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Articles by जॉन ब्लैस

हमें यीशु की मदद चाहिए

सुनील मजाकिया, स्मार्ट और लोकप्रिय था। लेकिन गुप्त रूप से वह डिप्रेशन से जूझ रहा था। पंद्रह साल की उम्र में उसके आत्महत्या करने के बाद, उसकी माँ प्रतिभा ने उसके बारे में कहा, "यह समझना मुश्किल है कि कोई व्यक्ति जिसके लिए इतना कुछ हो रहा था वह उस मुकाम पर कैसे आगया। सुनील . . आत्महत्या से अछूता नहीं था। "एकांत के कुछ ऐसे क्षण होते थे जब प्रतिभा अपना दुःख परमेश्वर के सामने उँड़ेलती थी। वह कहती है कि आत्महत्या के बाद का गहरा दुख "दुख का एक अलग स्तर" है। फिर भी उसने और उसके परिवार ने सामर्थ के लिए परमेश्वर और दूसरों पर निर्भर रहना सीख लिया था, और अब वें ऐसे लोगों से प्रेम करने में अपना समय उपयोग करते है जो अवसाद से जूझ रहे हैं।

प्रतिभा का सिद्धांत अब "प्रेम और निर्भरता" बन गया था। यह विचार पुराने नियम की रूत की कहानी में भी देखा जाता है। नाओमी ने अपने पति और दो पुत्रों को खो दिया—एक जिसका विवाह रूत से हुआ था (रूत १:३-५)। नाओमी, कटु  और उदासी से भरी, रूत से अपनी माँ के परिवार में लौटने का आग्रह किया जहाँ उसकी देखभाल की जा सकती थी। रूत, हालांकि दुख में थी, पर अपनी सास से "चिपकी रही" और उसके साथ रहने और उसकी देखभाल करने के लिए प्रतिबद्ध थी (वव. १४-१७)। वे नाओमी की मातृभूमि बेतलेहेम लौट आए, जहाँ रूत एक परदेशी थी। परन्तु प्रेम और निर्भरता के लिए उनके पास एक दूसरे का साथ था, और परमेश्वर ने उनके लिए प्रयोजन किया (२:११-१२)।

हमारे दुःख के समय में, परमेश्वर का प्रेम स्थिर रहता है। वह हमेशा हमारे पास है की हम उस पर निर्भर रह सके जैसे हम भी उसकी सामर्थ द्वारा दूसरों पर निर्भर रहते और उनसे प्रेम करते हैं।

घर पर विश्वास की बातचीत

"घर जैसी कोई और जगह नहीं होती। घर जैसी कोई और जगह नहीं होती ।" द विजार्ड ऑफ ओज़ में डोरथी द्वारा बोली जाने वाली यह न भुलाने वाली पंक्तियाँ एक कहानी कहने वाले यंत्र को प्रकट करती हैं जो स्टार वॉर्स से लेकर द लायन किंग तक की हमारी सबसे स्मरणीय कहानियों में सबसे अधिक पाई जाती हैं। इसे "हीरो की यात्रा" के रूप में जाना जाता है। संक्षेप में: एक साधारण व्यक्ति एक साधारण जीवन जी रहा होता है जब एक असाधारण रोमांच पैदा किया जाता है। पात्र घर छोड़ देता है और एक अलग दुनिया की यात्रा करता है जहां परीक्षा और परेशानी प्रतीक्षा करती है, साथ ही सलाहकार और खलनायक भी। यदि वह परीक्षा पास कर लेता या लेती है और वीर साबित होता या होती है, तो घर लौटना उन कहानियों और उनसे प्राप्त हुए ज्ञान के साथ अंतिम चरण होता है। अंतिम भाग निर्णायक होता है।

दुष्ट आत्मा-ग्रस्त व्यक्ति की कहानी अभिनेता (हीरो) की यात्रा के समान है। यह दिलचस्प है कि अंतिम दृश्य में उस व्यक्ति ने यीशु से विनती की कि वह उसे "अपने साथ रहने" दे (मरकुस 5:18)। तौभी यीशु ने उससे कहा: "अपने घर अपने लोगों के पास जा" (पद 19)। इस आदमी की यात्रा में उन लोगों के लिए घर लौटना महत्वपूर्ण था जो उसे सबसे अच्छे से जानते थे और उन्हें अपनी अद्भुत कहानी सुनाना।

