रहस्य सुलझाना
मैंने पीनट(कार्टून) के रचयिता, चार्ल्स शुलत्ज़ के ज्ञान और अंतर्दृष्टि का हमेशा आनंद उठाया है l चर्च के युवाओं के विषय एक पुस्तक में मेरा एक सबसे पसंदीदा कार्टून दिखाई दिया l उसमें एक युवा अपने हाथों में बाइबिल लिए हुए फोन पर अपने मित्र से बोल रहा था, “मेरी समझ में मैंने पुराने नियम के रहस्यों को समझने में प्रथम कदम बढ़ाया है ... मैंने पढ़ना शुरू कर दिया है!” (किशोर होना एक बीमारी नहीं है) l
प्रतिदिन परमेश्वर के वचन की शक्ति को समझने और अनुभव करने की लेखक की भूख भजन 119 में दिखाई देती है l “आहा! मैं तेरी व्यवस्था से कैसी प्रीति रखता हूँ! दिन भर मेरा ध्यान उसी पर लगा रहता है” (पद.97) l यह उत्साही प्रयास बढ़ती बुद्धिमान, समझ, और परमेश्वर की आज्ञाकारिता की ओर ले जाती है (पद. 98-100) l
बाइबिल अपने पन्नों में “रहस्यों को सुलझाने” का कोई जादुई सूत्र नहीं बताती है l प्रक्रिया मानसिक से परे है और जो हम पढ़ते हैं उसके प्रति उत्तर मांगती है l यद्यपि हमारे लिए कुछ एक परिच्छेद पेचीदा होंगे, हम उन सच्चाइयों को अपना कर जिन्हें हमने समझ लिया है, प्रभु से कहें, “तेरे वचन मुझ को कैसे मीठे लगते हैं, वे मेरे मुँह में मधु से भी मीठे हैं! तेरे उपदेशों के कारण मैं समझदार हो जाता हूँ, इसलिए मैं सब मिथ्या मार्गों से बैर रखता हूँ” (पद.103-104) l
परमेश्वर के वचन में खोज की एक अद्भुत यात्रा हमारा इंतज़ार कर रही है l
पत्थरों से सामना
शताब्दियों के युद्ध और विनाश के बाद, यरूशलेम का आधुनिक शहर वस्तुतः अपने ही मलबा पर बना है l एक पारिवारिक भ्रमण पर, हम विया दोलोरोसा अर्थात् दुःख के मार्ग पर चले, परंपरा अनुसार वह मार्ग जिसपर यीशु क्रूस लेकर चला था l दिन गर्म था, इसलिए हम विश्राम के लिए ठहरकर सिस्टर्स के मठ के ठन्डे तलघर घूमें l वहाँ मैंने रास्ते के प्राचीन पत्थर देखे जो हाल ही के निर्माण के समय खोद कर निकले गए थे-ऐसे पत्थर जिनपर खेल खुदे हुए थे जो रोमी सिपाही अपने खाली समय में खेलते थे l
वे ख़ास पत्थर, जो संभवतः यीशु के काल के बाद के थे, ने मुझे मेरे आत्मिक जीवन पर विचार करने को विवश किया l एक थका हुआ और व्यर्थ समय बिताते हुए रोमी सिपाही की तरह, मैं परमेश्वर और दूसरों के प्रति लापरवाह और अस्नेही हो गया था l मैं याद करके द्रवित हुआ कि उस स्थान के निकट जहाँ में खड़ा था, प्रभु पर मार पड़ी, उसका उपहास किया गया, उसकी निंदा की गयी, और उसे अपमानित किया गया जब उसने मेरे समस्त पराजय और विरोध को अपने ऊपर ले लिए l
“वह हमारे ही अपराधों के कारण घायल किया गया, वह हमारे अधर्म के कामों के कारण कुचला गया; हमारी ही शांति के लिए उस पर ताड़ना पड़ी, कि उसके कोड़े खाने से हम लोग चंगे हो जाएँ” (यशा. 53:5) l
उन पत्थरों से मेरा सामना अभी भी मुझसे यीशु के स्नेही अनुग्रह की बात करता है जो मेरे समस्त पापों से महान है l
चेतावनी!
