. 2:14) l जबकि प्रथम शताब्दी की पहुनाई में यात्रियों को रहने की व्यवस्था करना होता था, तो उसमें भी गर्मजोशी से स्वागत सम्मिलित होता था l

जब हम दूसरों के साथ प्रेम से व्यवहार करते हैं, चाहे गले लगाकर या मित्रवत मुस्कराहट के द्वारा, हम “सब बातों में यीशु मसीह के द्वारा, परमेश्वर की महिमा प्रगट [करें]” (1 पतरस 4:11) l

बाधित संगति

तेज़, दुखी पुकार ने उस अँधेरे दोपहर के वातावरण को बेध दिया l मैं यीशु के पांवों के निकट उसके मित्रों और प्रियों के घोर विलाप की कल्पना कर सकता हूँ l यीशु के दोनों ओर क्रूसित अपराधियों की आहें भी फीकी महसूस हो रही थीं l और सब सुननेवाले भी चकित थे l  

यीश गुलगुथा के उस क्रूस पर लटके हुए अत्यंत वेदना में पूरी निराशा से पुकार उठा,  “एली, एली, लमा शबक्तनी?”  (मत्ती 27:45-46) l

उसने कहा, “हे मेरे परमेश्वर, हे मेरे परमेश्वर, तूने मुझे क्यों छोड़ दिया?”

मैं हृदय को कष्ट देनेवाले इन शब्दों से अधिक की कल्पना भी नहीं कर सकता हूँ l अनंतकाल से, यीशु परमेश्वर पिता के साथ पूर्ण संगति में था l दोनों ने मिलकर सृष्टि की रचना की, अपनी समानता और स्वरुप में मनुष्य को रचा, और उद्धार की योजना बनायी l कभी भी दोनों एक दूसरी की संगति से अलग नहीं हुए l

और अब, जब क्रूस की अत्यंत मनोव्यथा यीशु पर तिरस्कारपूर्ण पीड़ा लेकर आई, उसने संसार के पाप का बोझ उठाते हुए पहली बार परमेश्वर की उपस्थिति से अपने को दूर पाया l

यह एक ही मार्ग था l केवल इस बाधित संगति के द्वारा ही हमें उद्धार मिल सकता था l यीशु के क्रूस पर त्यागे जाने का अनुभव करने के कारण ही हम मनुष्य जाति परमेश्वर के साथ संगति रख सकते हैं l

यीशु, आपको धन्यवाद l हमें क्षमा देने के लिए आपने अत्यंत पीड़ा सही l  

बस एक पल

वैज्ञानिक समय को लेकर काफी नुक्ताचीनी करते हैं। 2016 के अंत में,  मैरीलैंड के स्पेस फ्लाइट सेंटर पर लोगों ने साल में एक अतिरिक्त सेकंड जोड़ दिया। यदि आपको वह साल सामान्य से अधिक लम्बा लगा हो, तो आप सही थे।

उन्होंने ऐसा क्यों किया?  क्योंकि समय के साथ धरती की परिक्रमा की गति धीमी और साल थोड़े लम्बे होते जाते हैं। अंतरिक्ष में मनुष्य द्वारा भेजी वस्तुओं को ट्रैक करते हुए वैज्ञानिकों को एक-एक मिली सेकंड तक सटीक होना पड़ता है। जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि टकराने से बचाने वाले हमारे कार्यक्रम सही कार्य कर रहे हैं।

हम में से अधिकांश के लिए एक पल पा लेने से या उसे गवा देने से कोई फर्क नहीं पड़ता। लेकिन वचन के अनुसार, हमारा समय, और इसका उपयोग हम कैसे करते हैं यह महत्वपूर्ण है। पौलुस ने 1कुरिन्थियों 7:29 में कहा कि "समय कम है"। परमेश्वर के लिए किए जाने वाले कार्यों के लिए समय सीमित है, इसलिए हमें बुद्धिमानी से इसका उपयोग करना चाहिए। वह कहता है, "और अवसर को..."। (इफिसियों 5:16 इएसवी)

इसका अर्थ यह नहीं कि हमें वैज्ञानिकों के समान प्रत्येक सेकंड गिनना चाहिए, परंतु जब हम जीवन की अनित्य प्रकृति (भजन 39:4) पर विचार करें तो समय के बुद्धिपूर्वक उपयोग की बात याद रखें।

एक अच्छा मौसम

आज संसार के उत्तरी आधे हिस्से में बसंत ऋतु का पहला दिन है। उत्तरी गोलार्ध में पतझड़ और दक्षिणी गोलार्ध में शरद-काल है। आज सूर्य भूमध्य रेखा पर सीधा चमकता है, दिन की रौशनी और रात की लंबाई संसार में लगभग बराबर होती है।