परमेश्वर हम में से प्रत्येक को अलग-अलग तरीकों से और अलग-अलग परिदृश्यों में बुलाते हैं। लेकिन हम में से कुछ के लिए, हमारी विश्वास यात्रा के लिए घर जाना और अपनी कहानी उन लोगों को बताना महत्वपूर्ण हो सकता है जो हमें सबसे अच्छे से जानते हैं। हम में से कुछ के लिए यह बुलाहट है "घर जैसी कोई जगह नहीं।"

हमारे पिता

ज्यादातर सुबह मैं प्रभु की प्रार्थना  कहता हूँ। मैं नये दिन के अधिक योग्य नहीं होता जब तक मैं अपने आप को इन शब्दों में मजबूत नहीं कर लेता। अभी मैंने सिर्फ पहले तीन शब्द बोले थे “हे हमारे पिता” जब मेरे फोन की घंटी बजी। मैं चौंक गया क्योंकि सुबह के 5:43 बजे थे। सोचिय कौन हो सकता है? फ़ोन के डिस्प्ले पर डैड दिखाई दिया, इससे पहले मैं उत्तर देता कॉल कट गया। मैंने सोचा कि  मेरे पिता ने गलती से फोन लगाया था। यकीन से, उन्होंने वैसे ही किया था। जान बूझकर या संयोग?   हो सकता है, पर मैं विश्वास करता हूँ की हम सब परमेश्वर के दया से डूबे हुए संसार में रहते है। उस विशेष दिन मुझे हमारे पिता की उपस्थिति का आश्वासन चाहिए था।

उसके बारे में एक मिनट के लिए सोचे। उन सब तरीकों से जिससे यीशु ने अपने चेलों को उनकी प्रार्थना शुरू करना सिखाया, उन्होंने इन तीन शब्दों “हे हमारे पिता” (मत्ती6:9) से शुरू किया। क्या यह बिना सोचे समझे था? नहीं, यीशु अपने शब्दों को हमेशा विचारपूर्वक कहते थे। हम सब का अपने अपने  सांसारिक पिता के साथ हमारा अलग—अलग रिश्ता है..कुछ अच्छा, कुछ उस से कम।  जिस तरीके से हमें प्रार्थना करना चाहिए “मेरा” पिता या “तुम्हारा” पिता संबोधित करते हुए नहीं, परन्तु “हमारे पिता” जो हमें देखता है और हमारी सुनता है और जो हमारे मांगने से पहले जानता है की हमें क्या चाहिए। (पद8) 

क्या ही अद्भुत आश्वासन है,  खासतौर से उन दिनों में जब हम भूले हुए, अकेला, त्यागे हुए, या बस ज्यादा योग्य नहीं महसूस करते है। याद रखें, हम जहाँ भी हो और दिन या रात का कोई भी समय हो स्वर्ग में हमारा पिता हमेशा हमारे नजदीक है।

प्रकाशन और आश्वासन

2019 में बच्चे का लिंग का खुलासा बहुत ही नाटकीय ढंग से हुआ था। जुलाई में, एक वीडियो में एक कार नीले धुएं का उत्सर्जन करती हुई दिखाई दे रही थी, यह दिखाने के लिए, "यह एक लड़का है!" सितंबर में, एक क्रॉप-डस्टर विमान(फसलों पर कीटनाशक छिड़कने वाला छोटा विमान) ने सैकड़ों गैलन गुलाबी पानी फेंका, यह घोषणा करने के लिए, "यह एक लड़की है!" हालांकि, एक और "खुलासा" था, जिसने दुनिया के बारे में महत्वपूर्ण चीजों को उजागर किया, जिसमें ये बच्चे बड़े होंगे। 2019 के समापन पर, यूवर्जन(YouVersion) ने खुलासा किया कि इसकी ऑनलाइन और मोबाइल बाइबिल पर वर्ष की सबसे अधिक आपस में साझा किया हुआ, चिन्हांकित और बुकमार्क/पुस्तक चिन्ह किया गया वचन फिलिप्पियों 4:6 था, "किसी भी बात की चिन्ता मत करो; परन्तु हर एक बात में तुम्हारे निवेदन, प्रार्थना और विनती के द्वारा धन्यवाद के साथ परमेश्‍वर के सम्मुख उपस्थित किए जाएँ। "

