जीभ- प्रार्थना में बंधित
जब मेरे छोटे भाई की सर्जरी हुई, तो मैं चिंतित थी । मेरी माँ ने समझाया कि "जीभ-बंधक" (एंकिलोग्लोसिया/ankyloglossia) एक ऐसी अवस्था है जिसके साथ वह पैदा हुआ था और बिना मदद के, उसकी खाने और अंततः बोलने की क्षमता बाधित हो सकती थी। आज हम जीभ-बंधक शब्द का उपयोग यह वर्णित करने के लिए करते है कि हमारे पास शब्दों की घटी है या बोलने में शर्मिले हैं।
कभी-कभी प्रार्थना में बिना ये जाने कि क्या बोलना है हमारी जुबान बंधी रह सकती है। हमारी जीभ बार-बार एक ही आत्मिक कथन और दोहराए जाने वाले वाक्यांशों में बंधी होती है। हम अपनी भावनाओं को स्वर्ग की ओर ले जाते हैं, यह सोचते हुए कि क्या वे परमेश्वर के कानों तक पहुंचेंगे। हमारे विचार एक केंद्र-रहित राह पर भटकते रहते है ।
मसीह में पहली सदी के रोमी विश्वासियों को लिखते हुए, प्रेरित पौलुस हमे आमंत्रित करता है कि हम पवित्र आत्मा से सहायता पाए जब हम इस बात में संघर्ष करते है कि हमें किस प्रकार प्रार्थना करनी चाहिए। “आत्मा हमारी दुर्बलता में हमारी सहायता करता है। क्योंकि हम नहीं जानते कि प्रार्थना किस रीति से करना चाहिए, परन्तु आत्मा आप ही ऐसी आहें भर भरकर, जो बयान से बाहर हैं, हमारे लिये विनती करता है" (रोमियों 8:26)। यहां "सहायता" का संदर्भ भारी बोझ उठाने से है। और "बिना शब्द कराहना" एक निवेदन करने वाली उपस्थिति को दिखाता है जब पवित्रआत्मा हमारी आवश्यकताओं को परमेश्वर तक ले जाता है।
जब प्रार्थना में हमारी जीभ बंधी होती है, तो परमेश्वर का आत्मा हमारे भ्रम, दर्द और व्याकुलता को सही आकार देकर ऐसी सिद्ध प्रार्थना में बदलने में मदद करता है जो हमारे दिलों से परमेश्वर के कानों तक जाती है। वह सुनता है और उत्तर देता है, और हमारी आवयश्कता के अनुसार ठीक वैसी ही शान्ति हमें देता है जिसे हम स्वयं नहीं जानते होते जब तक कि हम उसे अपने लिए प्रार्थना करने को नहीं कहते।
ग्लानिहीन आँसू
"मुझे क्षमा करें," सीमा ने अपने बहते आँसुओं के लिए क्षमा माँगते हुए कहा। अपने पति की मृत्यु के बाद, उसने अपने किशोर बच्चों की देखभाल के लिए खुद को आगे बढ़ाया। जब चर्च के पुरुषों ने उनका मनोरंजन करने और उन्हें छुट्टी देने के लिए एक सप्ताहांत कैंपिंग सैर प्रदान किया, तो सीमा कृतज्ञता के साथ रोई, अपने आँसुओं के लिए बार-बार माफी माँगी।
हम में से बहुत से लोग अपने आंसुओं के लिए माफी क्यों मांगते हैं? शमौन, एक फरीसी, ने यीशु को भोजन पर आमंत्रित किया। भोजन के बीच में, जब यीशु मेज पर आराम से बैठे हुए थे, एक महिला जो एक पापी जीवन व्यतीत कर रही थी, इत्र का संगमरमर पात्र ले आई। “और उसके पांवों के पास, पीछे खड़ी होकर, रोती हुई, उसके पांवों को आंसुओं से भिगाने और अपने सिर के बालों से पोंछने लगी"(लूका 7:38)। बिना ग्लानि के, इस महिला ने खुलकर अपने प्यार का इजहार किया और फिर यीशु के पैरों को सुखाने के लिए अपने बालों को खोल दिया। यीशु के लिए आभार और प्रेम से उमड़कर, उसने अपने आंशुओं के बाद, सुगंधित चुंबन से भर दिया─कार्य जो जायज के विपरीत था लेकिन जो उस ठंडे मन के मेजबान से विपरीत था।
