घड़ी ने सुबह की 1.55 बजायी l देर रात तक एक टेक्स्ट(text) बातचीत से बोझिल, नींद नहीं आ रही थी l मैंने अपनी चादरों को जो ममी(mummy) जैसी लिपटी हुई   थी खोलकर उन्हें तह करके पलंग पर रख दी l मैं यह जानने के लिए कि नींद आने के लिए क्या करना है गूगल की लेकिन इसके स्थान पर मुझे यह मिला कि क्या नहीं करना है : झपकी न लें या कैफीन वाला पेय न लें अथवा दिन में देर तक काम करें l चेक करें l अपने टेबलेट पर आगे पढ़ते हुए, मुझे “स्क्रीन टाइम” बहुत देर तक उपयोग नहीं करने की भी सलाह दी गयी l उफ़ l टेक्स्ट करना एक अच्छा विचार नहीं था l जब अच्छी तरह से आराम करने की बात आती है, तो सूचियाँ क्या नहीं करने की है l 

पुराने नियम में, परमेश्वर ने विश्राम करने के लिए सब्त के दिन क्या न करें, से सम्बंधित नियम दिए थे l नये नियम में, यीशु ने एक नया तरीका पेश किया l नियमों पर जोर देने के बजाय, यीशु ने शिष्यों को रिश्ते में बुलाया l “हे सब परिश्रम करनेवालों और बोझ से दबे हुए लोगों, मेरे पास आओ; मैं तुम्हें विश्राम दूँगा” (मत्ती 11:28) l इससे पहले वाले पद में, यीशु ने अपने पिता के साथ अपने स्वयं के निरंतर सम्बन्ध के बारे में बताया──जिसे उसने हमारे सामने प्रगट किया l यीशु ने पिता से निरंतर सहायता के प्रबंध का आनंद लिया, यही वह है जिसका अनुभव हम भी कर सकते हैं l 

जबकि हम ख़ास अतीत से बचना चाहते हैं जो हमारी नींद में खलल डाल सकती है, मसीह में अच्छी तरह आराम करने की सार्थकता नियम से अधिक रिश्ते से है l मैंने अपने रीडर(reader) को बंद कर दिया और यीशु के निमंत्रण के तकिये पर अपना बोझिल हृदय रख दिया : “मेरे पास आओ . . . l”