मैं यहाँ हूँ, शॉपिंग मॉल फ़ूड कोर्ट में बैठी हूँ, मेरा शरीर तनावग्रस्त है और काम की निर्धारित तिथियों के कारण मेरे पेट में असहज कसाव है l जब मैं अपना भोजन खोलती और एक टुकड़ा खाती हूँ, लोग मेरे चारों ओर भागते हुए नज़र आते हैं, जो अपने ही काम पर झल्ला रहे होते हैं l हम कितने सीमित है, मैं अपने बारे में सोचती हूँ, समय, ऊर्जा, और क्षमता में सीमित l 

मैं एक नई कार्य सूची लिखने और आवश्यक कार्यों को प्राथमिकता देने पर विचार करती हूँ, लेकिन मैं जैसे ही पेन निकालती हूँ एक और विचार मेरे मन में आ जाता है : एक व्यक्तित्व जो अनंत और असीमित है, जो सहजता से सब काम पूरा करता है जिसकी वह इच्छा करता है l 

यह परमेश्वर, यशायाह कहता है, महासागर को चुल्लू से माप सकता है और पृथ्वी के मिटटी को नपुए में भर लेता है (यशायाह 40:12) l वह तारों को गिन गिनकर निकालता, और उन सब को नाम ले लेकर बुलाता है (पद.26), बड़े बड़े हाकिमों को तुच्छ कर देता है, और पृथ्वी के अधिकारियों को शून्य के समान कर देता है (पद.23), वह जातियाँ तो डोल में की एक बूंद या पलड़ों पर की धुल के तुल्य ठहरती [हैं]; [और] वह द्वीपों को धुल के किनकों सरीखे उठाता [है] (पद.15) l “तुम मुझे किसके समान बताओगे?” वह कहता है (पद.25) l “यशायाह उत्तर देता है, “यहोवा जो सनातन परमेश्वर और पृथ्वी भर का सृजनहार है, वह न थकता, न श्रमित होता है” (पद.28) l 

तनाव और घोर परिश्रम हमारे लिए अच्छे नहीं होते, लेकिन आज वे हमें शक्तिशाली सबक देते हैं l असीमित परमेश्वर मेरी तरह नहीं है l वह जो इच्छा करता है उसे पूरा करता है l मैं अपना भोजन ख़त्म करती हूँ और फिर ठहर जाती हूँ l और शांत होकर आराधना करती हूँ l