उन दिनों में जब मैं नियमित यात्रा करता था, मैं हर दिन एक नए शहर में रात बिताते समय होटल में जागने की घंटी लगवाता था l मुझे सुबह उठकर अपने काम में जाने के लिए एक व्यक्तिगत अलार्म के साथ, टेलीफोन की तेज घंटी की भी ज़रूरत होती थी l
प्रेरित यूहन्ना प्रकाशितवाक्य में एशिया प्रान्त की सात कलीसियाओं को लिखे पत्रों में चेतावनी देता है l उसने सरदीस की कलीसिया को यीशु मसीह का यह सन्देश दिया : “मैं तेरे कामों को जानता हूँ : तू जीवित तो कहलाता है, पर है मरा हुआ l जागृत हो, और उन वस्तुओं को जो बाकी रह गईं हैं ... उन्हें दृढ़ कर, क्योंकि मैं ने तेरे किसी काम को अपने परमेश्वर के निकट पूरा नहीं पाया” (प्रका. 3:1-2) l
हम आत्मिक मेहनत के मध्य परमेश्वर के साथ अपने सम्बन्ध में सुस्ती पर ध्यान नहीं देते l किन्तु परमेश्वर हमें याद दिलाता है “स्मरण कर कि तू ने कैसी शिक्षा प्राप्त की और सुनी थी, और उसमें बना रह” (पद.3) l
कुछ लोगों ने महसूस किया है कि आत्मिक रूप से जागृत रहने के लिए प्रति सुबह बाइबिल पठन और प्रभु से प्रार्थना करने के लिए समय निर्धारण सहायक है l यह कोई काम नहीं है किन्तु यीशु के साथ समय बिताने का आनंद है और दिन के काम के लिए उसकी ओर से तैयारी है l
दिव्य रुकावटें
विशेषज्ञ यह मानते हैं कि प्रतिदिन ख़ासा समय रुकावाटों में नष्ट हो जाता है l कार्य हो अथवा घर, एक फ़ोन कॉल अथवा किसी से अनपेक्षित मुलाकात हमें सरलता से हमारे मुख्य उद्देश्य से भटका देती हैं l
हममें से अनेक अपने जीवनों में रुकावटें पसंद नहीं करते, विशेषकर जब वे परेशानी उत्पन्न करते हैं अथवा हमारी योजनाओं को बदल देते हैं l किन्तु जो रुकावटें महसूस होती हैं उनके साथ यीशु भिन्न तरीके से पेश आया l बार-बार सुसमाचारों में, हम प्रभु को रूककर ज़रुरतमंदों की सहायता करते पाते हैं l
यीशु का यरूशलेम जाते समय जहाँ उसे क्रूसित होना था, सड़क किनारे बैठा एक अंधे व्यक्ति ने उसे पुकारा, “हे यीशु, दाऊद की संतान, मुझ पर दया कर!” (लूका 18:35-38) l भीड़ में से कुछ लोगों ने उसे शांत रहने को कहा, किन्तु वह यीशु को पुकारता रहा l यीशु ने रुककर उससे पूछा, “ ‘तू क्या चाहता है कि मैं तेरे लिए करूँ?’ ‘हे प्रभु, यह कि मैं देखने लगूँ,’ उसने कहा l यीशु ने उससे कहा, ‘देखने लग; तेरे विश्वास ने तुझे अच्छा कर दिया है’ “ (पद.41-42) l
जब एक असली ज़रूरतमंद द्वारा आपकी योजना बाधित होती है, हम उससे करुणा सहित व्यवहार करने के लिए प्रभु से बुद्धि मांगे l जिसे हम रूकावट कहते हैं वह उस दिन के लिए प्रभु की ओर से एक दिव्य सुअवसर हो सकता है l
मौसम के अनुकूल वस्त्र
खरीदे गए सर्दी के कपड़ों की कीमत लेबल हटाते समय मैं उनके पीछे लिखे शब्दों को पढ़कर मुस्कराया : चेतावनी : जब आप इन नए वस्त्रों को पहनोगे आप बाहर ही रहना चाहोगे l” मौसम के अनुसार उचित कपड़े पहनकर, एक व्यक्ति कठोर मौसम की बदलती स्थितियों में भी जीवित रह सकता है l
हमारे आत्मिक जीवनों में भी यही सिद्धांत सच है l यीशु ने बाइबिल में अपने अनुयायियों के लिए सभी मौसम के लिए आत्मिक वस्त्र बताया है l “इसलिए परमेश्वर के चुने हुओं के समान जो पवित्र और प्रिय हैं, बड़ी करुणा, और भलाई, और दीनता, और नम्रता, और सहनशीलता धारण करो ... क्षमा करो; जैसे प्रभु ने तुम्हारे अपराध क्षमा किये” (कुलु. 3:12-13 बल दिया गया है) l
