उसकी शांति
कई महीनों तक, मैंने कार्यस्थल की गहन राजनीति और साज़िशों का सामना किया। चिंता करना मेरा एक स्वभाव बन गया था, इसलिए खुद को शांति में पाकर मैं हैरान था। चिंतित महसूस करने के बजाय, मैं शांत मन और हृदय से जवाब दे पा रहा था। मैं जानता था कि यह शांति केवल परमेश्वर से ही मिल सकती है।
इसके विपरीत, मेरे जीवन में एक और दौर था जब सब कुछ ठीक चल रहा था─और फिर भी मैंने अपने दिल में एक गहरी अशांति महसूस की। मुझे पता था कि ऐसा इसलिए था क्योंकि मैं परमेश्वर और उसकी अगुवाई पर भरोसा करने के बजाय अपनी क्षमताओं पर भरोसा कर रहा था। पीछे मुड़कर देखने पर, मैंने महसूस किया है कि सच्ची शांति—परमेश्वर की शांति—हमारी परिस्थितियों से नहीं, बल्कि उस पर हमारे भरोसे से परिभाषित होती है।
परमेश्वर की शांति हमें तब मिलती है जब हमारा मन स्थिर होता है (यशायाह 26:3)। इब्रानियों में, स्थिर शब्द का अर्थ है "आश्रित होना।" जब हम उस पर निर्भर होंगे, हम उसकी शांत उपस्थिति का अनुभव करेंगे। हम परमेश्वर पर भरोसा कर सकते हैं, यह याद करते हुए कि वह अभिमानी और दुष्टों को नम्र करेगा और उन लोगों के मार्ग को सुगम करेगा जो उससे प्रेम करते हैं (वव. 5-7)।
जब मैंने कठिनाई के समय में आराम के बजाय शांति का अनुभव किया, तो मैंने पाया कि परमेश्वर की शांति संघर्ष की अनुपस्थिति नहीं है, बल्कि संकट में भी सुरक्षा की गहन भावना है। यह एक ऐसी शांति है जो मनुष्यों की समझ से परे है और सबसे कठिन परिस्थितियों के बीच में हमारे दिलों और दिमागों की रक्षा करती है (फिलिप्पियों 4:6-7)।
परमेश्वर को जानना सीखना
मैं हमेशा से मां बनना चाहती थ और विवाह करने, गर्भवती होने, और बच्चे होने के सपने देखती थे। परंतु विवाह के बाद गर्भावस्था के नकारात्मक परीक्षणों के बाद मेरे पति और मुझे एहसास हुआ कि हम बांझपन से संघर्ष कर रहे थे। महीनों तक डॉक्टर के चक्कर, परीक्षण और आसूँ बहाना चलते रहे। हम तूफान के बीच में थे। बांझपन के कारण मैं परमेश्वर की भलाई और उनकी विश्वासयोग्यता पर संदेह करने लगी।
अपनी यात्रा से मुझे यूहन्ना 6 में समुद्री तूफान में फसें चेलों की कहानी याद आती है। जब वे अंधेरे में तूफान की लहरों से जूझते हुए नाव में थे तब उन्होंने यीशु को झील पर चलकर उनकी ओर आते देखा। उन्होंने अपनी उपस्थिति से चेलों को शांत किया और कहा, "मैं हूं; डरो मत"(पद 20)।
चेलों के समान हम दोनों नहीं जानते थे कि हमारा तूफान क्या लाएगा; परंतु हमें शांति मिली, क्योंकि हम परमेश्वर को अधिक गहराई से जानने लगे, कि वो सदा विश्वासयोग्य और सच्चे हैं। यद्यपि जिस बच्चे के हमने सपने देखे थे वह हमें नहीं मिलेगा, परन्तु हमने सीखा कि हमारे संघर्षों में हम परमेश्वर की शांतिदायक उपस्थिति अनुभव कर सकते हैं। क्योंकि वह हमारे जीवनों में सामर्थपूर्ण रूप से कार्य कर रहे हैं, इसलिए हमें चिंता करने की आवश्यकता नहीं है।
चिंता का इलाज
हम उत्साहित हैं क्योंकि मेरे पति की नौकरी के कारण हमें दूसरी जगह स्थानांतरित होना है l किन्तु मैं अनजान लोग और स्थान की चुनौतियों के कारण चिंतित हूँ l घर के सामान को अलग-अलग करके पैक करना l नए स्थान में रहने के लिए नया घर और अपने लिए एक नौकरी खोजना l नए शहर को जानना और उसमें रहने का प्रयास करना l ये सब विचार . . . बेचैन करनेवाले थे l जब मैंने उन कामों की सूची बनायी जो मुझे करना था, प्रेरित पौलुस के शब्द मुझे याद आए : चिंता न करो, किन्तु प्रार्थना करो (फ़िलि. 4:6-7) l