यीशु की प्रतिक्रिया? उसने उसके प्रेम की विपुल अभिव्यक्ति की प्रशंसा की और उसे "क्षमा किया हुआ" घोषित किया (पद 44-48)।
जब आँसुओं के अधिक बहने का डर होता है हम कृतज्ञता के उन आँसुओं को कुचलने के लिए प्रलोभित होते हैं l लेकिन परमेश्वर ने हमें भावनात्मक प्राणी बनाया है, और हम अपनी भावनाओं का उपयोग उसका सम्मान करने के लिए कर सकते हैं। लूका के सुसमाचार में स्त्री की तरह, आइए हम अपने अच्छे परमेश्वर के लिए अपने प्रेम को बिना किसी खेद के व्यक्त करें जो हमारी आवश्यकताओं को पूरा करता है और हमारी आभारी प्रतिक्रिया को स्वतंत्र रूप से स्वीकार करता है।
परमेश्वर का दाहिना हाथ
मैंने अपने बूढ़े कुत्ते, विल्सन को घास से बाहर निकालने में मदद की और इस प्रक्रिया में, मैंने सिर्फ एक मिनट के लिए अपने छोटे कुत्ते, कोच का पट्टा छोड़ दिया। जैसे ही मैं कोच की रस्सी लेने के लिए झुकी, उसने एक खरगोश को देखा। वह भाग गया, मेरे दाहिने हाथ से पट्टा छीन लिया और इस प्रक्रिया में मेरी अनामिका उंगली पूरी तरह मुड़ गयी। मैं घास पर गिर पड़ी और दर्द से कराह उठी।
तत्काल उपचार से लौटने और यह जानने के बाद कि मुझे सर्जरी की आवश्यकता है, मैंने परमेश्वर से मदद की भीख मांगी। "मैं एक लेखक हूँ! मैं कैसे टाइप करूंगी? मेरे दैनिक कर्तव्यों के बारे में क्या?" जैसा कि परमेश्वर कभी-कभी करता है, उसने मेरे दैनिक बाइबल पढ़ने से मुझसे बात की। “क्योंकि मैं तेरा परमेश्वर यहोवा हूं, जो तेरा दहिना हाथ पकड़कर तुझ से कहता है, मत डर; मैं तेरी सहायता करूंगा" (यशायाह 41:13)। मैंने संदर्भ पर गौर किया, जिससे यह संकेत मिलता है कि यहूदा में परमेश्वर के लोग, जिनसे यशायाह अपना संदेश कह रहा था, उसके साथ एक विशेष संबंध का आनंद लिया। उसने अपनी धार्मिक स्थिति के माध्यम से अपनी उपस्थिति, शक्ति और सहायता का वादा किया, जो उसके दाहिने हाथ के प्रतीक हैं (पद 10)। पवित्रशास्त्र में कहीं और, परमेश्वर के दाहिने हाथ का उपयोग उसके लोगों के लिए विजय प्राप्त करने के लिए किया जाता है (भजन संहिता 17:7; 98:1)।
मेरे ठीक होने के हफ्तों के दौरान, मैंने परमेश्वर से प्रोत्साहन का अनुभव किया क्योंकि मैंने अपने कंप्यूटर पर बोलना सीखा और अपने बाएं हाथ को घरेलू और संवारने के कार्यों में प्रशिक्षित किया। परमेश्वर के धर्मी दाहिने हाथ से लेकर हमारे टूटे और ज़रूरतमंद दाहिने हाथों तक, परमेश्वर हमारे साथ रहने और हमारी मदद करने का वादा करता है।
दुःख के लिए शब्दावली
जब मोहन और रेखा ने अपने एकलौते बच्चे को स्वर्ग को दे दिया, उन्होंने संघर्ष किया कि अब वे दोनों अपने को क्या संबोधित करेंगे । एक बच्चे को खो चुके माता-पिता का वर्णन करने के लिए हिंदी भाषा में कोई विशिष्ट शब्द नहीं है । पति के बिना पत्नी विधवा है । पत्नी के बिना पति विधुर होता है । माता-पिता के बिना एक बच्चा अनाथ होता है । एक माता-पिता, जिनके बच्चे की मृत्यु हो गयी है, पीड़ा की अपरिभाषित खाई है ।
गर्भपात/अकाल प्रसव(miscarriage) । शिशु की अचानक मृत्यु । आत्महत्या । बिमारी । दुर्घटना । मृत्यु एक बच्चे को इस संसार से छीन लेती है और उसके बाद उत्तरजीवी(surviving) माता-पिता की अभिव्यक्त पहचान छीन लेती है ।