परमेश्वर द्वारा दिए गए ये वस्त्र-जैसे भलाई, दीनता और नम्रता-धीरज, क्षमा और प्रेम के साथ विरोध और आलोचना का सामना करने में हमारी मदद करते हैं l ये हमें जीवन की आँधियों में स्थिर रहने की शक्ति देते हैं l
घर, स्कूल, अथवा कार्य में विपरीत स्थितियों का सामना करते समय परमेश्वर द्वारा बताए गए “वस्त्र” धारण करने से हमें सुरक्षा मिलती है और स्पष्ट अंतर लाने में योग्य बनाते हैं l “इन सब के ऊपर प्रेम को जो सिद्धता का कटिबंध है बाँध लो” (पद. 3:14) l
परमेश्वर के मार्गदर्शन अनुसार वस्त्र पहनना मौसम को नहीं बदलता-यह पहनने वाले को तैयार/लैस करता है l
निदेशक को देखें
विश्व-प्रसिद्ध वायलिन वादक, जोशुआ बेल, चालीस सद्सीय चैम्बर ऑर्केस्ट्रा, अकादमी ऑफ़ सैंट मार्टिन इन द फ़ील्ड्स, का निर्देशन अनोखे तौर से करते हैं l छड़ी से इशारा करने की बजाए वे अपने इतालवी वायलिन को दूसरे वायलिन वादकों के साथ बजाते हुए निर्देशन देते हैं l बेल ने कोलोराडो पब्लिक रेडियो से कहा, “ वायलिन बजाते हुए मैं उस वक्त उनके समझने लायक सब प्रकार के निर्देशन और संकेत दे सकता हूँ l वे मेरे वायलिन के प्रत्येक झुकाव को जानते हैं, या मेरे भौं के ऊपर उठाने को, या जिस तरह मैं अपने को धनुष के रूप में झुकाता हूँ l वे जानते हैं कि मैं पूरे ऑर्केस्ट्रा से कैसी आवाज़ चाहता हूँ l”
जिस तरह ऑर्केस्ट्रा के सदस्य जोशुआ बेल पर ध्यान केन्द्रित करते हैं, बाइबिल हमें हमारे प्रभु यीशु पर अपनी निगाहें रखने को कहती है l इब्रानियों 11 में विश्वास के अनेक नायकों की सूची के बाद, लेखक कहता है, “इस कारण जब कि गवाहों का ऐसा बड़ा बादल हम को घेरे हुए है, तो आओ, हर एक रोकनेवाली वस्तु और उलझानेवाले पाप को दूर करके, वह दौड़ जिसमें हमें दौड़ना है धीरज से दौड़ें, और विश्वास के करता और सिद्ध करनेवाले यीशु की ओर ताकते रहें” (इब्रा.12:1-2) l
यीशु ने प्रतिज्ञा की, “मैं जगत के अंत तक सदा तुम्हारे संग हूँ” (मत्ती 28:20) l क्योंकि वह है, उसके हमारे जीवन के संगीत का निर्देशन करते समय हमारे पास उसकी ओर देखने का अद्भुत सुअवसर है l
थोड़ा ठहरें
तीन सम्बन्धित फिल्मों के सेट द लार्ड ऑफ़ द रिंग्स की चर्चा में, एक किशोर ने कहा कि उसे उसकी कहानियाँ फिल्म की अपेक्षा पुस्तक के रूप में पसंद हैं l कारण पूछे जाने पर, उस युवक ने उत्तर दिया, “मैं अपना समय लेकर पुस्तक को पढ़ सकता हूँ l” एक पुस्तक को पढ़ते रहने के प्रभाव के विषय कुछ कहना होगा, विशेषकर बाइबिल, और उसमें की कहानियों में “ठहरे रहना l”
“विश्वास का अध्याय” इब्रानियों 11, उन्नीस लोगों के नाम बताता है l हर एक कठिनाई और शंका के मार्ग पर चला, फिर भी परमेश्वर के प्रति आज्ञाकारी रहा l “ये सब विश्वास ही की दशा में मरे; और उन्होंने प्रतिज्ञा की हुई वस्तुएं नहीं पाईं, पर उन्हें दूर से देखकर आनन्दित हुए और मान लिया कि हम पृथ्वी पर परदेशी और बाहरी हैं” (पद.13) l
