पूर्ण पराजित महसूस करते हुए, सिमरा अपने पुत्र की नशे से लड़ाई से अत्यंत दुखित थी l “मैं बुरा महसूस करती हूँ,” वह बोली l “क्या परमेश्वर सोचता है कि मेरे पास विश्वास नहीं है क्योंकि मैं प्रार्थना करते समय अपने आंसू नहीं रोक सकती?” 

“मैं नहीं जानता कि परमेश्वर क्या सोचता है,” मैंने कहा l लेकिन मैं जानता हूँ कि वह वास्तविक भावनाओं को संभाल सकता है l यह ऐसा नहीं है कि वह हमारी भावनाओं को नहीं जानता है l” मैंने प्रार्थना की और सिमरा के साथ आंसू बहाए जब हमने उसके बेटे के छुटकारे के लिए विनती की l 

बाइबल में परमेश्वर के साथ मल्लयुद्ध करते हुए अनेक लोगों का उदहारण निहित है जब वे संघर्ष कर रहे थे l भजन 42 का लेखक परमेश्वर की शांति की निरंतर और शक्तिशाली उपस्थिति का अनुभव करने के लिए गहरी इच्छा प्रगट करता है l उसने जो दुःख सहा उसके लिए अपने आँसू और उदासी को स्वीकार करता है l जब वह खुद को परमेश्वर की विश्वासयोग्यता का याद दिलाता है, उसका आंतरिक उथल-पुथल, कम होता है और भरोसेमंद प्रशंसा के साथ प्रवाहित होता है l अपने “प्राण” को उत्साहित करते हुए भजनकार लिखता है, “परमेश्वर पर भरोसा रख; क्योंकि वह मेरे मुख की चमक और मेरा परमेश्वर है” (पद.11) l वह परमेश्वर के बारे में क्या सच है और अपनी अभिभूत करनेवाली भावनाओं की निर्विवाद वास्तविकताओं के बीच आगे पीछे खींचा जाता है l 

परमेश्वर हमें अपने स्वरुप में और भावनाओं के साथ अभिकल्पित किया है l दूसरों के लिए हमारे आँसू गहरा प्रेम और तरस प्रगट करते हैं, ज़रूरी नहीं की विश्वास की कमी l हम परमेश्वर तक अपने कच्चे घाव अथवा पुराने दाग़ लेकर जा सकते हैं क्योंकि वह जानता है कि हम आभास करते हैं l हर एक प्रार्थना, चाहे वह शांत, सिसकती हुई , या भरोसे के साथ ऊंची आवाज़ में है, सुनने और हमारी देखभाल की उसकी प्रतिज्ञा में हमारे भरोसे को प्रदर्शित करती है l