किशोरावस्था में, बड़ी चुनौतियों अथवा जोखिम भरे बड़े फैसलों से परेशान होने पर, मेरी माँ ने दृष्टिकोण प्राप्त करने हेतु उन्हें लिख लेने के फाएदे सिखाए l किसी ख़ास अध्ययन अथवा कार्य के विषय अनिश्चित होने पर अथवा वयस्क होने की अवस्था की डरावनी सच्चाइयों से कैसे निपटा जाए, मैंने अपनी माँ की तरह उनकी मूल सच्चाइयों, उसके उपयुक्त परिणामों के साथ संभव कार्यवाही योजनाओं को लिखने की आदत बनायी l उस पृष्ठ पर मन लगाते हुए, मैं परेशानी से कदम पीछे हटाते हुए उन्हें अपनी भावनाओं की बजाए सच्चाइयों पर आधारित होकर देख पाती थी l

जिस तरह कागज़ पर विचारों को अंकित करने से मुझे नए दृष्टिकोण मिलते थे, प्रार्थना में परमेश्वर के सामने मन लगाने से उसका दृष्टिकोण प्राप्त होता है और हम उसकी सामर्थ्य याद कर पाते हैं l मनहूस शत्रु से एक चुनौतीपूर्ण पत्र प्राप्त करने के बाद राजा हिजकिय्याह ने ऐसा ही किया l अशुरों ने अनेक राष्ट्रों की तरह यरूशलेम को भी नाश करने की धमकी दी l हिजकिय्याह ने पत्र को प्रभु के आगे फैलाकर प्रार्थनापूर्वक अपने लोगों के छुटकारे के लिए प्रार्थना की ताकि संसार पहचान जाए कि  वह “केवल यहोवा” है (2 राजा 19:19) l

घबराहट, डर, या गहरी जानकारी वाली स्थितियों का सामना करते हुए हमें अपनी योग्यता से बढ़कर चाहिए l हिजकिय्याह की तरह प्रभु के पास जाएँ l उसकी तरह हम भी परमेश्वर के समक्ष अपनी समस्या रखकर अपने बेचैन हृदयों के लिए उसके मार्गदर्शन पर भरोसा रखें l