अनजान बातों और चुनौतियों के विषय पौलुस का चिंतित होना स्वाभाविक था l उसका जहाज़ टूट गया l उसे पीटा गया l वह कैद हुआ l फिलिप्पी की कलीसिया को लिखी अपनी पत्री में, उसने उन मित्रों को उत्साहित किया जो अनजान बातों का सामना कर रहे थे, “किसी भी बात की चिंता मत करो; परन्तु हर एक बात में तुम्हारे निवेदन, प्रार्थना और विनती के द्वारा धन्यवाद के साथ परमेश्वर के सम्मुख उपस्थित किए जाएं” (पद.6) l
पौलुस के शब्द मुझे साहस देते हैं l अनिश्चित बातों के बिना जीवन है ही नहीं, चाहे जीवन में एक बड़ा परिवर्तन हो, पारिवारिक समस्या हो, स्वास्थ्य का अकारण भय हो, अथवा आर्थिक समस्या हो l मैं निरंतर सीख रही हूँ कि परमेश्वर चिंता करता है l वह चाहता है कि हम अपनी चिंताओं को उसे दे दें l हमारे ऐसा करने से वह सब कुछ जाननेवाला परमेश्वर प्रतिज्ञा करता है कि उसकी शांति जो “सारी समझ से परे है” हमारे हृदय और हमारे विचारों को मसीह यीशु में सुरक्षित रखेगी” (पद.7) l
कब तक?
विवाह के बाद मैंने सोचा कि मेरे शीघ्र बच्चे होंगे l ऐसा नहीं होने की पीड़ा के कारण मैं प्रार्थना करने लगी l मैंने अक्सर परमेश्वर को पुकारा, “कब तक?” मैं जानती थी कि परमेश्वर मेरी अवस्था को बदल सकता है l क्यों नहीं वह बदल रहा था?”
क्या आप परमेश्वर के लिए ठहरे हैं? क्या आप पूछ रहे हैं, कब तक, प्रभु, इससे पूर्व कि न्याय इस पृथ्वी पर आ जाए? कैंसर के इलाज से पूर्व? मेरे कर्ज से निकलने से पूर्व?
हबक्कूक नबी इन भावनाओं से परिचित था l ई.पू. सातवीं शताब्दी में, उसने प्रभु को पुकारा : “हे यहोवा, मैं कब तक तेरी दोहाई देता रहूँगा, और तू न सुनेगा? मैं कब तक तेरे सम्मुख ‘उपद्रव,’ उपद्रव’ चिल्लाता रहूँगा? क्या तू उद्धार नहीं करेगा? (हबक्कूक 1:2-3) l वह लम्बे समय तक प्रार्थना और संघर्ष करता रहा कि किस तरह एक सामर्थी परमेश्वर दुष्टता, अन्याय, और भ्रष्टाचार को यहूदा में जारी रहने दे सकता है l जहाँ तक हबक्कूक का ख्याल था, परमेश्वर को हस्तक्षेप कर देना चाहिए था l क्यों नहीं परमेश्वर कुछ कर रहा था?
ऐसे दिन होते हैं जब हम सोचते हैं जैसे परमेश्वर निष्क्रिय है l हबक्कूक की तरह, हमने लगातार परमेश्वर से पुछा है, “कब तक?”
फिर भी, हम अकेले नहीं हैं l हबक्कूक की तरह, परमेश्वर हमारी भी सुनता है l हम निरंतर उनको परमेश्वर पर डालें l परमेश्वर हमारी सुनता है, और अपने समय में उत्तर देगा l
बाधाएँ हटाना
मैं मेरी को पूर्व कैदियों को समाज में जोड़नेवाला आश्रय-“द हाउस”-में हर मंगलवार को देखती थी l मेरा जीवन उससे भिन्न था : वह जेल से अभी-अभी बाहर आई थी , नशे की लत से जूझ रही थी, अपने पुत्र से अलग थी l आप कह सकते हैं कि वह समाज के बाहर रहती थी l
मेरी की तरह, उनेसिमुस भी था l एक दास के रूप में, उनेसिमुस ने अपने मसीही स्वामी, फिलेमोन को हानि पहुँचाकर, अब जेल में था जहां पर, पौलुस से मुलाकात करके उसने मसीह पर विश्वास किया (पद.10) l बदला हुआ व्यक्ति होने के बावजूद, उनेसिमुस अभी भी दास ही था l पौलुस ने पत्र के साथ उसे फिलेमोन के पास भेजा और उससे उनेसिमुस को “दास की तरह नहीं वरन् दास से भी उत्तम, अर्थात् भाई के समान” (फिलेमोन 1:16) ग्रहण करने का अनुरोध किया l