बाइबिल को पढ़ते हुए उसमें वर्णित लोगों और घटनाओं पर विचार किये बगैर पढ़ना कितना सरल है l हमारी खुद की बनाई हुई समय-सारणी हमें परमेश्वर की सच्चाई और हमारे जीवनों के लिए उसकी योजनाओं की गहराइयों में जाने से रोकती है l किन्तु, उसके वचन में ठहरे रहने से, हम खुद को हमारी ही तरह लोगों के वास्तविक जीवन घटनाओं में गिरफ्तार पाते हैं जिन्होंने परमेश्वर की विश्वासयोग्यता पर अपने जीवनों को आधारित किया l
परमेश्वर के वचन को खोलकर यह याद करना अच्छा है कि हम देर तक उसमें ठहर सकते हैं l
एक साल में बाइबिल
2002 में मेरी बहन मार्था और उसके पति, जिम की एक दुर्घटना में मृत्यु के कुछ महीनों बाद एक मित्र ने मुझे हमारे चर्च में “दुःख द्वारा उन्नति” कार्यशाला में बुलाया l मैं अपनी इच्छा के विरुद्ध पहले सत्र में गया किन्तु वापस जाने का मन न था l मैंने परवाह करनेवाले एक सामाजिक समूह को परमेश्वर और दूसरों की सहायता से अपने जीवनों में एक ख़ास हानि का विवेकपूर्ण हल निकालने का प्रयास करते हुए देखकर चकित हुआ l मैं बार-बार परस्पर दुःख बांटने की प्रक्रिया द्वारा स्वीकार किये जाने और शांति के लिए वहाँ गया l
किसी प्रिय अथवा मित्र की अचानक मृत्यु की तरह, आरंभिक कलीसिया को यीशु के लिए सक्रिय, स्तिफनुस की मृत्यु, द्वारा आघात और दुःख पहुँचा (प्रेरितों 7:57-60) l सताव के मध्य, “भक्तों ने स्तिफनुस को कब्र में रखा और उसके लिए बड़ा विलाप किया” (8:2) l इन्होंने एक साथ दो काम किये : उन्होंने स्तिफनुस को दफ़न किया, जो अंतिम कार्य और हानि थी l और सभों ने विलाप किया, जो दुःख का सामूहिक प्रदर्शन था l
यीशु के अनुयायी के रूप में हमें अपनी हानि के लिए अकेले विलाप नहीं करना है l हम सच्चाई और प्रेम के साथ दुखित लोगों तक पहुँच सकते हैं और दीनता में हमारे साथ खड़े होनेवालों को स्वीकार सकते हैं l
एक साथ विलाप करते हुए, हम यीशु द्वारा उस समझ और शांति में उन्नति कर सकते हैं जो हमारे गंभीर दुखों से परिचित है l
शांत रहें
हमनें बीते पांच वर्षों के मानव इतिहास में सबसे अधिक सूचनाएँ एकत्रित की हैं, और यह हर समय हमारे पास आ ररही हैं” (द आर्गनाइज्ड माइंड : थिंकिंग स्ट्रेट इन द एज ऑफ़ इन्फोर्मेशन ओवरलोड के लेखक डेनियल लेविटिन) l लेविटिन कहते हैं, “एक अर्थ में हम अधिक हलचल के आदि हो जाते हैं l” खबर और ज्ञान का निरंतर आक्रमण हमारे दिमाग पर अधिकार कर लेता है l हमारे परिवेश में मीडिया के निरंतर आक्रमण के कारण, शांत रहकर सोचने और प्रार्थना करने हेतु समय निकालना बहुत कठिन हो गया है l
भजन 46:10 कहता है, “चुप हो जाओ, और जान लो कि मैं ही परमेश्वर हूँ l” यह हमें समय निकलकर प्रभु पर केन्द्रित होने की आवश्यकता याद दिलाता है l अनेक लोग मानते हैं कि “मनन का समय” अर्थात् बाइबिल पढ़ना, प्रार्थना करना और परमेश्वर की भलाई और महानता पर विचार करना हर दिन का एक महत्वपूर्ण भाग है l
भजन 46 के लेखक की तरह जब हम, इस सच्चाई का अनुभव करते हैं कि “परमेश्वर हमारा शरणस्थान और बल है” (पद.1), यह हमारे भय को दूर करता है (पद.2), संसार के कष्ट से हमारा ध्यान हटाकर परमेश्वर की शांति की ओर ले जाकर, शांत भरोसा उत्पन्न करता है कि हमारा परमेश्वर नियंत्रण रखनेवाला है (पद.10) l
चाहे हमारा संसार कितना भी अस्त-व्यस्त हो, हम अपने स्वर्गिक परमेश्वर के प्रेम और सामर्थ्य में शांति और सामर्थ्य प्राप्त कर सकते हैं l