यह काफी बड़ा रहस्योद्घाटन है। लोग इन दिनों बहुत सी चीजों को लेकर बेचैन हैं─हमारे बेटे और बेटियों की जरूरतों से लेकर असंख्य तरीकों से परिवार और दोस्तों के बीच बंटवारे, प्राकृतिक आपदाओं और युद्धों तक। लेकिन इन सभी चिंताओं के बीच, अच्छा समाचार यह है कि बहुत से लोग एक वचन को पकड़े हुए है जो कहता है, "किसी भी बात की चिंता मत करो।" इसके अलावा, वही लोग दूसरों के साथ-साथ खुद को भी प्रोत्साहित करते हैं कि वे "हर स्थिति में" परमेश्वर के सामने अपने निवेदन प्रस्तुत करे। वह मानसिकता जो उपेक्षा नहीं करती बल्कि जीवन की चिंताओं का सामना करती है, वह है "धन्यवादी" की।

वह वचन जो "वर्ष का वचन" तो नहीं बना, लेकिन उसके बाद ही है─"और ईश्वर की शांति . . . मसीह यीशु में तुम्हारे हृदय और तुम्हारे मन की रक्षा करेगा" (पद.7 )। यह काफी आश्वासन देता है!

पिता की आवाज

मेरे दोस्त के पिता का हाल ही में निधन हो गया। जब वह बीमार हुआ तो उसकी हालत तेजी से बिगड़ी और कुछ ही दिनों में वह चला गया। मेरे दोस्त और उसके पिता के बीच हमेशा एक मजबूत रिश्ता था, लेकिन अभी भी बहुत सारे सवाल पूछे जाने थे, जवाब मांगे जाने थे, और बातचीत की जानी थी। बहुत सी अनकही बातें, और अब उसके पिता चले गए हैं। मेरा दोस्त एक प्रशिक्षित परामर्शदाता है: वह दुःख के उतार-चढ़ाव को जानता है और दूसरों को उन परेशान पानी में नेविगेट करने में कैसे मदद करता है। फिर भी, उन्होंने मुझसे कहा, "कुछ दिनों में मुझे पिताजी की आवाज़ सुनने की ज़रूरत है, उनके प्यार का आश्वासन। यह हमेशा मेरे लिए दुनिया का मतलब था। ”

यीशु की पार्थिव सेवकाई की शुरुआत में एक महत्वपूर्ण घटना यूहन्ना के हाथों उसका बपतिस्मा था। यद्यपि यूहन्ना ने विरोध करने की कोशिश की, यीशु ने जोर देकर कहा कि वह क्षण आवश्यक है ताकि वह मानवजाति के साथ अपनी पहचान बना सके: "अब ऐसा ही हो; हमारे लिए यह उचित है कि हम सब धार्मिकता को पूरा करने के लिए ऐसा करें" (मत्ती 3:15)। यूहन्ना ने वैसा ही किया जैसा यीशु ने कहा। और फिर कुछ ऐसा हुआ जिसने यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले और भीड़ को यीशु की पहचान की घोषणा की, और इसने यीशु के हृदय को भी गहराई से छुआ होगा। पिता की वाणी ने उसके पुत्र को आश्वस्त किया: "यह मेरा पुत्र है, जिससे मैं प्रेम रखता हूं" (v 17)।

हमारे दिलों में वही आवाज हमारे लिए उसके महान प्रेम के विश्वासियों को आश्वस्त करती है (1 यूहन्ना 3:1)। 

अनुत्तरित प्रार्थनाएं

क्या हम वहां पहुँच गए  हैं? / अभी नहीं। / क्या हम अब वहां  पहुँच गए है? / अभी नहीं।  जब हमारे बच्चे छोटे थे, तब हम सोलह घंटे की घर वापसी की पहली (और निश्चित रूप से आखिरी नहीं) यात्रा पर खेले जाने वाले आगे-पीछे के खेल(back-and-forth game) खेले l  हमारे सबसे बड़े दो बच्चों ने खेल को जीवित और चलता हुआ रखा, और अगर हर बार उनके मांगने पर मेरे पास एक रुपया होता, तो सहज ही, मेरे पास रुपयों का ढेर होता। यह एक ऐसा सवाल था जिससे मेरे बच्चे आसक्त थे, लेकिन मैं (ड्राइवर) भी उतना ही आसक्त था और सोच रहा था, क्या हम वहां पहुँच गए  हैं? और जवाब था, अभी नहीं, लेकिन जल्द ही।