फिर भी परमेश्वर खुद ऐसे विनाशकारी दुःख को समझता है क्योंकि उसका एकलौता पुत्र, यीशु ने, क्रूस पर मरते समय उसे पुकारा, “हे पिता, मैं अपनी आत्मा तेरे हाथों में सौंपता हूँ” (लूका 23:46) । यीशु के पृथ्वी पर के जन्म से पूर्व परमेश्वर पिता था और पिता ही बना रहा जब यीशु ने अपनी साँस को त्यागा । परमेश्वर पिता बना रहा जब उसके पुत्र का मृत शरीर कब्र में रखा गया । परमेश्वर आज भी अपने पुनरुथित पुत्र के पिता के रूप में जीवित है जो हर एक माता-पिता को आशा देता है कि एक बच्चा फिर से जीवित हो सकता है ।
आप स्वर्गिक पिता को क्या पुकारते हैं जो इस संसार के लिए अपने पुत्र को बलिदान करता है? आपके और मेरे लिए? पिता । अभी भी, पिता । जब दुःख की शब्दावली में हानि के दुःख को समझाने के लिए शब्द नहीं हैं, परमेश्वर हमारा पिता है और हमें अपने बच्चे संबोधित करता है (1 यूहन्ना 3:1) ।
क्या परमेश्वर सुन रहा है?
जब मैंने अपने चर्च की मंडलीय देखभाल टीम में सेवा की, तो मेरा एक कर्तव्य सेवाओं के दौरान पेंसिल से लिखी बेंच कार्ड्स पर दिए गए अनुरोधों पर प्रार्थना करना था l एक आंटी के स्वास्थ्य के लिए l एक जोड़े के वित्त के लिए l एक पुत्र की ईश्वर की खोज के लिए l शायद ही मैंने इन प्रार्थनाओं के परिणाम सुने l अधिकाँश अनाम थे, और मेरे पास यह जानने का कोई तरीका नहीं था कि परमेश्वर ने कैसे प्रतियुतर दी l मैं स्वीकार करता हूँ कि कई बार मुझे आश्चर्य हुआ कि क्या वह वास्तव में सुन रहा था? क्या मेरी प्रार्थनाओं के परिणामस्वरूप कुछ हो रहा था?
हमारे जीवनकाल में, हम में से अधिकांश सवाल करते हैं, “क्या परमेश्वर मेरी सुनता है?” मुझे एक बच्चे के लिए अपनी हन्ना जैसी अनुनय याद है जो सालों तक अनुत्तरित रही l और मेरी दलीलें थीं कि मेरे पिता विश्वास किये, फिर भी बिना किसी स्पष्ट अंगीकार के उनकी मृत्यु हो गयी l
सहस्त्राब्दियों में सर्वत्र असंख्य उदाहरण अंकित है कि परमेश्वर के कान सुनने के लिए झुके रहे : दासत्व में इस्राएलियों की कराहना सुनी (निर्गमन 2:24); सीनै पर्वत पर मूसा की सुनी (व्यवस्थाविवरण 9:19); गिलगाल में यहोशू की सुनी (यहोशु 10:14); संतान के लिए हन्ना की प्रार्थना सुनी (1 शमूएल 1:10-17); शाऊल से बचाव के लिए दाऊद की पुकार सुनी (2 शमूएल 22:7) l
पहला यूहन्ना 5:14 उत्कर्ष है, “यदि हम उसकी इच्छा के अनुसार कुछ मांगते हैं, तो वह हमारी सुनता है l” शब्द “सुनता है” का मतलब ध्यान देना है और सुना गया है के आधार पर प्रत्युत्तर देना है l
जब हम आज परमेश्वर के पास जाते हैं, हमें उसके सुनने के कान का भरोसा हो जो उसके लोगों के इतिहास में सर्वत्र पाया जाता है l
अच्छी तरह विश्राम करें
घड़ी ने सुबह की 1.55 बजायी l देर रात तक एक टेक्स्ट(text) बातचीत से बोझिल, नींद नहीं आ रही थी l मैंने अपनी चादरों को जो ममी(mummy) जैसी लिपटी हुई थी खोलकर उन्हें तह करके पलंग पर रख दी l मैं यह जानने के लिए कि नींद आने के लिए क्या करना है गूगल की लेकिन इसके स्थान पर मुझे यह मिला कि क्या नहीं करना है : झपकी न लें या कैफीन वाला पेय न लें अथवा दिन में देर तक काम करें l चेक करें l अपने टेबलेट पर आगे पढ़ते हुए, मुझे “स्क्रीन टाइम” बहुत देर तक उपयोग नहीं करने की भी सलाह दी गयी l उफ़ l टेक्स्ट करना एक अच्छा विचार नहीं था l जब अच्छी तरह से आराम करने की बात आती है, तो सूचियाँ क्या नहीं करने की है l