फिलेमोन के पास चुनाव था : वह उनेसिमुस से एक दास की तरह बर्ताव कर सकता था या उसे मसीह में एक भाई की तरह ग्रहण कर सकता था l मुझे भी चुनाव करना था l क्या मैं मेरी को एक पूर्व-बंदी और नशे से उबरने वाली की तरह देखूं अथवा मसीह की सामर्थ्य से बदले हुए जीवन के रूप में? मेरी प्रभु में मेरी बहन थी, हमारे पास विश्वास की यात्रा में संग चलने का मौका था l
हम सामाजिक-आर्थिक दर्जा, वर्ग, अथवा सांस्कृतिक भिन्नता को हमें अलग करने की अनुमति दें, यह सरल है l मसीह का सुसमाचार इन बाधाओं को हटाकर, हमेशा के लिए हमारे जीवन और संबंधों को बदल देता है l
भय से विश्वास तक
डॉक्टर के शब्दों से मेरे हृदय को तेज झटका लगा l कैंसर हो गया है l अपने पति और बच्चों के विषय सोचकर उसका संसार ठहर गया l उन्होंने एक भिन्न परिणाम की आशा से ईमानदारी से प्रार्थना की थी l अब वे क्या करेंगे? वह रोती हुई धीमे से बोली, “परमेश्वर, यह हमारे नियंत्रण में नहीं है l आप हमारी सामर्थ्य बने l”
हमें क्या करना चाहिए जब रोगनिदान हानिकारक है, जब स्थिति हमारे नियंत्रण के बाहर है? जब संभावनाएं आशाहीन महसूस हो हम किसकी ओर देखें?
हबक्कूक नबी की स्थिति नियंत्रण से बाहर थी, और महसूस होनेवाले भय से वह भयभीत था l आनेवाला न्याय विनाशकारी होगा (हब. 3:16-17) l फिर भी, इस आनेवाली गड़बड़ी में, हबक्कूक को विश्वास से जीने के लिए (2:4) और परमेश्वर में आनंदित रहने के लिए(3:18) निर्णय लेना था l उसने अपना भरोसा और विश्वास अपनी परिस्थितियों में, योग्यता में, अथवा संसाधन में नहीं रखा, किन्तु परमेश्वर की भलाई और महानता में रखा l परमेश्वर में उसके भरोसे ने उसे कहने को विवश किया : “यहोवा परमेश्वर मेरा बलमूल है, वह मेरे पाँव हरिणों के समान बना देता है, वह मुझ को मेरे ऊँचे स्थानों पर चलाता है” (पद.19) l
जब हम बीमारी, पारिवारिक संकट, आर्थिक परेशानी जैसे कठिन परिस्थियों का सामना करते हैं, हमें भी परमेश्वर में अपना भरोसा और विश्वास रखना होगा l हम जिस भी परिस्थितियों का सामना करते हैं, वह हमारे साथ है l
परम परमेश्वर
जमाइका में बढ़ते हुए, मेरे माता-पिता मेरी बहन और मुझको “अच्छे लोग” बनने में सहायता किये l हमारे घर में, अच्छा का अर्थ था माता-पिता के प्रति आज्ञाकारिता, सच बोलना, स्कूल और कार्य में सफल, और कम से कम ईस्टर और क्रिसमस में चर्च जाना l मेरे विचार से अच्छा व्यक्ति बनने की यह परिभाषा सभी संस्कृतियों में सामान्य है l वस्तुतः, प्रेरित पौलुस ने, फिलिप्पियों 3 में अच्छा बनने की अपनी संस्कृति की परिभाषा द्वारा एक बड़ी बात कही l
प्रथम शताब्दी का इमानदार यहूदी, पौलुस, अपनी संस्कृति में नैतिक व्यवस्था को मानता था l वह “सही” परिवार में जन्म लिया, “सही” शिक्षा पायी, “सही” धर्म को माना l वह यहूदी रिवाज़ के अनुसार सही व्यक्ति का वास्तविक नमूना था l पद 4 में पौलुस लिखता है कि वह अपने समस्त अच्छाईयों में घमंड कर सकता था l किन्तु, जितना भी वह अच्छा था, पौलुस ने अपने पाठकों से (और हमसे) कहा कि अच्छा होने के ऊपर कुछ और है l वह अच्छा होना जानता था, यद्यपि अच्छा बनना, परमेश्वर से प्रेम करना नहीं है l
पौलुस के अनुसार पद. 7-8 में यीशु को जानना परमेश्वर को प्रसन्न करना, है l पौलुस ने अपनी अच्छाइयों को “मसीह यीशु की पहिचान की उत्तमता” की तुलना में “कूड़ा” समझा l “हम अच्छे हैं-और हम परमेश्वर को प्रसन्न करते हैं-जब हमारी आशा और विश्वास केवल मसीह में है, अपनी अच्छाइयों में नहीं l