सच कहा जाए, तो अधिकांश वयस्क उस प्रश्न पर भिन्नता पूछ रहे हैं, हालाँकि हम इसे ज़ोर से नहीं बोल सकते। लेकिन हम इसे उसी कारण के लिए पूछ रहे हैं─ हम थके हुए हैं, और हमारी आंखें "शोक से [बैठ गयी हैं]” (भजन 6:7)। हम रात की ख़बरों से लेकर रोज़मर्रा की परेशानी से लेकर कभी न खत्म होने वाली स्वास्थ्य समस्याओं से लेकर रिश्ते के तनाव तक हर चीज़ के बारे में हम “कराहते कराहते थक” चुके हैं (पद 6), और सूची जारी है। हम रोते हैं : “क्या हम वहां पहुँच गए  हैं? कब तक प्रभु, कब तक?”

भजनहार उस तरह की थकान को अच्छी तरह जानता था, और वह ईमानदारी से उस मुख्य प्रश्न को परमेश्वर के पास लेकर आया l एक देखभाल करने वाले माता-पिता की तरह, उसने दाऊद की पुकार सुनी और अपनी बड़ी दया से उन्हें स्वीकार किया (पद 9)। पूछने में कोई शर्म नहीं थी। इसी तरह, आप और मैं स्वर्ग में हमारे पिता के पास हमारी ईमानदार पुकार "कब तक?" और उसका उत्तर हो सकता है "अभी नहीं, लेकिन जल्द ही। मैं भला हूँ। मेरा यकीन करो।"

जीवित रहने तक दें

एक सफल व्यवसायी ने अपने जीवन के अंतिम कुछ दशक अपने विपुर संपत्ति को देने के लिए हर संभव प्रयास करते हुए बिताए। एक बहु अरबपति होकर, उन्होंने उत्तरी आयरलैंड में शांति लाने और वियतनाम की स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली का आधुनिकीकरण करने जैसे कई कारणों से नकद दान दिया; और मरने से कुछ समय पहले, उन्होंने न्यूयॉर्क में एक द्वीप को एक प्रौद्योगिकी केंद्र में बदलने के लिए $350 मिलियन (35 करोड़) खर्च किए। उस व्यक्ति ने कहा, “मैं जीते-जी देने में दृढ़ विश्वास रखता हूं। मुझे देने में देरी करने का कोई कारण नहीं दिखता . . . l  इसके अलावा, जब आप मर चुके होते हैं तो देने की तुलना में जीने के दौरान देने में बहुत अधिक मज़ा आता है। जब आप जीते हैं तो दें—क्या अद्भुत मनोभाव है।

यूहन्ना के अंधे पैदा हुए व्यक्ति के विवरण में, यीशु के शिष्य यह निर्धारित करने की कोशिश कर रहे थे कि "किसने पाप किया" (9:2)। यीशु ने संक्षेप में उनके प्रश्न का उत्तर यह कहकर दिया, “न तो इस ने पाप किया था, न  इसके माता-पिता ने . . . परन्तु यह इसलिये हुआ कि परमेश्वर के काम उस में प्रगट हों। जिसने मुझे भेजा है, हमें उसके काम दिन ही दिन में करना अवश्य है” (पद.3-4) l यद्यपि हमारा कार्य यीशु के आश्चर्यकर्मों से बहुत अलग है, चाहे हम अपने आप को कितना भी दे दें, हमें इसे एक तैयार और प्रेमपूर्ण आत्मा के साथ करना है। चाहे हमारे समय, संसाधनों, या कार्यों के माध्यम से, हमारा लक्ष्य यह है कि परमेश्वर के कार्यों को प्रदर्शित किया जा सके।

क्योंकि परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उसने दिया। बदले में, जब तक हम जीते हैं, दें।