पुराने नियम में, परमेश्वर ने विश्राम करने के लिए सब्त के दिन क्या न करें, से सम्बंधित नियम दिए थे l नये नियम में, यीशु ने एक नया तरीका पेश किया l नियमों पर जोर देने के बजाय, यीशु ने शिष्यों को रिश्ते में बुलाया l “हे सब परिश्रम करनेवालों और बोझ से दबे हुए लोगों, मेरे पास आओ; मैं तुम्हें विश्राम दूँगा” (मत्ती 11:28) l इससे पहले वाले पद में, यीशु ने अपने पिता के साथ अपने स्वयं के निरंतर सम्बन्ध के बारे में बताया──जिसे उसने हमारे सामने प्रगट किया l यीशु ने पिता से निरंतर सहायता के प्रबंध का आनंद लिया, यही वह है जिसका अनुभव हम भी कर सकते हैं l
जबकि हम ख़ास अतीत से बचना चाहते हैं जो हमारी नींद में खलल डाल सकती है, मसीह में अच्छी तरह आराम करने की सार्थकता नियम से अधिक रिश्ते से है l मैंने अपने रीडर(reader) को बंद कर दिया और यीशु के निमंत्रण के तकिये पर अपना बोझिल हृदय रख दिया : “मेरे पास आओ . . . l”
बुद्धि जो हमें चाहिए
मेघा ने कूरियर खोला और एक बड़ा लिफाफा प्राप्त किया जिस पर उसके प्रिय मित्र का वापसी पता लिखा हुआ था l अभी कुछ ही दिन पहले, उसने उस मित्र के साथ एक संबंधपरक संघर्ष के बारे में बताया था । उसने उत्सुकता से पैकेज खोला और उसमें साधारण जूट की डोरी में रंग-बिरंगी मोतियों से सजा हार पाया l इन शब्दों के साथ एक कार्ड भी था “परमेश्वर के मार्ग खोजो l” मेघा उसे अपने गले में पहनते समय मुस्कुरायी l
नीतिवचन की पुस्तक बुद्धि की बातों का एक संकलन है──कई सुलैमान के द्वारा लिखी हुई हैं, जो अपने युग का सबसे बुद्धिमान व्यक्ति के रूप में प्रशंसित था (1 राजा 10:23) । मूलभूत सन्देश नीतिवचन 1:7 “यहोवा का भय मानना बुद्धि का मूल है” से शुरू होकर उसके 31 अध्याय पाठक को बुद्धि की सुनने और मूर्खता से बचने का आह्वान करते हैं l बुद्धि──जानना कि कब क्या करना है──परमेश्वर के मार्ग को खोजने के द्वारा उसे आदर देने से मिलती है l आरंभिक पदों में, हम पढ़ते हैं, “अपने पिता की शिक्षा पर कान लगा, और अपनी माता की शिक्षा को न तज; क्योंकि वे मानो तेरे सिर के लिये शोभायमान मुकुट, और तेरे गले के लिये कन्ठ माला होंगी” (पद.8-9) l
मेघा के मित्र ने उसे उस बुद्धि के श्रोत की ओर मार्गदर्शित किया था जो उसकी ज़रूरत थी : “परमेश्वर के मार्ग खोजो l” उसका उपहार मेघा के ध्यान को उस मदद की खोज करने की
ओर केन्द्रित किया जो उसे चाहिए था ।
जब हम परमेश्वर का आदर करते हैं और उसका मार्ग ढूंढते हैं, तो हम जिन्दगी के सभी मामलों का सामना करने के लिए वह बुद्धि प्राप्त करेंगे जो हमें चाहिए । प्रत्येक और हर एक ।
हमारे पिता की देखभाल
थवाक! मैंने उपर देखा और उस आवाज की तरफ अपना कान लगाया । खिड़की के फलक पर एक धब्बा देखकर, मैं बाहर झाँकी और चिड़िया का धड़कता-शरीर देखा । मेरा हृदय दुखित हुआ । मैं नाजुक पंख वाली चिड़िया की मदद करने के लिए ललायित हो गई ।
