मैं अपने अध्ययन कमरे की खुली खिड़की के बाहर चिड़ियों को चहकते और पेड़ों पर मंद-मंद हवा चलते देखती हूँ l मेरे पड़ोसी के जोते हुए खेत में पुआल के ढेर, और चमकदार नीले आसमान के विपरीत सफ़ेद बादल दिखाई देते हैं l

मेरे घर के निकट निरंतर यातायात का शोर और मेरे पीठ में हलके दर्द को छोड़ दें तो मैं स्वर्ग का अल्प आनंद उठा रही हूँ l मैं स्वर्ग  शब्द को हलके तौर पर उपयोग कर रही हूँ क्योंकि यद्यपि हमारा संसार एक समय पूरी तौर से अच्छा था, अब नहीं है l मानवता के पापी होने के बाद, हमें अदन के बाग़ से निष्कासित कर दिया गया और भूमि को “श्रापित” किया गया (देखें उत्प.3) l उस समय से पृथ्वी और उसमें की हर वस्तु “पतन के आधीन” है l” पीड़ा, बीमारी, और हमारी मृत्यु मानव के पाप में गिरने का परिणाम है (रोमियों 8:18-23) l

फिर भी परमेश्वर सब कुछ नया कर रहा है l एक दिन उसका निवास उसके लोगों के बीच और पुनःस्थापित संसार में होगा-“एक नया आकाश और एक नयी पृथ्वी”-जहाँ मृत्यु न रहेगी, और न शोक, न विलाप, न पीड़ा रहेगी; पहली बातें जाती रहीं” (प्रकाशित 21:1-4) l हम उस दिन तक चमकीले रंग और कभी-कभी अपने संसार के विस्तृत अद्भुत खूबसूरती का आनंद ले सकते हैं, जो आनेवाले “स्वर्ग” की एक झलक है l