हमें अपने चर्च समुदाय की आवश्यकता है

मैं एक दक्षिणी बैपटिस्ट उपदेशक के पहलौठे पुत्र के रूप में पला-बढ़ा हूं। हर रविवार को उम्मीद स्पष्ट थी : मुझे चर्च में रहना था। संभावित अपवाद? शायद अगर मुझे तेज बुखार होता। लेकिन सच्चाई यह है कि, मुझे जाना बहुत पसंद था, और मैं कई बार बुखार में भी गया। लेकिन दुनिया बदल गई है, और चर्च में नियमित उपस्थिति पहले की तरह नहीं है। बेशक, त्वरित सवाल यह है कि क्यों? उत्तर कई और विविध हैं। लेखक कैथलीन नॉरिस ने उन उत्तरों को एक पासबान से प्राप्त प्रतिक्रिया के साथ सामना करते हुए कहा, "हम चर्च क्यों जाते हैं?" उन्होंने कहा, "हम अन्य लोगों के लिए चर्च जाते हैं। क्योंकि वहां किसी को आपकी जरूरत हो सकती है।"

अब किसी भी तरह से हमारे चर्च जाने का एकमात्र कारण है यह नहीं है, लेकिन उसकी प्रतिक्रिया इब्रानियों के लिए लेखक के दिल की धड़कन के साथ प्रतिध्वनित होती है। उसने विश्वासियों को विश्वास में बने रहने के लिए आग्रह किया, और उस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए उसने "एक दूसरे के साथ इकठ्ठा होना न [छोड़ने]" पर जोर दिया (इब्रानियों 10:25)। क्यों? क्योंकि हमारी अनुपस्थिति में कुछ महत्वपूर्ण छूट जाएगा : "एक दूसरे को समझाते रहें” (पद 25)। हमें "प्रेम और भले कामों में उकसाने के लिए” आपसी प्रोत्साहन की आवश्यकता है (पद 24)।

भाइयों-बहनों, मिलते रहें, क्योंकि वहाँ किसी को आपकी आवश्यकता हो सकती है। और संगत सच्चाई यह है कि आपको उनकी भी आवश्यकता हो सकती है।

सच्चे आराधक

उसे आख़िरकार उस चर्च जाने का मौका मिला । वह तहखाने के भीतरी भाग में, वह छोटे गुफा या खोह(grotto) में पहुंची । वह संकरा स्थान मोमबत्तियों से भरा था और फर्श का एक कोना लटके हुए लैंप्स से आलोकित था । वह यहाँ था──एक चौदह नोकवाला चाँदी का तारा, जो संगमरमर के फर्श के उभरे हुए हिस्से को ढँक रहा था । वह बेतलहेम में ग्रोटो ऑफ़ द नेटीविटी में थी──वह स्थान जहाँ परम्परा के अनुसार मसीह ने जन्म लिया था । फिर भी लेखिका एनी डिलार्ड प्रभावित से कम महसूस करते हुए समझ ली कि परमेश्वर इस स्थान से बहुत बड़ा था । 

फिर भी, ऐसे स्थान हमारे विश्वास की कहानियों में बड़ा महत्व रखते हैं । एक और ऐसा स्थान यीशु और कूंएं पर उस स्त्री के बीच बातचीत में वर्णित है──वह पहाड़──गरिज्जीम पर्वत का सन्दर्भ देते हुए(व्यवस्थाविवरण 11:29)──जहाँ उसके “बापदादों ने आराधना की” (यूहन्ना 4:20) । वह सामरियों के लिए पवित्र था, जिन्होंने इसे यहूदी जिद्द के विपरीत बताया कि यरूशलेम ही था जहाँ सच्ची आराधना होती थी (पद.20) । हालाँकि, यीशु ने घोषणा की कि वह समय आ चूका है जब आराधना किसी ख़ास स्थान तक सीमित नहीं थी, लेकिन एक व्यक्ति : सच्चे भक्त पिता की आराधना आत्मा और सच्चाई से करेंगे” (पद.23) । उस स्त्री ने मसीह(Messiah) में अपना विश्वास जताया, लेकिन उसने नहीं पहचाना कि वह उससे बात कर रही थी । “यीशु ने उस से कहा, ‘मैं जो तुझ से बोल रहा हूँ, वही हूँ’” (पद.26) । 

परमेश्वर किसी पहाड़ या भौतिक स्थान तक सीमित नहीं है । वह हमारे साथ सभी जगह उपस्थित है । हर दिन जो सच्चा तीर्थ हम करते हैं वह उसके सिंहासन के पास पहुँचना है क्योंकि हम साहसपूर्वक कहते हैं, “हमारे पिता,” और वह वहाँ उपस्थित है ।