नया मौसम कई लोगों के लिए महत्वपूर्ण होता है। कुछ लोग दिन इसलिए गिनते हैं क्योंकि वे नए मौसम में कुछ नए की अपेक्षा करते हैं। कुछ लोग अपने क्षेत्र में वसंत-ऋतु के आगमन का समय अपने कैलेंडर में चिन्हित करते हैं। या अन्य क्षेत्र में कुछ शरद-ऋतु में सूर्य से राहत लाने की प्रतीक्षा करते हैं। हम भी जीवन की ऋतुओं से गुजरते हैं जिसका मौसम से कुछ लेना-देना नहीं है। सभोपदेशक 3:1-11 के अनुसार हर एक बात का एक अवसर है-परमेश्वर द्वारा नियुक्त समय जिसमें हम जीवन जीते हैं।

जब मूसा ने इस्राएल के लोगों की जंगल से अगुवाई की, तो अपने जीवन के एक नए समय की बात की (व्यवस्थाविवरण 31:2), उन्हें यहोशू के लिए अपनी भूमिका को छोड़ना था। जब पौलुस रोम में बंधक थे उन्होंने अकेलेपन का सामना करते हुए साथ पाने की प्रार्थना की-परन्तु प्रभु की सहायता को पहचाना (2 तीमुथियुस 4:17)। जीवन का मौसम जो हो, आईए परमेश्वर की महानता, सहायता, और साथ रहने के लिए उनका धन्यवाद करें।

संकोचहीन निष्ठा

खेल प्रशंसक अपनी प्रिय टीम की प्रशंसा में बहुत कुछ करते हैं। टीम का प्रतीक चिन्ह पहनना, फेसबुक में पोस्ट डालना, मित्रों से चर्चा करना, उनकी निष्ठा पर कोई संदेह नहीं छोड़ता। मेरी प्रिय tiटीम की अपनी टोपी, टीशर्ट और बातें दिखाती है कि मैं भी इनमें शामिल हूं। खेलों में हमारी निष्ठा याद दिलाती है कि हमारी सच्ची और महान निष्ठा परमेश्वर के प्रति होनी चाहिए। भजन संहिता 34 में परमेश्वर के प्रति संकोचहीन निष्ठा के बारे में सोचिए, जो पृथ्वी पर किसी चीज़ से अधिक महत्वपूर्ण है।

दाऊद कहता है, "मैं हर समय यहोवा को धन्य कहा करूंगा" (पद 1), और हम अपने जीवन की कमियों को लेकर बैठ जाते हैं तो हम जीवन ऐसे जीते हैं मानो हमारे सत्य, प्रकाश और उद्धार का स्रोत परमेश्वर हैं ही नहीं। वह कहता है, "उसकी प्रशंसा सदा मेरे मुख पर होगी" (पद 1) और हम संसार की चीजों की प्रशंसा उनसे अधिक करते हैं। दाऊद कहता है, "मैं यहोवा पर घमण्ड करूंगा" (पद 2), हम जानते हैं कि जितना यीशु ने हमारे लिए किया, उससे अधिक हम अपनी सफलताओं का घमण्ड करते हैं।

अपनी प्रिय टीमों, रुचियों, और उपलब्धियों का आनन्द लेना गलत नहीं है। लेकिन हमारी सर्वोच्च प्रशंसा परमेश्वर को जाती है, "मेरे साथ यहोवा की बड़ाई करो...(पद 3)"।

हर जगह और कहीं नहीं

एक मित्र जिसने हमारी तरह, कार दुर्घटना में अपनी किशोर बेटी को खो दिया था, एक स्थानीय पेपर में लिंडसे, को एक श्रद्धांजलि लिखी जिसकी सबसे प्रभावी बात यह थी: "वह हर स्थान पर है, परन्तु कहीं नहीं है।"

यद्यपि हमारी बेटियां आज भी अपनी तस्वीरों से हम पर मुस्कुराती हैं, तो भी वो उत्साही व्यक्तित्व जो उन मुस्कुराहटों को चमक देते थे, अब कहीं नहीं हैं। वे हर स्थान पर हैं-हमारे दिल में, विचारों में, धर में रखी तस्वीरों में-परन्तु कहीं नहीं।

बाइबिल बताती है कि, मसीह में, लिंडसे और मेलिस्सा वास्तव में कहीं नहीं, नहीं हैं। वे यीशु की उपस्थिति में हैं, "प्रभु के साथ"(2 कुरिन्थियों 5:8)। वे उस के साथ हैं, जो, "कहीं नहीं पर सर्वव्यापी" है। हम परमेश्वर को भौतिक रूप में नहीं देखते हैं। वास्तव में, यदि आप चारों ओर नज़र डालेंगे, तो सोच सकते हैं कि वह कहीं नहीं है। परन्तु सत्य इसके विपरीत है। वह हर स्थान पर हैं!

हम जहां भी जाएं, परमेश्वर वहीं हैं। हमें मार्गदर्शन देने, मजबूत बनाने और सांत्वना देने को वह सदा हमारे साथ हैं। हम वहां जा ही नहीं सकते जहां वह उपस्थित न हों। भले ही न दिखें,  परन्तु वह हर स्थान पर हैं, हमारी हर परख में, यह एक अविश्वसनीय शुभ समाचार है।