2002 में मेरी बहन मार्था और उसके पति, जिम की एक दुर्घटना में मृत्यु के कुछ महीनों बाद एक मित्र ने मुझे हमारे चर्च में “दुःख द्वारा उन्नति” कार्यशाला में बुलाया l मैं अपनी इच्छा के विरुद्ध पहले सत्र में गया किन्तु वापस जाने का मन न था l मैंने परवाह करनेवाले एक सामाजिक समूह को परमेश्वर और दूसरों की सहायता से अपने जीवनों में एक ख़ास हानि का विवेकपूर्ण हल निकालने का प्रयास करते हुए देखकर चकित हुआ l मैं बार-बार परस्पर दुःख बांटने की प्रक्रिया द्वारा स्वीकार किये जाने और शांति के लिए वहाँ गया l 

किसी प्रिय अथवा मित्र की अचानक मृत्यु की तरह, आरंभिक कलीसिया को यीशु के लिए सक्रिय, स्तिफनुस की मृत्यु, द्वारा आघात और दुःख पहुँचा (प्रेरितों 7:57-60) l सताव के मध्य, “भक्तों ने स्तिफनुस को कब्र में रखा और उसके लिए बड़ा विलाप किया” (8:2) l इन्होंने एक साथ दो काम किये : उन्होंने स्तिफनुस को दफ़न किया, जो अंतिम कार्य और हानि थी l और सभों ने विलाप किया, जो दुःख का सामूहिक प्रदर्शन था l

यीशु के अनुयायी के रूप में हमें अपनी हानि के लिए अकेले विलाप नहीं करना है l  हम सच्चाई और प्रेम के साथ दुखित लोगों तक पहुँच सकते हैं और दीनता में हमारे साथ खड़े होनेवालों को स्वीकार सकते हैं l

एक साथ विलाप करते हुए, हम यीशु द्वारा उस समझ और शांति में उन्नति कर सकते हैं जो हमारे गंभीर दुखों से परिचित है l