मत्ती 10 में, जब यीशु अपने चेलों को आसन्न खतरे के बारे में आगाह किया, उसने उनको दिलासा देने के लिए गौरेयों के लिए अपने पिता की देखभाल का वर्णन किया l उसने बारहों को निर्देश दिया जब उसने, उन्हें अशुद्ध आत्माओं पर अधिकार दिया कि उन्हें निकालें और सब प्रकार की बीमारियों और सब प्रकार की दुर्बलताओं को दूर करें” (पद.1) l जबकि ऐसे सामर्थ्य के काम करना चेलों को बहुत अच्छा लग रहा होगा, अनेक उनका विरोध करने वाले थे, जिसमें शासकीय अधिकारी, उनके अपने परिवार, और दुष्ट की फुसलानेवाली पकड़ शामिल थी (पद.16-28) l
फिर 10:29-31 में, यीशु ने उनसे किसी का भी सामना करने में भयभीत नहीं होने के लिए कहा क्योंकि वे कभी भी अपने पिता की देखभाल से बाहर नहीं होने वाले थे l उसने पूछा, “क्या पैसे में दो गौरेयें नहीं बिकतीं? तौभी तुम्हारे पिता की इच्छा के बिना उनमें से एक भी भूमि पर नहीं गिर सकती . . . इसलिए डरो नहीं; तुम बहुत गौरेयों से बढ़कर हो l”
मैंने दिन भर उस पक्षी की जाँच की, हर बार उसे जीवित देखा लेकिन शांत l फिर, देर शाम वह उड़ गयी थी l मैंने प्रार्थना की कि वह बच जाए l निश्चित रूप से अगर मैं इस चिड़िया की इतनी परवाह कर रही थी, परमेश्वर इससे भी अधिक देखभाल करता है l कल्पना कीजिये कि वह आपकी और मेरी कितनी परवाह करता है!
जो कुछ वह कर सकी, उसने किया
उसने वाहक पट्टा(conveyor belt) पर कपकेक के प्लास्टिक के डिब्बे को रखकर खजांची की ओर भेजा l इसके बाद जन्मदिन कार्ड और चिप्स के विभिन्न पैकेट थे l उसके बाल पोनीटेल(ponytail) से बाहर, उसके थके माथे पर फैले हुए थे l उसका नन्हा बच्चा ध्यान देने के लिए चिल्ला रहा था l क्लर्क ने कुल जोड़ बताया और माँ का चेहरा उतर गया l “ओह, मुझे लगता है कि मुझे कुछ वापस करना होगा l लेकिन ये उसकी पार्टी के लिए हैं, उसने अपने बच्चे को देखते और अफ़सोस जताते हुए गहरी साँस ली l
उसके पीछे लाइन में खड़े, एक अन्य ग्राहक ने इस माँ के दर्द को पहचान लिया l यह दृश्य बैतनिय्याह की मरियम के लिए यीशु के शब्दों में जाना-पहचाना है : “जो कुछ वह कर सकी, उसने किया” (मरकुस 14:8) l मरियम ने उसकी मृत्यु और गाड़े जाने से पहले बहुमूल्य इत्र से उसका अभिषेक किया, जिसके बाद शिष्यों ने उसका उपहास किया l यीशु ने उसके द्वारा किये गए कार्यों का जश्न मनाकर अपने शिष्यों को सुधारा l उसने यह नहीं कहा, "उसने वह सब किया जो वह कर सकती थी,” बल्कि, उसने कहा, “जो कुछ वह कर सकी, उसने किया l” इत्र की अत्यधिक लागत उसका मतलब नहीं था l यह मरियम के प्रेम का उसके कार्य द्वारा दर्शशाया जाना था जो मायने रखता था l यीशु के साथ रिश्ता प्रतिक्रिया में परिणित होता है l
उसी क्षण, माँ के एतराज करने से पहले, दूसरा ग्राहक आगे झुककर अपने क्रेडिट कार्ड को कार्ड रीडर में डालकर, खरीद के लिए भुगतान कर दिया l यह एक बड़ा खर्च नहीं था, और उस महीने उसके पास अतिरिक्त धन था l लेकिन उस माँ के लिए, यह सब कुछ था l शुद्ध प्रेम का एक भाव-प्रदर्शन उसकी आवश्यकता के क्षण में प्रगट हो गया l